True Leadership shloka: संस्कृत श्लोक "सम्पदि यस्य न हर्षो विपदि विषादो रणे च धीरत्वम्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
"यह श्लोक बताता है कि जो व्यक्ति समृद्धि में अहंकार नहीं करता, विपत्ति में विषाद से नहीं टूटता और युद्ध या संकट में धैर्य नहीं खोता, वही वास्तव में त्रिभुवन का भूषण है। ऐसे पुत्र को जन्म देना भी किसी माता के लिए दुर्लभ होता है। जीवन और नेतृत्व (Leadership) के संदर्भ में यह शिक्षा देती है कि सच्चा नेता वही है जो सफलता और असफलता दोनों स्थितियों में संतुलन बनाए रखे। आधुनिक युग में यह श्लोक हमें मैनेजमेंट, पर्सनैलिटी डेवलपमेंट और Emotional Balance का अमूल्य संदेश प्रदान करता है।"
📜 मूल श्लोक (Devanagari)
सम्पदि यस्य न हर्षो विपदि विषादो रणे च धीरत्वम्।
तं भुवनत्रयतिलकं जनयति जननी सुतं विरलम्॥
🔤 अंग्रेज़ी ट्रान्सलिटरेशन (IAST)
sampadi yasya na harṣo vipadi viṣādo raṇe ca dhīratvam।
taṃ bhuvanatrayatilakaṃ janayati jananī sutaṃ viralam॥
🇮🇳 हिन्दी अनुवाद
"जिस मनुष्य को समृद्धि के समय हर्षोन्माद नहीं होता, विपत्ति में विषाद नहीं होता और रणभूमि में धैर्य नहीं खोता—ऐसे त्रिभुवन के भूषण पुत्र को कोई माता अत्यन्त दुर्लभता से जन्म देती है।"
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True Leadership shloka: संस्कृत श्लोक "सम्पदि यस्य न हर्षो विपदि विषादो रणे च धीरत्वम्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
🪔 शब्दार्थ
- सम्पदि — समृद्धि, ऐश्वर्य, सफलता के समय
- यस्य — जिसका
- न हर्षः — हर्ष (अत्यधिक प्रसन्नता, उन्माद) नहीं
- विपदि — विपत्ति, संकट के समय
- विषादः — शोक, निराशा
- रणे — युद्ध में (चुनौती, संघर्ष में)
- धीरत्वम् — धैर्य, स्थिरचित्तता
- तं — उस (व्यक्ति को)
- भुवनत्रयतिलकम् — तीनों लोकों का भूषण, आभूषण
- जनयति — जन्म देती है
- जननी — माता
- सुतम् — पुत्र
- विरलम् — दुर्लभ, बहुत कम
📖 व्याकरणात्मक विश्लेषण
- सम्पदि, विपदि, रणे → सप्तमी विभक्ति (locative singular) = "समृद्धि में", "विपत्ति में", "रण में"।
- यस्य → सम्बन्धवाचक सर्वनाम (whose)।
- न हर्षः, न विषादः → प्रथमा विभक्ति (subject in nominative case)।
- धीरत्वम् → भाववाचक संज्ञा (state of firmness)।
- तं ... जनयति जननी → कर्म और कर्ता संबंध: माता (कर्त्ता) ऐसे पुत्र को (कर्म) जन्म देती है।
- भुवनत्रयतिलकं → समस्त पद; "तीनों लोकों का तिलक/आभूषण" = अलंकारिक विशेषण।
➡ श्लोक की रचना "समता" (equanimity) के आदर्श को दर्शाती है—जहाँ सुख-दुःख, लाभ-हानि और युद्ध/चुनौती समान भाव से स्वीकारे जाते हैं।
🌍 आधुनिक संदर्भ
- आज की कॉरपोरेट दुनिया में यह श्लोक लीडरशिप के लिए सटीक संदेश है:
- सफलता में अहंकार और अति-उल्लास से बचना।
- असफलता में निराश न होना।
- संकट या प्रतिस्पर्धा की स्थिति में स्थिरचित्त रहना।
- व्यक्तिगत जीवन में यह संदेश देता है कि समता ही चरित्र की असली पहचान है।
- समाज में ऐसा संतुलित, धैर्यवान और विवेकशील व्यक्ति ही वास्तव में सबके लिए आदर्श बनता है।
🗣 संवादात्मक नीति कथा
दृश्य:
एक राजा अपने पुत्र को शिक्षा दे रहा है—
राजा: "पुत्र! क्या तुम जानते हो सच्चा नायक कौन है?"
पुत्र: "शत्रु को हराने वाला?"
राजा: "नहीं! सच्चा नायक वही है—
जो ऐश्वर्य में उन्मत्त न हो, विपत्ति में दुख से न टूटे, और रणभूमि में धैर्य न खोए। ऐसे पुत्र को जन्म देना किसी माता के लिए भी दुर्लभ सौभाग्य है।"
पुत्र: "तो मैं केवल युद्ध में नहीं, जीवन के हर उतार-चढ़ाव में धैर्यवान रहूँगा।"
✅ निष्कर्ष
यह श्लोक हमें सिखाता है:
- समता (equanimity) ही जीवन का सबसे बड़ा गुण है।
- जो व्यक्ति संपत्ति में संयमित, विपत्ति में धैर्यवान और संघर्ष में दृढ़ रहता है, वही समाज और तीनों लोकों का भूषण है।
- ऐसे व्यक्ति का जन्म अत्यन्त दुर्लभ होता है, और वही सच्चा आदर्श बनता है।
👉 संदेश: “जीवन का आभूषण धन या पद नहीं, बल्कि धैर्य और समता है।”