संस्कृत श्लोक: "सुखदुःखे हि पुरुषः पर्यायेणोपसेवते" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
By -
0

संस्कृत श्लोक: "सुखदुःखे हि पुरुषः पर्यायेणोपसेवते" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

🌞 🙏 जय श्रीराम 🌷 सुप्रभातम् 🙏

 प्रस्तुत यह श्लोक एक अत्यंत गूढ़ दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक सत्य को सरल शब्दों में उद्घाटित करता है। मानव जीवन के अनुभवों की अनित्यता और परिवर्तनशीलता को अत्यंत सुंदर ढंग से प्रस्तुत करता है।

संस्कृत श्लोक: "सुखदुःखे हि पुरुषः पर्यायेणोपसेवते" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "सुखदुःखे हि पुरुषः पर्यायेणोपसेवते" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद



श्लोक

सुखदुःखे हि पुरुषः पर्यायेणोपसेवते।
नात्यन्तमसुखं कश्चित् प्राप्नोति पुरुषर्षभ॥

sukha-duḥkhe hi puruṣaḥ paryāyeṇopasevate,
nātyantam-asukhaṁ kaścit prāpnoti puruṣarṣabha॥


🔍 शब्दार्थ / व्याकरणीय विश्लेषण:

पद अर्थ व्याकरण / टिप्पणियाँ
सुखदुःखे सुख और दुःख द्वन्द्व समास, द्वितीया
हि निश्चयार्थक अव्यय "निश्चय ही", "अवश्य"
पुरुषः व्यक्ति पुल्लिंग, प्रथमा एकवचन
पर्यायेण क्रम से, बारी-बारी से अव्यय (अधिकरणार्थ)
उपसेवते अनुभव करता है / भोगता है धातु – सेव्, आत्मनेपदी, लट् लकार, प्रथमा पुरुष
नहीं निषेधवाचक अव्यय
अत्यन्तम् अत्यधिक / बिल्कुल अव्यय
असुखम् दुःख नपुंसकलिंग, द्वितीया
कश्चित् कोई अनिश्चित सर्वनाम
प्राप्नोति प्राप्त करता है धातु – आप्, परस्मैपदी, लट् लकार
पुरुषर्षभ हे पुरुषों में श्रेष्ठ (राजन) संबोधन, पुल्लिंग

🪷 भावार्थ:

"हे राजन! व्यक्ति सुख और दुःख को पर्याय से (एक के बाद एक) अनुभव करता है।
कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं है जो पूर्णतया केवल दुःख ही प्राप्त करता हो।"

यह श्लोक हमें यह शिक्षा देता है कि दुख शाश्वत नहीं होता, जैसे रात्रि के बाद दिन आता है, वैसे ही दुख के बाद सुख भी आता है


🌿 प्रेरणादायक कथा: “वह भी बीत जाएगा” 🌿

प्राचीन भारत के एक राजा ने अपने राजपुरोहित से कहा —

“मुझे ऐसी अंगूठी बनवाओ, जो मुझे सबसे कठिन समय में भी संतुलन में रखे और अच्छे समय में अहंकार से बचाए।”

पुरोहित ने कुछ सोचकर एक अंगूठी बनवाई, जिस पर लिखा था —

"यह समय भी बीत जाएगा" (This too shall pass).

समय बदला। युद्ध में हार हुई, प्रियजनों का वियोग हुआ। राजा टूटा...
तभी पुरोहित ने कहा: “राजन्, अंगूठी देखिए।”

राजा ने पढ़ा: "यह समय भी बीत जाएगा" — और उसे एक सांत्वना मिली।

कुछ वर्ष बाद सबकुछ लौट आया। धन, वैभव, विजय।
राजा गर्व से भर उठा।
तभी पुरोहित फिर बोला: “अब भी देखिए वही अंगूठी...”

राजा मुस्करा पड़ा। उसने समझ लिया कि न सुख स्थायी है, न दुख।
परिवर्तन ही शाश्वत है।


🌟 शिक्षा / प्रेरणा:

  • सुख और दुःख – दोनों ही क्षणिक हैं।
  • जो परिस्थिति आज है, वही कल नहीं रहेगी।
  • इसलिए न अधिक दुखी हों, न अधिक अहंकारी।
  • जीवन का संतुलन – आत्मज्ञान और धैर्य में है।

🙏 श्रीकृष्ण सदा आपकी बुद्धि में संतुलन और हृदय में शांति बनाए रखें।

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!