कविता "नए अछूत" और उसका विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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कविता "नए अछूत" और उसका विश्लेषण 

यह शीर्षक ही स्वयं में एक तीव्र सामाजिक पीड़ा और विरोधाभास को उद्घाटित करता है। "अछूत" शब्द भारतीय सामाजिक व्यवस्था में ऐतिहासिक रूप से अपमान, बहिष्कार और असमानता का द्योतक रहा है। परंतु कवि इस कविता में "सवर्णों" को ही "नए अछूत" कहकर एक गहरी विडंबना और सामाजिक अन्याय का चित्र खींचते हैं। आइए इस कविता का चरण दर चरण भावात्मक विश्लेषण करें:


🔹 प्रथम पद

हमको देखो हम सवर्ण हैं / भारत माँ के पूत हैं,
लेकिन दुःख है अब भारत में, / हम सब 'नए अछूत' हैं;

  • कवि यहाँ "सवर्ण" होने को केवल जातिगत नहीं, बल्कि राष्ट्र की संतान होने के गर्व से जोड़ते हैं।
  • किंतु अब वह गर्व वंचना और तिरस्कार में बदल गया है, क्योंकि आज की सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था ने उन्हें ही हाशिये पर ला खड़ा किया है।
कविता "नए अछूत" और उसका विश्लेषण
कविता "नए अछूत" और उसका विश्लेषण 



🔹 द्वितीय पद

सारे नियम सभी कानूनों ने, / हमको ही मारा है;
भारत का निर्माता देखो, / अपने घर में हारा है;
नहीं हमारे लिए नौकरी, / नहीं सीट विद्यालय में;
ना अपनी कोई सुनवाई, / संसद में, न्यायालय में;

  • यह पद आरक्षण व्यवस्था, राजनीतिक प्रतिनिधित्व, और संवैधानिक संरचनाओं में सवर्णों की उपेक्षा पर प्रश्न उठाता है।
  • "भारत का निर्माता अपने घर में हारा है" – यह पंक्ति आत्मसम्मान की पीड़ा का चरम है। जिस वर्ग ने वर्षों तक शासन-प्रशासन, ज्ञान-विज्ञान, और समाज के ढांचे को गढ़ा – वह अब अपने ही देश में उपेक्षित, पराजित और निष्प्रभावी अनुभव करता है।

🔹 तृतीय पद

'दलित' महज़ आरोप लगा दे, / हमें जेल में जाना है;
हम-निर्दोष, नहीं हैं दोषी, / ये सबूत भी लाना है;
काले कानूनों की भट्ठी, / में हम सब को झोंका है;
किसको चुनें, किन्हें हम मत दें? / सारे ही यमदूत हैं;

  • यह भाग SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम जैसे कानूनों की आलोचना करता है, जिनका दुरुपयोग कर निर्दोषों को फँसाया जाता है – ऐसी धारणा कवि व्यक्त करता है।
  • "काले कानूनों की भट्ठी" में झोंके जाने की उपमा अत्यंत मार्मिक है, जो न्याय की विकृति को उजागर करती है।
  • लोकतंत्र की प्रक्रिया (मतदान) में भी निराशा व्यक्त होती है – किसी पर भी विश्वास नहीं बचा

🔹 चतुर्थ पद

प्राण त्यागते हैं सीमा पर, / लड़ कर मरते हम ही हैं;
अपनी मेधा से भारत की, / सेवा करते हम ही हैं;
हर सवर्ण इस भारत माँ का, / एक अनमोल नगीना है;
अपने तो बच्चे बच्चे का, / छप्पन इंची सीना है;

  • यह अंश राष्ट्रसेवा में सवर्णों के योगदान पर बल देता है – सेना, प्रशासन, विज्ञान, शिक्षा, कला आदि में उनके त्याग और बलिदान को स्मरण करता है।
  • "छप्पन इंची सीना" जैसी लोकप्रिय उपमा का प्रयोग करके कवि गर्व और आत्मबल की भावना प्रकट करते हैं।
  • यहाँ कवि यह कहना चाहते हैं कि जो वर्ग राष्ट्र के लिए हर मोर्चे पर खड़ा रहा, वह आज कानून और समाज में असहाय क्यों है?

🔹 पंचम (अंतिम) पद

देकर खून पसीना अपना, / इस गुलशन को सींचा है;
डूबा देश रसातल में जब, / हमने बाहर खींचा है;
हमने ही भारत भूमि में, / धर्म-ध्वजा लहराई है;
सोच हमारी नभ को चूमे / बातों में गहराई है;
हम हैं त्यागी,हम बैरागी, / हम ही तो अवधूत हैं;

  • यह पद इतिहास और परंपरा में सवर्णों की भूमिका को पुनः रेखांकित करता है – जिन्होंने देश के निर्माण और रक्षा में अपना सर्वस्व अर्पण किया।
  • "हम त्यागी... अवधूत हैं" – यह कहना सांस्कृतिक नेतृत्व और आत्म-नियंत्रण की भावना से भरा है।
  • अंत में, कवि का क्षोभ यही है कि इतना कुछ देने वाला वर्ग आज तिरस्कृत और अपमानित है।

🔸 काव्यगत विशेषताएँ:

  1. शैली – कविता में नाराज़गी, दुःख और गर्व – तीनों भाव अत्यंत संतुलित रूप में प्रस्तुत हुए हैं।
  2. प्रतीकात्मकता – "काले कानून", "नए अछूत", "धर्म-ध्वजा", "गुलशन", "भट्ठी" जैसे प्रतीकों का प्रयोग समाज और राष्ट्र की जटिलता को उकेरता है।
  3. लय और सरलता – छंदबद्धता एवं सहज शब्दों के कारण कविता आम जन तक प्रभावी ढंग से पहुँचती है।
  4. सामाजिक पीड़ा का स्वर – कवि का स्वर विरोध नहीं, व्यवस्था से संवाद और आत्ममंथन की मांग करता है।

🔹 निष्कर्ष:

"नए अछूत" कविता आज के समय की एक संवेदनशील सामाजिक अभिव्यक्ति है, जो यह पूछती है कि –
क्या "समानता" और "न्याय" केवल कुछ वर्गों तक सीमित हो गई है?
क्या बहुसंख्यक या बहुसंस्कृतिजन्य समाज अब केवल दोषी या उपेक्षित होकर रह जाएगा?

यह रचना केवल एक वर्ग की वेदना नहीं, बल्कि समग्र समाज की न्यायपूर्ण पुनर्रचना की पुकार है।


"नए अछूत" कविता 


हमको देखो हम सवर्ण हैं

भारत माँ के पूत हैं,

लेकिन दुःख है अब भारत में,

हम सब 'नए अछूत' हैं;


सारे नियम सभी कानूनों ने,

हमको ही मारा है;

भारत का निर्माता देखो,

अपने घर में हारा है;

नहीं हमारे लिए नौकरी,

नहीं सीट विद्यालय में;

ना अपनी कोई सुनवाई,

संसद में, न्यायालय में;

हम भविष्य थे भारत माँ के,

आज बने हम भूत हैं;

बेहद दुःख है अब भारत में;

हम सब 'नए अछूत' हैं;


'दलित' महज़ आरोप लगा दे,

हमें जेल में जाना है;

हम-निर्दोष, नहीं हैं दोषी,

ये सबूत भी लाना है;

काले कानूनों की भट्ठी,

में हम सब को झोंका है;

किसको चुनें, किन्हें हम मत दें?

सारे ही यमदूत हैं;

बेहद दुःख है अब भारत में;

हम सब 'नए अछूत' हैं;


प्राण त्यागते हैं सीमा पर,

लड़ कर मरते हम ही हैं;

अपनी मेधा से भारत की,

सेवा करते हम ही हैं;

हर सवर्ण इस भारत माँ का,

एक अनमोल नगीना है;

अपने तो बच्चे बच्चे का,

छप्पन इंची सीना है;

भस्म हमारी महाकाल से,

लिपटी हुई भभूत है;

लेकिन दुःख है अब भारत में,

हम सब 'नए अछूत' हैं..


 देकर खून पसीना अपना,

इस गुलशन को सींचा है;

डूबा देश रसातल में जब,

हमने बाहर खींचा है;

हमने ही भारत भूमि में,

धर्म-ध्वजा लहराई है;

सोच हमारी नभ को चूमे

बातों में गहराई है; 

हम हैं त्यागी,हम बैरागी,

हम ही तो अवधूत हैं;

बेहद दुःख है अब भारत में,

हम सब 'नए अछूत' है।।

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