संस्कृत श्लोक "वितरति गुरुः प्राज्ञे विद्यां यथैव तथा जडे" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🌄 🙏 जय श्रीराम 🌷 सुप्रभातम् 🙏
प्रस्तुत यह श्लोक अत्यंत सुंदर एवं गहन शिक्षाप्रद नीति-सूक्ति है। इसमें ज्ञान के ग्रहण और परिणाम की असमानता को स्पष्ट रूप से एक उपमा के माध्यम से समझाया गया है। आइए इसे एक विस्तृत और संरचित ढंग से विश्लेषित करें:
🟡 1. संस्कृत मूल श्लोक
वितरति गुरुः प्राज्ञे विद्यां यथैव तथा जडेन तु खलु तयोर्ज्ञाने शक्तिं करोत्यपहन्ति वा।भवति हि पुनर्भूयान् भेदः फलं प्रति तद्यथाप्रभवति शुचिर्बिंबग्राहे मणिर्न मृदादयः॥
🔤 2. Transliteration (IAST)
vitarati guruḥ prājñe vidyāṁ yathaiva tathā jaḍena tu khalu tayor jñāne śaktiṁ karoty apahanti vā।bhavati hi punar bhūyān bhedaḥ phalaṁ prati tadyathāprabhavati śucir bimbagrāhe maṇir na mṛdādayaḥ॥
🇮🇳 3. हिन्दी अनुवाद (भावार्थ सहित)
गुरु विद्या को जैसे बुद्धिमान (प्राज्ञ) को प्रदान करते हैं, वैसे ही मूर्ख (जड़) को भी देते हैं।
परंतु यह विद्या न तो दोनों की बौद्धिक शक्ति को उत्पन्न करती है, और न ही उसे नष्ट करती है।
फिर भी, परिणाम में बहुत बड़ा भेद होता है – जैसे कि स्वच्छ मणि प्रतिबिंब को ग्रहण कर सकती है, किन्तु मिट्टी या गंदे पदार्थ नहीं कर सकते।
🧠 4. व्याकरणिक विश्लेषण
पद | प्रकार | अर्थ |
---|---|---|
वितरति | क्रिया | देता है |
गुरुः | पुं. प्रथमा | गुरु |
प्राज्ञे | पुं. सप्तमी | बुद्धिमान को |
जडे | पुं. सप्तमी | मूर्ख को |
ज्ञाने | नपुं. सप्तमी | ज्ञान में |
शक्तिं | स्त्री. द्वितीया | शक्ति |
करोति | क्रिया | करता है |
अपहन्ति | क्रिया | हरण करता है |
भवति | क्रिया | होता है |
भूयान् भेदः | विशेषण + संज्ञा | अधिक भिन्नता |
फलं प्रति | द्वितीया | फल की दृष्टि से |
प्रभवति | क्रिया | सक्षम होता है |
शुचिः | विशेषण | स्वच्छ |
बिंबग्रहे | नपुं. सप्तमी | प्रतिबिंब ग्रहण में |
मणिः | पुं. प्रथमा | रत्न |
मृदादयः | पुं. बहुवचन | मिट्टी आदि |
🌐 5. आधुनिक सन्दर्भ (Modern Relevance)
- यह श्लोक शिक्षा प्रणाली, विद्यार्थियों की ग्रहण क्षमता और व्यक्ति की स्वभाविक योग्यता के संदर्भ में अत्यंत प्रासंगिक है।
- एक ही प्रकार की शिक्षा या संसाधन हर किसी को समान परिणाम नहीं देते। यह अंतःकरण की शुद्धता, मेहनत, और बुद्धि की तीव्रता पर निर्भर करता है।
- जैसे आज के समय में सभी को समान तकनीक, पाठ्यक्रम और शिक्षक मिलते हैं, लेकिन परिणामों में अंतर होता है।
🎭 6. संवादात्मक नीति कथा (एक लघु कथा)
रत्न और मिट्टी – एक गुरु की परीक्षा
एक गुरु के दो शिष्य थे – एक अत्यंत प्रतिभावान और दूसरा कुछ मंदबुद्धि। दोनों को समान शिक्षा दी जाती थी।
एक दिन किसी ने गुरु से पूछा –
“आप दोनों को एक जैसी शिक्षा क्यों देते हैं?”
गुरु मुस्कराए और उन्हें एक रत्न और एक मिट्टी का गोला दिया।
बोले:
“इन दोनों को सूर्य के सामने रखो। देखो किसमें प्रकाश प्रतिबिंबित होता है।”
उत्तर स्पष्ट था – रत्न चमकने लगा, और मिट्टी निस्तेज रही।
गुरु बोले:
“मैं प्रकाश दे सकता हूँ, पर उसका प्रतिबिंब उसी में प्रकट होता है जो भीतर से पारदर्शी और स्वच्छ है। मैं दोनों को ज्ञान देता हूँ, पर उसका फल उनकी आंतरिक पात्रता पर निर्भर करता है।”
📘 7. नैतिक शिक्षा (Moral Insight)
- शिक्षा केवल बाह्य दान नहीं है, वह आंतरिक शुद्धता और ग्रहणशीलता पर फल देती है।
- गुरु सभी को समान रूप से ज्ञान देते हैं, परंतु फल सबके लिए समान नहीं होता।
- स्वयं को मणि की तरह शुद्ध और पारदर्शी बनाइए, तभी ज्ञान का प्रतिबिंब स्पष्ट होगा।
📌 8. निष्कर्ष
यह श्लोक ज्ञान, शिक्षा और पात्रता की गहराई से पड़ताल करता है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम केवल ज्ञान अर्जन पर ध्यान न दें, बल्कि अपने अंतर को भी स्वच्छ, शांत और सजग बनाएं ताकि वह ज्ञान साकार हो सके।
"सत्य शिक्षक वह नहीं जो केवल पढ़ाए,बल्कि वह है जो हर हृदय को मणि बनाए।"