Shri Ram Ki Anguthi Katha | जीवन का अंतिम सत्य और मृत्यु का रहस्य

Sooraj Krishna Shastri
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जानिए श्रीराम की अंगूठी प्रसंग (Shri Ram Anguthi Katha) की अद्भुत कथा। पाताल लोक, नागराज वासुकी और हनुमानजी के माध्यम से प्रभु राम ने कैसे जीवन और मृत्यु का शाश्वत सत्य समझाया। यह कथा हमें जन्म-मृत्यु के अनिवार्य चक्र और भगवान की सनातन लीला का गूढ़ संदेश देती है।


Shri Ram Ki Anguthi Katha | जीवन का अंतिम सत्य और मृत्यु का रहस्य

मृत्यु का सत्य और राम का संकल्प

प्रभु श्रीराम जानते थे कि अब उनके पृथ्वी-लीला का समय समाप्त हो रहा है। जीवन का एक शाश्वत सत्य है – "जो जन्म लेता है, उसे मृत्यु का वरण करना ही पड़ता है।" यही जीवन का चक्र है, और मनुष्य देह की सबसे बड़ी सीमा भी।
राम ने गंभीर स्वर में कहा –
“यम को मुझ तक आने दो, अब बैकुंठ धाम जाने का समय आ गया है।”

Shri Ram Ki Anguthi Katha | जीवन का अंतिम सत्य और मृत्यु का रहस्य
Shri Ram Ki Anguthi Katha | जीवन का अंतिम सत्य और मृत्यु का रहस्य

यमराज का भय और हनुमान की भक्ति

मृत्यु के देवता यम अयोध्या में प्रवेश करने से डरते थे। कारण था – राम के परम भक्त और उनके महल के अडिग प्रहरी, अंजनी पुत्र श्रीहनुमान।
यम जानते थे कि जब तक हनुमान वहाँ हैं, मृत्यु भी राम तक नहीं पहुँच सकती।
राम भी यह भली-भाँति समझते थे कि हनुमानजी कभी उनकी मृत्यु स्वीकार नहीं कर पाएंगे। यदि वे रौद्र रूप धारण कर लेंगे तो पूरी पृथ्वी कांप उठेगी।

राम की योजना और अंगूठी का रहस्य

इस गहन स्थिति को सुलझाने के लिए राम ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा से परामर्श किया।
फिर उन्होंने अपने मृत्यु-सत्य को हनुमान को समझाने हेतु एक अद्भुत लीला रची।
राम ने अपनी अंगूठी को महल के फर्श में बने एक छोटे से छेद में गिरा दिया और हनुमान से कहा –
“वत्स! मेरी अंगूठी लाकर दो।”

हनुमान ने तुरंत ही अपने आकार को सूक्ष्म कर लिया, भौंरे जैसा रूप धारण किया और उस छेद में प्रवेश कर गए।

पाताल लोक और नागराज वासुकी

वह छेद वास्तव में पाताल लोक की ओर जाने वाला मार्ग था।
वहाँ पहुँचकर हनुमान की भेंट नागराज वासुकी से हुई। उन्होंने कारण बताया कि वे प्रभु श्रीराम की अंगूठी लेने आए हैं।
वासुकी उन्हें नाग लोक के मध्य में ले गए।
वहाँ का दृश्य देखकर हनुमान आश्चर्यचकित रह गए –
अंगूठियों का एक विशाल पर्वत!
असंख्य अंगूठियाँ एकत्रित थीं।

वासुकी ने कहा –
“यहाँ अवश्य ही आपको अपने प्रभु की अंगूठी मिल जाएगी।”

हनुमान का आश्चर्य

हनुमान ने प्रभु का नाम लेकर अंगूठियों को उठाना शुरू किया।
पहली अंगूठी ही राम की निकली। वे हर्षित हुए।
लेकिन जैसे ही उन्होंने दूसरी अंगूठी उठाई, वह भी राम की ही निकली!
तीसरी, चौथी, पाँचवीं... हर अंगूठी श्रीराम की ही थी।
हनुमान के नेत्रों से आँसू बह निकले।
उन्होंने विस्मित होकर पूछा –
“वासुकी! यह कैसी प्रभु की लीला है? यह क्या रहस्य है?”

वासुकी का उत्तर – सृष्टि का शाश्वत नियम

वासुकी ने शांत भाव से उत्तर दिया –
“हे पवनपुत्र! यह सृष्टि निरंतर सृजन और विनाश के चक्र से गुजरती है।
एक सृष्टि चक्र को कल्प कहते हैं। हर कल्प में चार युग होते हैं।
हर कल्प के त्रेता युग में राम अयोध्या में जन्म लेते हैं।
हर बार एक वानर उनकी अंगूठी के पीछे पाताल लोक आता है।
हर बार पृथ्वी पर श्रीराम मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
और हर बार अंगूठियाँ यहाँ गिरती रहती हैं।
यह वही अंगूठियाँ हैं, जो असंख्य कल्पों से इकट्ठी होती आ रही हैं।
आगे आने वाले कल्पों की अंगूठियों के लिए भी यहाँ स्थान सुरक्षित है।”

हनुमान का बोध और जीवन का अंतिम सत्य

हनुमान यह सुनकर मौन हो गए।
अब वे समझ गए थे कि उनका नाग लोक पहुँचना आकस्मिक नहीं था, बल्कि राम की लीला थी।
राम यह बताना चाहते थे कि –
मृत्यु को रोका नहीं जा सकता।
शरीर नश्वर है, परंतु राम अमर हैं।
वे मृत्यु को प्राप्त होंगे, फिर लौटेंगे।
हर युग में यह कथा दोहराई जाएगी।


निष्कर्ष : शाश्वत संदेश

यह प्रसंग केवल हनुमान को ही नहीं, समस्त मानव जाति को यह गूढ़ शिक्षा देता है –

  • मृत्यु अवश्यंभावी है।
  • जन्म और मृत्यु का चक्र अनंत है।
  • सृष्टि बार-बार बनती और मिटती रहती है।
  • परंतु ईश्वर और उनकी लीला सनातन और शाश्वत है।

प्रभु राम फिर आएँगे... वे आना ही होगा।



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