This post presents the complete Shaligram Stotram in Sanskrit with Hindi translation (भावार्थ सहित). शालग्राम शिला भगवान विष्णु का साक्षात प्रतीक मानी जाती है, जिनकी पूजा से पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस स्तोत्र में श्रीकृष्ण और श्रीराम के रूपों का गुणगान, शालग्राम शिलाओं के चिह्नों का रहस्य, और शालग्राम जल के आध्यात्मिक लाभों का वर्णन मिलता है। Regular recitation of Shaligram Stotram brings peace, spiritual progress, and divine grace of Lord Vishnu. यह लेख शालग्राम शिला की उत्पत्ति, पूजन-विधि, तथा भक्ति की पारंपरिक व्याख्या के साथ आध्यात्मिक अनुभव को गहराई से प्रस्तुत करता है।
Shaligram Stotram in Sanskrit with Hindi Meaning | पूर्ण श्रीशालग्रामस्तोत्रम् भावार्थ सहित | Shaligram Shila Puja, Significance & Benefits
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| Shaligram Stotram in Sanskrit with Hindi Meaning | पूर्ण श्रीशालग्रामस्तोत्रम् भावार्थ सहित | Shaligram Shila Puja, Significance & Benefits |
🌿 शालग्रामस्तोत्रम् (श्लोक सहित भावार्थ सहित हिंदी अनुवाद) 🌿
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🌼 मंगलाचरण
श्लोक १
श्रीरामं सह लक्ष्मणं सकरुणं सीतान्वितं सात्त्विकं
वैदेहीमुखपद्मलुब्धमधुपं पौलस्त्वसंहारिणम् ।
वन्दे वन्द्यपदांबुजं सुरवरं भक्तानुकंपाकरं
शत्रुघ्नेन हनूमता च भरतेनासेवितं राघवम् ॥
भावार्थ —
मैं उस श्रीराघव (श्रीराम) को नमस्कार करता हूँ जो लक्ष्मण और सीता के साथ हैं, जिनका स्वभाव सात्त्विक है, जो वैदेही के मुखकमल पर आकर्षित भौंरे के समान आसक्त हैं, जिन्होंने रावण का संहार किया, जिनके चरण सभी देवताओं द्वारा पूज्य हैं, जो भक्तों पर करुणा करने वाले हैं, और जिनकी सेवा भरत, शत्रुघ्न तथा हनुमान करते हैं।
श्लोक २
जयति जनकपुत्री लोकभर्त्री नितान्तं
जयति जयति रामः पुण्यपुञ्जस्वरूपः ।
जयति शुभगराशिर्लक्ष्मणो ज्ञानरूपो
जयति किल मनोज्ञा ब्रह्मजाता ह्ययोध्या ॥
भावार्थ —
जनककन्या सीता, जो समस्त लोकों की पोषिका हैं, जय प्राप्त करें। पुण्यपुञ्जस्वरूप श्रीराम जय प्राप्त करें। शुभगुणों के समूह रूप लक्ष्मण जय प्राप्त करें। और ब्रह्मस्वरूप मनोहर अयोध्या भी सदा विजयी हो।
🌼 विनियोग
श्री गणेशाय नमः ।
अस्य श्रीशालग्रामस्तोत्रमन्त्रस्य श्रीभगवान् ऋषिः, नारायणो देवता, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीशालग्रामस्तोत्रमन्त्रजपे विनियोगः ॥
भावार्थ —
इस श्रीशालग्रामस्तोत्र के मन्त्र के ऋषि स्वयं भगवान हैं, देवता नारायण हैं, छंद अनुष्टुप है, और इसका जप श्रीशालग्राम की उपासना हेतु किया जाता है।
🌼 संवाद प्रारम्भ
युधिष्ठिर उवाच —
श्रीदेवदेव देवेश देवतार्चनमुत्तमम् ।
तत्सर्वं श्रोतुमिच्छामि ब्रूहि मे पुरुषोत्तम ॥ १॥
भावार्थ —
राजा युधिष्ठिर ने कहा — हे देवदेव, देवेश! मैं आपसे देवताओं की उत्तम पूजा विधि को सुनना चाहता हूँ। कृपया मुझे बताइए, हे पुरुषोत्तम।
श्रीभगवानुवाच —
गण्डक्यां चोत्तरे तीरे गिरिराजस्य दक्षिणे ।
दशयोजनविस्तीर्णा महाक्षेत्रवसुन्धरा ॥ २॥
भावार्थ —
भगवान बोले — गण्डकी नदी के उत्तरी तट पर, गिरिराज पर्वत के दक्षिण भाग में, दस योजन के विस्तार में एक महान पुण्यभूमि है।
शालग्रामो भवेद्देवो देवी द्वारावती भवेत् ।
उभयोः सङ्गमो यत्र मुक्तिस्तत्र न संशयः ॥ ३॥
भावार्थ —
जहाँ शालग्राम शिला (भगवान विष्णु का स्वरूप) और द्वारावती शिला (देवी लक्ष्मी का स्वरूप) का संगम होता है, वहाँ मुक्ति निश्चित प्राप्त होती है।
शालग्रामशिला यत्र यत्र द्वारावती शिला ।
उभयोः सङ्गमो यत्र मुक्तिस्तत्र न संशयः ॥ ४॥
भावार्थ —
जहाँ-जहाँ शालग्राम और द्वारावती शिला साथ स्थित होती हैं, वहाँ मोक्ष स्वतः प्राप्त होता है — इसमें कोई संदेह नहीं।
आजन्मकृतपापानां प्रायश्चित्तं य इच्छति ।
शालग्रामशिलावारि पापहारि नमोऽस्तु ते ॥ ५॥
भावार्थ —
जो व्यक्ति जन्म-जन्म के पापों का प्रायश्चित्त करना चाहता है, उसके लिए शालग्राम शिला का जल ही पापहारी है — उसे मेरा नमस्कार है।
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम् ।
विष्णोः पादोदकं पीत्वा शिरसा धारयाम्यहम् ॥ ६॥
भावार्थ —
भगवान विष्णु के चरणोदक का सेवन करने से अकाल मृत्यु और सभी रोग दूर हो जाते हैं। मैं उस पवित्र जल को सिर पर धारण करता हूँ।
शङ्खमध्ये स्थितं तोयं भ्रामितं केशवोपरि ।
अङ्गलग्नं मनुष्याणां ब्रह्महत्यादिकं दहेत् ॥ ७॥
भावार्थ —
शंख में जो जल होता है और जो केशव के ऊपर अर्पित होता है, वह मनुष्यों के शरीर से ब्रह्महत्या जैसे भीषण पापों को भी जला देता है।
स्नानोदकं पिवेन्नित्यं चक्राङ्कितशिलोद्भवम् ।
प्रक्षाल्य शुद्धं तत्तोयं ब्रह्महत्यां व्यपोहति ॥ ८॥
भावार्थ —
जो व्यक्ति शालग्राम शिला (चक्रांकित) के स्नान का जल पीता है, वह शुद्ध हो जाता है। यह जल ब्रह्महत्या जैसे पापों को भी नष्ट कर देता है।
अग्निष्टोमसहस्राणि वाजपेयशतानि च ।
सम्यक् फलमवाप्नोति विष्णोर्नैवेद्यभक्षणात् ॥ ९॥
भावार्थ —
जो व्यक्ति भगवान विष्णु का नैवेद्य ग्रहण करता है, वह सहस्रों अग्निष्टोम और सैकड़ों वाजपेय यज्ञों का फल प्राप्त करता है।
नैवेद्ययुक्तां तुलसीं च मिश्रितां विशेषतः पादजलेन विष्णोः ।
योऽश्नाति नित्यं पुरतो मुरारेः प्राप्नोति यज्ञायुतकोटिपुण्यम् ॥ १०॥
भावार्थ —
जो व्यक्ति भगवान विष्णु के पादोदक से मिश्रित तुलसी पत्र को प्रतिदिन श्रद्धा से ग्रहण करता है, वह करोड़ों यज्ञों के समान पुण्य अर्जित करता है।
खण्डिताः स्फुटिता भिन्ना वह्निदग्धास्तथैव च ।
शालग्रामशिला यत्र तत्र दोषो न विद्यते ॥ ११॥
भावार्थ —
यदि शालग्राम शिला टूटी, फूटी, फटी या अग्नि से जली हुई भी हो, तो भी उसमें कोई दोष नहीं होता।
न मन्त्रः पूजनं नैव न तीर्थं न च भावना ।
न स्तुतिर्नोपचारश्च शालग्रामशिलार्चने ॥ १२॥
भावार्थ —
शालग्राम शिला की पूजा के लिए किसी विशेष मंत्र, तीर्थ, भावना, स्तुति या उपचार की आवश्यकता नहीं होती।
ब्रह्महत्यादिकं पापं मनोवाक्कायसम्भवम् ।
शीघ्रं नश्यति तत्सर्वं शालग्रामशिलार्चनात् ॥ १३॥
भावार्थ —
मन, वचन और कर्म से उत्पन्न ब्रह्महत्या जैसे पाप भी शालग्राम शिला की पूजा करने से शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।
📖 श्लोक १४ — १५
संस्कृत श्लोक
नानावर्णमयं चैव नानाभोगेन वेष्टितम् ।
तथा वरप्रसादेन लक्ष्मीकान्तं वदाम्यहम् ॥ १४ ॥
नारायणोद्भवो देवश्चक्रमध्ये च कर्मणा ।
तथा वरप्रसादेन लक्ष्मीकान्तं वदाम्यहम् ॥ १५ ॥
हिंदी अनुवाद (भावार्थ)
जो शालग्राम शिला किसी रंग-वर्ण से न सजी हो, न किसी सांसारिक सामग्री से वेष्टित हो —
और वही, जिसके मध्य में चक्रस्थ कर्म से उत्पन्न नारायण हैं —
मैं कहता हूँ कि वह लक्ष्मी के प्रिय हैं, कृपा प्राप्त उन्होंने वही।
📖 श्लोक १६
संस्कृत श्लोक
कृष्णे शिलातले यत्र सूक्ष्मं चक्रं च दृश्यते ।
सौभाग्यं सन्ततिं धत्ते सर्व सौख्यं ददाति च ॥ १६ ॥
हिंदी अनुवाद (भावार्थ)
जहाँ शालग्राम शिला के तल पर सूक्ष्म चक्र भी दृष्टिगोचर हो, वहाँ वह शिला सतत सौभाग्य और सम्पन्नता देती है, और सर्व प्रकार की सुख-समृद्धि प्रदान करती है।
📖 श्लोक १७
संस्कृत श्लोक
वासुदेवस्य चिह्नानि दृष्ट्वा पापैः प्रमुच्यते ।
श्रीधरः सुकरे वामे हरिद्वर्णस्तु दृश्यते ॥ १७ ॥
हिंदी अनुवाद (भावार्थ)
जब कोई व्यक्ति वासुदेव के (भगवान विष्णु के) चिह्नों को देखता है, तो उसके पाप नष्ट हो जाते हैं।
वाम (बाएँ) ओर वह श्रीधर (विष्णु का नाम) दिखाई देता है, और हरि का स्वर्णमुखी रंग दृष्टिगोचर होता है।
📖 श्लोक १८
संस्कृत श्लोक
वराहरूपिणं देवं कूर्माङ्गैरपि चिह्नितम् ।
गोपदं तत्र दृश्येत वाराहं वामनं तथा ॥ १८ ॥
हिंदी अनुवाद (भावार्थ)
वह शिला वराह (वराह अवतार) रूपिणे देव को भी रूप में दर्शाती है,
और जहाँ कूर्मांग (कछुए की आकृति) भी चिह्नित हों, वहाँ गोपद (गौ का पदचिन्ह) भी दिखाई दे,
और साथ ही वामन अवतार भी दृष्टि पाते हैं।
📖 श्लोक १९
संस्कृत श्लोक
पीतवर्णं तु देवानां रक्तवर्णं भयावहम् ।
नारसिंहो भवेद्देवो मोक्षदं च प्रकीर्तितम् ॥ १९ ॥
हिंदी अनुवाद (भावार्थ)
देवों में पीतवर्ण स्वाभाविक है, और रक्तवर्ण भय उत्पन्न करता है।
परन्तु नारसिंह रूप का यह देव (विष्णु) मुक्ति दाता कहलाया है।
📖 श्लोक २०
संस्कृत श्लोक
शङ्खचक्रगदाकूर्माः शङ्खो यत्र प्रदृश्यते ।
शङ्खवर्णस्य देवानां वामे देवस्य लक्षणम् ॥ २० ॥
हिंदी अनुवाद (भावार्थ)
जहाँ शालग्राम शिला में शंख, चक्र, गदा और कूर्म (अवतार रूप) प्रकट हों,
वहाँ वह शिला देवों के लिए शंखवर्ण (पवित्र सोंदर्य) कहलाई जाती है —
और उसी ओर (वाम ओर) देव का लक्षण भी निहित है।
📖 श्लोक २१
संस्कृत श्लोक
दामोदरं तथा स्थूलं मध्ये चक्रं प्रतिष्ठितम् ।
पूर्णद्वारेण सङ्कीर्णा पीतरेखा च दृश्यते ॥ २१ ॥
हिंदी अनुवाद (भावार्थ)
वह शिला दामोदर (विष्णु का नाम) रूपिणी है तथा स्थूल आकार की है;
उसके मध्य में चक्र प्रतिष्ठित है।
उसके द्वार पूर्ण (सम्पूर्ण) हैं, किन्तु संकीर्ण पीतरेखा भी दिखाई देती है।
📖 श्लोक २२
संस्कृत श्लोक
छत्राकारे भवेद्राज्यं वर्तुले च महाश्रियः ।
चिपिटे च महादुःखं शूलाग्रे तु रणं ध्रुवम् ॥ २२ ॥
हिंदी अनुवाद (भावार्थ)
यदि शिला छत्र (छत्राकार) हो तो वह राज्यवती होती है,
जब वह वर्तुलाकार हो, तो उसमें बड़ी महाश्री होती है।
परन्तु यदि शिला चिपिटे (समलम्ब रूप) की हो, तो उसमें बड़े दुःख हैं,
और शूल (त्रिशूल) के अग्रभाग पर स्थित हो तो रण (युद्ध) निश्चित है।
📖 श्लोक २३
संस्कृत श्लोक
ललाटे शेषभोगस्तु शिरोपरि सुकाञ्चनम् ।
चक्रकाञ्चनवर्णानां वामदेवस्य लक्षणम् ॥ २३ ॥
हिंदी अनुवाद (भावार्थ)
शिला के ललाट (माथे) पर शेषभोग (शेष का अद्भुत अंग) हो,
और शीर्ष पर स्वर्ण की सुकोश (सौंदर्य),
तो शिला में चक्र और स्वर्ण वर्ण हैं — ये वामदेव (विष्णु) के लक्षण हैं।
📖 श्लोक २४
संस्कृत श्लोक
वामपार्श्वे च वै चक्रे कृष्णवर्णस्तु पिङ्गलम् ।
लक्ष्मीनृसिंहदेवानां पृथग्वर्णस्तु दृश्यते ॥ २४ ॥
हिंदी अनुवाद (भावार्थ)
वामपार्श्व पर चक्र हो, और वह कृष्णवर्ण (गहरा रंग) हो, साथ ही पिंगल वर्ण भी हों।
लक्ष्मी-नृसिंह देवों के लिए पृथक् वर्ण भी उस शिला में दिखाई देते हैं।
📖 श्लोक २५
संस्कृत श्लोक
लम्बोष्ठे च दरिद्रं स्यात्पिङ्गले हानिरेव च ।
लग्नचक्रे भवेद्याधिर्विदारे मरणं ध्रुवम् ॥ २५ ॥
हिंदी अनुवाद (भावार्थ)
यदि शिला की लबों या ओर में दरिद्र हो, या पिंगल रंग हानिकारक हो,
तो यह शुभ नहीं।
यदि उस शिला पर लग्न चक्र हो और वह अधिर विदारक हो, तो मृत्यु निश्चित होती है।
📖 श्लोक २६
संस्कृत श्लोक
पादोदकं च निर्माल्यं मस्तके धारयेत्सदा ।
विष्णोर्द्दष्टं भक्षितव्यं तुलसीदलमिश्रितम् ॥ २६ ॥
हिंदी अनुवाद (भावार्थ)
पादोदक (भगवान विष्णु के चरणों का जल) और निर्माल्य (पवित्र तिनका) को सदा शिला के शीर्ष पर धारण करना चाहिए।
विष्णु के आठ (अष्ट) अंगों का भक्षण तुलसी पत्र सहित करना चाहिए।
📖 श्लोक २७
संस्कृत श्लोक
कल्पकोटिसहस्राणि वैकुण्ठे वसते सदा ।
शालिग्रामशिलाबिन्दुर्हत्याकोटिविनाशनः ॥ २७ ॥
हिंदी अनुवाद (भावार्थ)
कल्प कोटि सहस्र (अ innumerable) समयों तक वह (विष्णु) वैकुंठ में निवास करते हैं।
यदि कोई शालग्राम शिला का एक बिंदु भी छू ले, तो अनेकों कोटियों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
📖 श्लोक २८
संस्कृत श्लोक
तस्मात्सम्पूजयेद्ध्यात्वा पूजितं चापि सर्वदा ।
शालिग्रामशिलास्तोत्रं यः पठेच्च द्विजोत्तमः ॥ २८ ॥
हिंदी अनुवाद (भावार्थ)
इसलिए, जो श्रेष्ठ द्विज (ब्राह्मण) सतत् इस शालग्राम शिला का पूजन करें,
ध्यान करें, और यह शालग्राम स्तोत्र पठे — वह सर्वदा पूजित होगा।
📖 श्लोक २९
संस्कृत श्लोक
स गच्छेत्परमं स्थानं यत्र लोकेश्वरो हरिः ।
सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुलोकं स गच्छति ॥ २९ ॥
हिंदी अनुवाद (भावार्थ)
ऐसा व्यक्ति परम स्थान को प्राप्त हो जो — जहाँ लोकों के स्वामी हरि (विष्णु) हैं।
वह सर्व पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को प्राप्त होता है।
📖 श्लोक ३०
संस्कृत श्लोक
दशावतारो देवानां पृथग्वर्णस्तु दृश्यते ।
ईप्सितं लभते राज्यं विष्णुपूजामनुक्रमात् ॥ ३० ॥
हिंदी अनुवाद (भावार्थ)
शालग्राम शिला में देवी-देवताओं की दशावतार (दस अवतार) रूप वेद-प्रकार से दृष्टिगोचर होते हैं।
जो व्यक्ति विष्णु की पूजा के अनुसार उनका अनुष्ठान करता है, वह इच्छित राज्य प्राप्त करता है।
📖 श्लोक ३१
संस्कृत श्लोक
कोट्यो हि ब्रह्महत्यानामगम्यागम्यकोटयः ।
ताः सर्वा नाशमायान्ति विष्णुनैवेद्यभक्षणात् ॥ ३१ ॥
हिंदी अनुवाद (भावार्थ)
ब्रह्महत्या जैसे अनगिनत पाप —
वे सब नष्ट हो जाते हैं, यदि व्यक्ति विष्णु को नैवेद्य (भोग) अर्पण करता है।
📖 श्लोक ३२
संस्कृत श्लोक
विष्णोः पादोदकं पीत्वा कोटिजन्माघनाशनम् ।
तस्मादष्टगुणं पापं भूमौ बिन्दुनिपातनात् ॥ ३२ ॥
हिंदी अनुवाद (भावार्थ)
विष्णु के पादोदक का सेवन करने से, अनेकों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
इसलिए, यदि एक बिंदु (उनकी पादोदक की थोड़ी मात्रा) पृथ्वी पर गिरती है, तो वह आठगुण पाप को विनाशित कर देती है।
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