संस्कृत श्लोक "पुण्यस्य फलमिच्छन्ति पुण्यं नेच्छन्ति मानवाः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक "पुण्यस्य फलमिच्छन्ति पुण्यं नेच्छन्ति मानवाः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 

यह श्लोक बहुत ही व्यावहारिक और मानवीय प्रवृत्ति पर गहरा व्यंग्य करता है।
मैं इसका व्यवस्थित और विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता हूँ—


१. संस्कृत मूल

पुण्यस्य फलमिच्छन्ति पुण्यं नेच्छन्ति मानवाः।
न पापफलमिच्छन्ति पापं कुर्वन्ति यत्नतः॥


२. अंग्रेज़ी ट्रान्सलिटरेशन (IAST)

puṇyasya phalam icchanti puṇyaṃ necchanti mānavāḥ।
na pāpa-phalam icchanti pāpaṃ kurvanti yatnataḥ॥
संस्कृत श्लोक "पुण्यस्य फलमिच्छन्ति पुण्यं नेच्छन्ति मानवाः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
संस्कृत श्लोक "पुण्यस्य फलमिच्छन्ति पुण्यं नेच्छन्ति मानवाः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 


३. पद-पद अर्थ (Word-by-Word Meaning)

पद अर्थ
पुण्यस्य पुण्य का
फलम् फल, परिणाम
इच्छन्ति चाहते हैं
पुण्यम् पुण्य कर्म
न इच्छन्ति नहीं चाहते
मानवाः मनुष्य
नहीं
पापफलम् पाप का फल
पापम् पाप कर्म
कुर्वन्ति करते हैं
यत्नतः प्रयत्नपूर्वक

४. हिन्दी अनुवाद

मनुष्य पुण्य का फल चाहते हैं, लेकिन पुण्य कर्म नहीं करना चाहते।
वे पाप का फल नहीं चाहते, परन्तु पाप कर्म बड़े प्रयत्न से करते हैं।


५. English Translation

Humans desire the fruits of virtue, yet they do not wish to perform virtuous deeds.
They do not desire the fruits of sin, yet they commit sinful acts with effort.


६. व्याकरणिक विश्लेषण

  • पुण्यस्य फलम् — षष्ठी तत्पुरुष समास (virtue's fruit)
  • न पापफलम् इच्छन्ति — द्वन्द्व-वाक्य संरचना, निषेध + इच्छा
  • पापं कुर्वन्ति यत्नतः — "with effort" (क्रियाविशेषण) यह विडंबना को और तीखा करता है

७. आधुनिक सन्दर्भ

  • आज की दुनिया में भी लोग स्वास्थ्य चाहते हैं लेकिन अनुशासन नहीं अपनाते।
  • सफलता चाहते हैं लेकिन परिश्रम करने में आलसी होते हैं।
  • सद्भावना चाहते हैं लेकिन दूसरों के प्रति भला व्यवहार करने में कंजूसी करते हैं।

यह श्लोक मानवीय स्वभाव की उस कमज़ोरी को उजागर करता है जिसमें लोग फल तो चाहते हैं पर बीज बोने में आलस करते हैं


८. संवादात्मक नीति कथा

कथा – "बिना बोए फसल"
एक युवक ने किसान से कहा — “मुझे सोने की फसल चाहिए।”
किसान ने पूछा — “क्या तुम बीज बोओगे, पानी दोगे, देखभाल करोगे?”
युवक बोला — “नहीं, बस फसल चाहिए, मेहनत नहीं।”
किसान हँस पड़ा और बोला — “फसल चाहो तो खेत में पसीना भी बहाना होगा।”

नीति: जो बीज बोने का श्रम नहीं करेगा, वह फसल का सुख नहीं पा सकेगा।


९. सार-सूत्र (Takeaway)

चाहत वास्तविक कर्म
पुण्य का फल पुण्य करने में आलस
पाप का फल न मिले पाप कर्म में तत्पर
स्वास्थ्य व्यायाम में आलस
सफलता कठिन परिश्रम से बचना

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