This Sanskrit Shloka “असेवितेश्वरद्वारम् अदृष्टविरहव्यथम् अनुक्तक्लीबवचनं धन्यं कस्यापि जीवनम्” beautifully teaches the art of living with self-respect, courage, and detachment.
In Hindi, it means – धन्य है वह जीवन जिसने कभी अमीरों के द्वार पर प्रतीक्षा नहीं की, विरह की पीड़ा नहीं सही, और कायर वचन नहीं बोले।
It’s a timeless message for the modern world: Live with dignity, speak truth with courage, and stay free from dependence and emotional weakness.
Explore its word meaning, grammar, modern relevance, and moral essence in this detailed analysis blending ancient Sanskrit wisdom with today’s life lessons. 🌿
Asevit Eshwar Dwaram: स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता का संदेश | Secret of a Blessed Life in Sanskrit Wisdom
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| Asevit Eshwar Dwaram: स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता का संदेश | Secret of a Blessed Life in Sanskrit Wisdom |
🕉️ श्लोकः
🔤 Transliteration (IAST):
🪶 शब्दार्थ (Word-by-word Meaning):
| संस्कृत पद | अर्थ |
|---|---|
| असेवित-ईश्वर-द्वारम् | जिसे धनी अथवा सामर्थ्यवान के द्वार पर जाकर सेवा न करनी पड़ी हो |
| अदृष्ट-विरह-व्यथम् | जिसने कभी प्रियजन के वियोग की वेदना न देखी हो |
| अनुक्त-क्लीब-वचनम् | जिसने कभी दुर्बलता, कायरता या असत्य से युक्त शब्द न बोले हों |
| धन्यम् | धन्य, श्रेष्ठ, सौभाग्यशाली |
| कस्यापि | किसी एक (दुर्लभ) व्यक्ति का |
| जीवनम् | जीवन |
🧩 व्याकरणात्मक विश्लेषण (Grammatical Analysis):
- असेवित — कृदन्त रूप (कृत्प्रत्यय ‘क्त’ से बना) — √सेव् (सेवा करना) + क्त = असेवित (जिसकी सेवा नहीं की गई)।
- ईश्वर-द्वारम् — समास → तत्पुरुष समास (ईश्वरस्य द्वारम्)।
- अदृष्ट-विरह-व्यथम् — बहुव्रीहि समास (जिसने विरह की व्यथा नहीं देखी)।
- अनुक्त-क्लीब-वचनम् — बहुव्रीहि समास (जिसने क्लीब — अर्थात् निर्बल शब्द नहीं कहे)।
- धन्यम् जीवनम् — नपुंसकलिङ्गम्, प्रथमा एकवचनम्।
👉 पूरा श्लोक एक बहुव्रीहि समासात्मक वाक्य संरचना है, जो “धन्यं जीवनम्” को विशेषित करता है — ऐसा जीवन धन्य है।
💫 भावार्थ (Meaning and Interpretation):
धन्य है उस मनुष्य का जीवन —
- जिसने कभी धनवानों या सत्ताधीशों के द्वार पर जाकर याचना न की हो,
- जिसने विरह या वियोग की वेदना न झेली हो,
- और जिसने कायरता, भय या असत्य से युक्त शब्द न बोले हों।
ऐसा जीवन अत्यन्त दुर्लभ है — क्योंकि यह आत्मसम्मान, संयम और सत्यवचन से युक्त है।
🪷 नीति सन्देश (Moral Essence):
यह श्लोक तीन आत्मिक स्वतंत्रताओं की घोषणा करता है —
- आर्थिक स्वतंत्रता — जो व्यक्ति अपने श्रम से जीविकोपार्जन करता है, उसे किसी के द्वार पर नहीं जाना पड़ता।
- भावनात्मक स्थैर्य — जो व्यक्ति मोह-माया के पार है, उसे विरह की व्यथा नहीं सताती।
- आत्मिक साहस — जो व्यक्ति सत्य के मार्ग पर अडिग है, वह कभी कायर वचन नहीं बोलता।
🗣️ संवादात्मक नीति कथा (Dialogical Nīti Katha):
🌍 आधुनिक सन्दर्भ (Modern Context):
आज के समाज में यह श्लोक एक जीवन-दर्शन बन सकता है —
- “असेवितेश्वरद्वारम्” — आज यह कहता है: स्वावलम्बी बनो, आत्मसम्मान को न खोओ।
- “अदृष्टविरहव्यथम्” — भावनात्मक परिपक्वता विकसित करो; मोह या आसक्ति में अपने को न तोड़ो।
- “अनुक्तक्लीबवचनम्” — सत्य बोलो, पर निर्भीक होकर; जीवन में न कमजोरी हो न असत्य।
जो इन तीन सिद्धांतों को धारण करता है, उसका जीवन वास्तव में धन्य और मुक्त होता है।
🪔 निष्कर्ष (Conclusion):
“स्वावलम्बन, वैराग्य और सत्यवादिता — यही धन्य जीवन के तीन स्तम्भ हैं।”जिसने इन तीनों को साध लिया, उसे न किसी के द्वार पर जाना पड़ता है,न विरह में जलना पड़ता है, न ही कायर वचन बोलने पड़ते हैं।वही वास्तव में जीवन के अर्थ को जानता है।

