Chehre Pe Chehra Wahi Dussehra | चेहरे पे चेहरा वही दशहरा कविता – आधुनिक व्यंग्य और संदेश

Sooraj Krishna Shastri
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✍️ Chehre Pe Chehra Wahi Dussehra | चेहरे पे चेहरा वही दशहरा कविता – आधुनिक व्यंग्य और संदेश

1. विषयवस्तु (Theme)

कविता का मूल विषय "दशहरा" है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक पर्व है। परंतु कवि ने पारंपरिक दशहरे की बजाय आधुनिक समाज और राजनीति की विसंगतियों को लक्षित करते हुए व्यंग्यात्मक शैली में इसे प्रस्तुत किया है। यहाँ "चेहरे पे चेहरा" पंक्ति से संकेत है कि लोग आज नकली आवरण (mask) लगाकर जी रहे हैं। वास्तविकता छिपी हुई है और केवल दिखावा ही दिखावा है।


2. शैली और शिल्प (Style & Technique)

  • दोहराव (Repetition): हर पद्यांश में "चेहरे पे चेहरा वही दशहरा" पंक्ति का प्रयोग किया गया है, जिससे कविता में लयात्मकता, व्यंग्य और गहराई दोनों आ गए हैं।
  • व्यंग्य (Satire): समाज, राजनीति, लोकतंत्र और प्रशासन पर तीखा कटाक्ष किया गया है।
  • प्रतीकात्मकता (Symbolism):
    • "रावण" = आज का भ्रष्टाचार, छल, पाखंड।
    • "चेहरे पे चेहरा" = पाखंड और दोहरे चरित्र का प्रतीक।
    • "दशहरा" = अच्छाई-बुराई के संघर्ष का पर्व, परंतु आज बुराई ही हावी है।

3. मुख्य संदेश (Message)

  • नेताओं का अंधापन और प्रशासन का बहरेपन पर कटाक्ष।
  • लोकतंत्र में "पहरा" होने का संकेत, यानी स्वतंत्रता पर अंकुश।
  • समाज का चरित्र दोहरा होना।
  • विकास का ठहर जाना और दिखावे का बोलबाला।
  • "असली रावण" अब काया से छोटा लेकिन प्रभाव से विशाल है—यह पंक्ति आज के समाज में छिपे खतरनाक स्वरूप को दर्शाती है।
Chehre Pe Chehra Wahi Dussehra | चेहरे पे चेहरा वही दशहरा कविता – आधुनिक व्यंग्य और संदेश
Chehre Pe Chehra Wahi Dussehra | चेहरे पे चेहरा वही दशहरा कविता – आधुनिक व्यंग्य और संदेश



4. भावपक्ष (Emotional Aspect)

  • व्यंग्य और विडंबना का गहरा भाव है।
  • पाठक को सोचने पर मजबूर करती है कि क्या सचमुच आज का दशहरा केवल पुतला-दहन तक सीमित रह गया है?
  • कवि का दर्द और चिंता स्पष्ट झलकती है—"दर्द किसी से मिला है गहरा"—इससे कवि की संवेदनशीलता उजागर होती है।

5. समकालीन संदर्भ (Contemporary Relevance)

  • लोकतंत्र, राजनीति, विकास, प्रशासन और समाज की वर्तमान स्थिति का सटीक चित्रण।
  • दिखावे की संस्कृति और असली समस्याओं की अनदेखी।
  • पाखंड और आडंबर पर व्यंग्य।

निष्कर्ष

आदित्य विक्रम श्रीवास्तव की यह कविता "चेहरे पे चेहरा वही दशहरा" समकालीन हिंदी व्यंग्य कविताओं की श्रेणी में आती है। इसमें दशहरे जैसे धार्मिक पर्व को प्रतीक बनाकर वर्तमान समाज की समस्याओं, राजनीतिक भ्रष्टाचार, प्रशासन की निष्क्रियता और जनता के दोहरे चरित्र पर करारा प्रहार किया गया है। यह कविता सिर्फ पर्व की शुभकामना नहीं बल्कि आत्ममंथन का आह्वान है।


कविता: चेहरे पे चेहरा, वही दशहरा।


चेहरे पे चेहरा। वही दशहरा।।


नेता अंध, प्रशासन बहरा।

चेहरे पे चेहरा वही दशहरा।


लोकतंत्र पर जमकर पहरा।

चेहरे पे चेहरा वही दशहरा।


सबका आज चरित्तर दुहरा।

चेहरे पे चेहरा वही दशहरा।


सभी तके हैं आज सिकहरा।

चेहरे पे चेहरा वही दशहरा।


दर्द किसी से मिला है गहरा।

चेहरे पे चेहरा वही दशहरा।


बड़ा खिलाड़ी, छुटका मोहरा।

चेहरे पे चेहरा वही दशहरा।


अड़ा विकास वहीं पर ठहरा।

चेहरे पे चेहरा वही दशहरा।


रटें दिखावी सभी ककहरा।

चेहरे पे चेहरा वही दशहरा।


असली रावण आज छरहरा।

चेहरे पे चेहरा वही दशहरा।


घाटी में अब रंग सुनहरा।

चेहरे पे चेहरा वही दशहरा।


@ आदित्य विक्रम श्रीवास्तव 

केन्द्रीय विद्यालय न्यू कैंट प्रयागराज।


सभी इष्ट मित्रों, साथियों को विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई।



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