श्राद्ध Vidhi: Pitra Paksha में Shraaddh करने की विधि, Panchbali Vidhan, Niyam और महत्व

Sooraj Krishna Shastri
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श्राद्ध Vidhi: Pitra Paksha में Shraaddh करने की विधि, Panchbali Vidhan, Niyam और महत्व


✨ श्राद्ध का महत्व

सनातन धर्म में पितरों को देवतुल्य माना गया है। जिस प्रकार देवताओं की पूजा करने से आशीर्वाद प्राप्त होता है, उसी प्रकार पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध का विधान है। पितृ पक्ष के 15 दिनों में पितर अपने वंशजों से तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध की आशा रखते हैं। शास्त्रों के अनुसार यदि समय पर श्राद्ध न किया जाए तो पितर अप्रसन्न होकर श्राप दे सकते हैं, जिससे परिवार पर विपत्तियाँ आती हैं।

श्राद्ध करने का मूल उद्देश्य –

  • पितरों की आत्मा की शांति।

  • अपने कुल में सुख, समृद्धि और आरोग्य का वास।

  • पितृ दोष का शमन।

  • पितरों के आशीर्वाद से आयु, धन, विद्या, संतान और मोक्ष की प्राप्ति।

श्राद्ध Vidhi: Pitra Paksha में Shraaddh करने की विधि, Panchbali Vidhan, Niyam और महत्व
श्राद्ध Vidhi: Pitra Paksha में Shraaddh करने की विधि, Panchbali Vidhan, Niyam और महत्व



🔱 श्राद्ध में पंचबली का महत्व

श्राद्ध केवल ब्राह्मण भोज और तर्पण तक सीमित नहीं है, बल्कि पंचबली इसका अनिवार्य अंग है। पंचबली का अर्थ है – सभी जीवों के प्रति कृतज्ञता और तृप्ति का भाव।

🔹 पंचबली-विधि

(संकल्प के समय तिल, अक्षत और पुष्प लेकर संकल्प करें)

  1. गोबलि (गाय के लिए)

    • श्लोक:
      “ऊँ सौरभेय्यः सर्वहिताः पवित्राः पुण्यराशयः।
      प्रतिगृह्वन्तु मे ग्रासं गावस्त्रैलोक्यमातरः।। इदं गोभ्यो न मम।”

    • विधि: पश्चिम दिशा की ओर पुष्प-पत्ते दिखाकर गाय को भोजन दें।

  2. श्वानबलि (कुत्ते के लिए)

    • श्लोक:
      “द्वौ श्वानौ श्यामशबलौ वैवस्वतकुलोद्धवौ।
      ताभ्यामन्नं प्रयच्छामि स्यातामेतावहिंसकौ।। इदं श्वभ्यां न मम।”

    • विधि: कुत्ते को अन्न दें। इस समय जनेऊ कान पर चढ़ाना अनिवार्य है।

  3. काकबलि (कौओं के लिए)

    • श्लोक:
      “ऊँ ऐन्द्रवारूणवायव्या याम्या वै नैर्ऋतास्तथा।
      वायसाः प्रतिगृह्वन्तु भूमौ पिण्डं मयोज्झितम्।।
      इदमन्नं वायसेभ्यो न मम।”

    • विधि: अन्न भूमि पर या छत पर रखकर कौओं को अर्पित करें।

  4. देवादिबलि (देवता एवं सूक्ष्म जीवों के लिए)

    • श्लोक:
      “ऊँ देवा मनुष्याः पशवो वयांसि सिद्धाः
      सयक्षोरगदैत्यसंघाः।
      प्रेताः पिशाचास्तरवः समस्ता
      ये चान्नमिच्छन्ति मया प्रदत्तम्।।
      इदमन्नं देवादिभ्यो न मम।”

    • विधि: अग्नि में आहुति देकर देवताओं एवं अदृश्य प्राणियों के लिए अन्न समर्पित करें।

  5. पिपीलिकाबलि (चींटियों और सूक्ष्म प्राणियों के लिए)

    • श्लोक:
      “पिलीलिकाः कीटपतंगकाद्या बुभुक्षिताः कर्मनिबन्धबद्धाः।
      तेषां हि तृप्त्यर्थमिदं मयान्नं तेभ्यो विसृष्टं सुखिनो भवन्तु।।
      इदमन्नं पिपीलिकादिभ्यो न मम।”

    • विधि: अन्न का एक भाग चींटियों और अन्य सूक्ष्म जीवों हेतु बाहर रख दें।


🍲 ब्राह्मण भोजन की विधि

  • पंचबली के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं।

  • मंत्र:
    “यत्फलं कपिलादाने कार्तिक्यां ज्येष्ठपुष्करे।
    तत्फलं पाण्डवश्रेष्ठ विप्राणां पादसेचने।।“

  • ब्राह्मणों को पांव धोकर, मौन रहकर भोजन कराना चाहिए।

  • भोजन के बाद वस्त्र, द्रव्य और दक्षिणा देकर तिलक कर विदा करें।


📜 श्राद्धकर्म के नियम

  1. गौ उत्पादनों का प्रयोग करें – घी, दूध, दही का प्रयोग करें।

  2. चाँदी के पात्र का उपयोग श्रेष्ठ – जल अर्पण विशेष पुण्यकारी।

  3. दोनों हाथों से परोसें – एक हाथ से परोसा अन्न राक्षस ग्रहण कर लेते हैं।

  4. मौन रहकर भोजन कराएं – ब्राह्मण मौन रहेंगे तो पितर प्रसन्न होते हैं।

  5. शस्त्र से मारे गए पितरों का श्राद्ध – चतुर्दशी तिथि पर विशेष।

  6. ब्राह्मण का होना अनिवार्य – ब्राह्मण हीन श्राद्ध व्यर्थ।

  7. श्राद्ध सामग्री – जौ, तिल, कुश, सरसों आदि।

  8. दूसरी भूमि पर श्राद्ध वर्जित – परंतु वन, तीर्थ, मंदिर पर किया जा सकता है।

  9. योग्य ब्राह्मण का चयन करें – पितरों की तृप्ति हेतु।

  10. जमाई, भांजा और बहन को भोजन कराएं – अन्यथा देवता भी भोजन नहीं करते।

  11. भिक्षुक को भोजन कराएं – याचक को भगाने से फल नष्ट।

  12. समय – श्राद्ध प्रातः या संध्या को न करें। दोपहर का कुतपकाल ही श्रेष्ठ।

  13. शुक्लपक्ष वर्जित – श्राद्ध के लिए कृष्णपक्ष ही श्रेष्ठ।

  14. पात्र एवं आसन – सोना, चाँदी, तांबा उत्तम; केले का पत्ता निषिद्ध।

  15. निषिद्ध खाद्य पदार्थ – उड़द, मसूर, मूली, बासी अन्न, काला नमक आदि।

  16. तुलसी का महत्व – तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर संतुष्ट रहते हैं।

  17. श्राद्ध का गुप्त स्वरूप – पिंडदान पर साधारण लोगों की दृष्टि नहीं पड़नी चाहिए।


🕉 श्राद्ध की तिथियाँ

  • प्रतिपदा – नाना-नानी के लिए।

  • पंचमी – अविवाहित मृत्यु वालों के लिए।

  • नवमी (मातृनवमी) – माता या सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए।

  • एकादशी-द्वादशी – वैष्णव संन्यासियों के लिए।

  • त्रयोदशी – बालकों के लिए।

  • चतुर्दशी – अकाल मृत्यु वालों के लिए।

  • अमावस्या (सर्वपितृ मोक्ष) – सभी पितरों के लिए।


🪔 श्राद्ध का वास्तविक फल

श्रद्धा और भावना से किया गया श्राद्ध ही पितरों तक पहुँचता है। यह भोजन सूक्ष्म रूप में परिवर्तित होकर जिस योनि में प्राणी है, उसी रूप में तृप्ति देता है –

  • देव योनि → अमृत रूप में।

  • गंधर्व → भोग रूप में।

  • पशु → घास रूप में।

  • नाग → वायु रूप में।

  • प्रेत/दानव/यक्ष → विविध अन्न-पान रूप में।


✨ विशेष मंत्र (वायु पुराण)

“देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत।।“

यह मंत्र श्राद्धकर्मी को आयु, आरोग्य, धन और लक्ष्मी प्रदान करता है।


📋 श्राद्ध मार्गदर्शिका (तालिका रूप में)

श्रेणी विवरण
श्राद्ध का महत्व पितरों की आत्मा की शांति, पितृ दोष शमन, परिवार में सुख-समृद्धि, पितरों के आशीर्वाद से आयु-धन-संतान की प्राप्ति
श्राद्ध का समय (कुतपकाल) दोपहर (11 बजे से 3 बजे के बीच), शुक्लपक्ष में श्राद्ध वर्जित, केवल कृष्णपक्ष में श्राद्ध करें
पंचबली 1. गोबलि (गाय के लिए) 2. श्वानबलि (कुत्ते के लिए) 3. काकबलि (कौओं के लिए) 4. देव-बलि (देव व सूक्ष्म जीवों के लिए) 5. पिपीलिकाबलि (चींटियों के लिए)
ब्राह्मण भोजन विधि मौन रहकर भोजन कराना, दोनों हाथों से परोसना, भोजन के बाद दक्षिणा/वस्त्र देकर विदा करना
नियम 1. गौ उत्पादनों का उपयोग 2. चाँदी का पात्र उत्तम 3. जमाई, भांजा और बहन को भोजन कराना 4. भिक्षुक को न भगाना 5. तुलसी का उपयोग अनिवार्य 6. श्राद्ध गुप्त रूप से करना
निषिद्ध खाद्य पदार्थ उड़द, मसूर, मूली, बासी अन्न, काला नमक, ओला पड़ा अन्न, चाय/कॉफी, प्याज-लहसुन
विशेष तिथियाँ प्रतिपदा – नाना-नानी पंचमी – अविवाहित मृत्यु वालों के लिए नवमी (मातृनवमी) – माता या सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए एकादशी-द्वादशी – वैष्णव संन्यासी त्रयोदशी – बालकों के लिए चतुर्दशी – अकाल मृत्यु वालों के लिए अमावस्या – सर्वपितृ मोक्ष, सभी पितरों के लिए
फल देव योनि → अमृत रूप गंधर्व → भोग रूप पशु → घास रूप नाग → वायु रूप प्रेत/दानव/यक्ष → अन्न-पान रूप

📌 निष्कर्ष

श्राद्ध केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि कृतज्ञता, स्मृति और परिवार की परंपरा का प्रतीक है। यह जीवित और मृत, दोनों के बीच सेतु का कार्य करता है। पितृ पक्ष में श्रद्धा और विधि पूर्वक किया गया श्राद्ध पितरों को संतुष्ट कर हमें सुख, समृद्धि और मोक्ष का मार्ग प्रदान करता है।

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