संस्कृत श्लोक "साधोः प्रकोपितस्यापि मनो नायाति विक्रियाम्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक "साधोः प्रकोपितस्यापि मनो नायाति विक्रियाम्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 

🙏 जय श्रीराम 🌷 सुप्रभातम् 🙏
प्रस्तुत श्लोक का संस्कृत मूल, अंग्रेज़ी ट्रान्सलिटरेशन, हिन्दी अनुवाद, व्याकरणात्मक विश्लेषण, आधुनिक सन्दर्भ, और संवादात्मक नीति कथा सहित एक व्यवस्थित और विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत है।


१. संस्कृत श्लोक (Sanskrit Verse)

साधोः प्रकोपितस्यापि मनो नायाति विक्रियाम् ।
न हि तापयितुं शक्यं सागराम्भस्तृणोल्कया ॥


२. English Transliteration

Sādhoḥ prakopitasya api mano nāyāti vikriyām ।
Na hi tāpayituṁ śakyaṁ sāgarāmbhas tṛṇolkayā ॥

संस्कृत श्लोक "साधोः प्रकोपितस्यापि मनो नायाति विक्रियाम्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
संस्कृत श्लोक "साधोः प्रकोपितस्यापि मनो नायाति विक्रियाम्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 

 


३. हिन्दी अनुवाद

सज्जन व्यक्ति का मन, चाहे उसे कितना भी क्रोधित किया जाए, विकार या विचलन को प्राप्त नहीं होता।
जिस प्रकार तिनके की जलती मशाल (सूखी घास की आग) समुद्र के जल को गर्म नहीं कर सकती, उसी प्रकार महान व्यक्ति की मनोवृत्ति बाहरी उकसावों से प्रभावित नहीं होती।


४. व्याकरणात्मक विश्लेषण (Grammatical Analysis)

पद मूलरूप पदप्रकार विभक्ति/लिंग/वचन अर्थ
साधोः साधु संज्ञा षष्ठी एकवचन पुल्लिंग सज्जन का
प्रकोपितस्य प्रकोपित कृत् (भाववाचक विशेषण) षष्ठी एकवचन पुल्लिंग क्रोधित किये हुए का
अपि अपि अव्यय भी, यद्यपि
मनो मनस् संज्ञा प्रथमा एकवचन नपुंसकलिंग मन
अव्यय (निषेध) नहीं
आयाति आ-या धातु (लट् लकार, परस्मैपदी) प्रथम पुरुष एकवचन पहुँचता है
विक्रियाम् विक्रिया संज्ञा द्वितीया एकवचन स्त्रीलिंग विकार, विकृति
न हि अव्यय युग्म निश्चय ही नहीं
तापयितुं तप् कृदन्त (तुमुन् प्रत्यय) गर्म करने के लिए
शक्यं शक् विशेषण/धातुज नपुंसकलिंग प्रथमा एकवचन संभव
सागराम्भः सागर+अम्भः समास (षष्ठी तत्पुरुष) प्रथमा एकवचन नपुंसकलिंग समुद्र का जल
तृणोल्कया तृण + उल्का समास (कर्मधारय) तृतीया एकवचन स्त्रीलिंग घास की मशाल से

५. भावार्थ

  • सज्जन व्यक्ति (साधु) का मन विशाल और गहरा होता है, जैसे समुद्र।
  • कोई कितना भी क्रोध दिलाने का प्रयास करे, वह तुरंत प्रतिक्रिया नहीं करता, उसका चित्त स्थिर रहता है।
  • तृणोल्का (घास की आग) जैसी हल्की बात या अपमान, समुद्र जैसे शांत और गहरे चित्त को प्रभावित नहीं कर सकता।

६. आधुनिक सन्दर्भ में व्याख्या

आज के जीवन में यह श्लोक हमें सिखाता है:

  1. क्रोध नियंत्रण – क्रोध में आकर प्रतिक्रिया देना कमजोरी है। महान लोग क्रोध में भी संयम बनाए रखते हैं।
  2. सोशल मीडिया और आलोचना – लोग छोटी बातों पर आक्रोशित हो जाते हैं। सज्जन व्यक्ति समुद्र की तरह गहरा होता है और छोटी बातों से प्रभावित नहीं होता।
  3. नेतृत्व का गुण – एक सफल नेता या प्रबंधक वही है जो उत्तेजना या उकसावे में शांत और स्थिर रहे।

७. संवादात्मक नीति कथा – “महान व्यक्ति का धैर्य”

शिष्य: "गुरुदेव! लोग कहते हैं कि जो क्रोध नहीं करता, वह कमजोर है। क्या यह सच है?"

गुरु: "नहीं वत्स, क्रोध करना सरल है। संयम रखना ही महानता है।
जैसे समुद्र को तिनके की आग गरम नहीं कर सकती, वैसे ही साधुजन छोटी उत्तेजनाओं से विचलित नहीं होते।"

शिष्य: "गुरुदेव! मैं तो छोटी-सी बात पर चिड़चिड़ा हो जाता हूँ। क्या करूँ?"

गुरु: "अपने मन को समुद्र की गहराई की तरह बनाओ।
सोचो, क्या यह बात वास्तव में इतनी बड़ी है कि तुम्हारे मन की शांति छीन ले?
स्मरण रखो –
‘साधोः प्रकोपितस्यापि मनो नायाति विक्रियाम्’
सज्जन का मन, चाहे क्रोधित कर दिया जाए, स्थिर रहता है।"

शिष्य: "अब समझ गया कि महानता शांति में है, प्रतिक्रिया में नहीं।"


८. सारांश

सच्ची सज्जनता का लक्षण है – उकसावे में भी स्थिरता और विवेक।
समुद्र जैसी गहराई और धैर्य रखने वाला व्यक्ति ही जीवन में सच्चा विजयी है।

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