Navratri Special: माता वैष्णो देवी की अमर कथा | Mata Vaishno Devi Ki Amar Katha in Hindi

Sooraj Krishna Shastri
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Navratri Special: माता वैष्णो देवी की अमर कथा | Mata Vaishno Devi Ki Amar Katha in Hindi

📍 तीर्थ का महत्त्व

माता वैष्णो देवी का पवित्र धाम जम्मू-कश्मीर के त्रिकूट पर्वत पर समुद्र तल से लगभग 5,200 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। आधार स्थल कटरा से मंदिर की दूरी लगभग 14 किलोमीटर है।
यह स्थल भारत में तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद सबसे अधिक दर्शनों वाला तीर्थ है। लाखों श्रद्धालु प्रतिवर्ष यहाँ माता के दर्शन कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।

माता के संबंध में अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं, परन्तु मुख्यतः दो कथाएँ विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं –


🕉️ प्रथम कथा : भक्त श्रीधर और भैरवनाथ की कथा

श्रीधर का भंडारा और माता का आगमन

  • वर्तमान कटरा से निकट हंसाली ग्राम में पंडित श्रीधर रहते थे। वे नि:संतान थे और गहन भक्ति से देवी की उपासना करते थे।

  • एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन हेतु अनेक कुँवारी कन्याओं को आमंत्रित किया। उन्हीं में से एक दिव्य कन्या के रूप में माँ वैष्णो स्वयं अवतरित हुईं।

  • पूजन उपरांत सभी कन्याएँ चली गईं, परंतु माँ वहीं रहीं और श्रीधर से कहा – “सबको भंडारे का निमंत्रण दे आओ।”

  • श्रीधर ने गाँव-गाँव जाकर निमंत्रण दिया, यहाँ तक कि योगिराज गोरखनाथ, उनके शिष्य भैरवनाथ तथा अन्य साधुओं को भी आमंत्रित कर लिया।

Navratri Special: माता वैष्णो देवी की अमर कथा | Mata Vaishno Devi Ki Amar Katha in Hindi
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दिव्य पात्र और भैरवनाथ का अहंकार

  • भंडारे में अनगिनत लोग उपस्थित हुए, किंतु देवी के चमत्कार से एक अद्भुत पात्र से सबके लिए अन्न परोसा गया।

  • जब देवी ने भैरवनाथ को भोजन परोसा, तो उसने मांस और मदिरा की माँग की।

  • देवी ने समझाया कि यह ब्राह्मण-गृह का भोजन है, यहाँ मांसाहार नहीं होता। परंतु भैरवनाथ अभिमानवश अपने मत पर अड़ा रहा और अंततः माता को पकड़ने का प्रयास किया।

माता का पलायन और बाणगंगा

  • माता तत्काल वायु रूप धारण कर त्रिकूट पर्वत की ओर उड़ चलीं। भैरवनाथ उनके पीछे दौड़ा।

  • इस दौरान पवनपुत्र हनुमानजी माता की रक्षा में साथ थे।

  • जब हनुमान को प्यास लगी, तो माता ने धनुष से बाण चलाकर पर्वत से जलधारा निकाली। वही जलधारा आज बाणगंगा कहलाती है।

गुफा-तपस्या और अर्धकुमारी

  • माता ने नौ माह तक एक गुफा में तप किया। यह गुफा आज अर्धकुमारी (गर्भजून) के नाम से विख्यात है।

  • यहाँ से आगे चरणपादुका नामक स्थान है, जहाँ माता ने पीछे मुड़कर भैरव को देखा था।

भैरवनाथ का वध और मोक्ष

  • जब भैरव ने अंततः गुफा तक आकर माता पर आक्रमण किया, तब माता ने महाकाली रूप धारण कर उसका वध कर दिया।

  • उसका सिर भवन से 8 किलोमीटर दूर जा गिरा, जहाँ आज भैरव मंदिर स्थित है।

  • भैरव ने मृत्यु उपरांत क्षमा माँगी। माता ने उसे वरदान दिया कि “मेरे दर्शन तभी पूर्ण माने जाएँगे जब भक्त तुम्हारे दर्शन भी करेंगे।”

  • इसी कारण आज भी श्रद्धालु माता के दर्शन के पश्चात भैरव बाबा के दर्शन करने जाते हैं।

पिंडी स्वरूप और परंपरा

  • माता ने अंततः त्रिकूट गुफा में तीन पवित्र पिंडियों के रूप में अवतार लिया –

    1. महाकाली (दायीं ओर)

    2. महालक्ष्मी (बायीं ओर)

    3. महासरस्वती (मध्य में)

  • यही तीनों मिलकर माँ वैष्णो देवी के रूप में पूजित हैं।

  • पंडित श्रीधर एवं उनके वंशजों ने प्राचीन काल से इनकी पूजा-अर्चना की परंपरा जारी रखी।


🕉️ द्वितीय कथा : त्रेतायुग और भगवान श्रीराम का आशीर्वाद

त्रिकुटा का जन्म

  • त्रेतायुग में पंडित रत्नाकर के घर एक कन्या का जन्म हुआ।

  • यह कन्या त्रिकुटा नाम से जानी गई और विष्णु अंश से उत्पन्न होने के कारण वैष्णवी कहलायी।

तपस्या और भगवान श्रीराम से भेंट

  • 9 वर्ष की आयु में वैष्णवी को ज्ञात हुआ कि भगवान विष्णु इस युग में रामावतार ले चुके हैं।

  • वे कठोर तप कर भगवान राम को पति रूप में पाने की अभिलाषा करने लगीं।

  • जब श्रीराम सीता की खोज करते हुए रामेश्वर पहुँचे, तब त्रिकुटा ने उनसे विवाह की इच्छा प्रकट की।

श्रीराम का वचन

  • श्रीराम ने कहा – “मैंने इस जन्म में एकपत्नीव्रत का संकल्प लिया है। किंतु कलियुग में जब मैं कल्कि अवतार लूँगा, तब तुम्हें पत्नी रूप में स्वीकार करूँगा।”

  • उन्होंने आदेश दिया कि –
    “तब तक तुम हिमालय के त्रिकूट पर्वत पर तप कर, भक्तों के दुःख दूर करती रहो। नवरात्र में तुम्हारी पूजा होगी और तुम सदा अमर रहोगी।”

नवरात्र की उत्पत्ति

  • जब श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त की, तब माता ने नवरात्र-पूजन की परंपरा स्थापित की।

  • आज भी नवरात्र में रामायण पाठ और माता की पूजा की यह परंपरा जीवित है।


🌺 निष्कर्ष : अमर शक्ति, अमर धाम

इस प्रकार माता वैष्णो देवी का धाम केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि भक्ति, तपस्या और मोक्ष का प्रतीक है।
यहाँ की हर पगडंडी, हर गुफा, हर जलधारा माता के चमत्कार और अनुग्रह की साक्षी है।
भक्त विश्वास करते हैं कि जो भी सच्चे मन से माता को पुकारता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।

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