अत्ता आयसम्बन्ध तथा पुरूष की अपरूपता - उद्दालक और वैश्वावसव्य संवाद (१०/३/४/१)

Sooraj Krishna Shastri
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अत्ता आयसम्बन्ध तथा पुरूष की अपरूपता - उद्दालक और वैश्वावसव्य संवाद
अत्ता आयसम्बन्ध तथा पुरूष की अपरूपता -
उद्दालक और वैश्वावसव्य संवाद 


 वैदिक साहित्य में शरीर को अनेक रूपकों द्वारा समझाया गया है। ऋग्वेद, अथर्ववेद तथा श्रीमद् भगवद्गीता में इसे 'क्षेत्र' कहा गया है। यजुर्वेद और कठोपनिषद् में इसे 'रथ' कहा गया है। अथर्ववेद, शरीर को 'पुर' की संज्ञा देता है । जैमिनीय उपनिषद् ब्राह्मण - शरीर को देवों की संसद शाखांयन आरध्यक- वीणा तथा अथर्ववेद इसे नाव की संज्ञा से अभिहित करता है। कबीर ने शरीर को तालाब एवं चादर की संज्ञा दी है। शतपथ में इसे 'अर्कवृक्ष' कहा गया है।श्वेतकेतु आरूणेय यजन करने वाले थे। 

श्वेतकेतु से उनके पिता ने पूछा - श्वेतकेतु तुमने किन्हें ऋत्विक चुना है ?

श्वेतकेतु ने बताया - वैश्वावसव्य ही मेरे होता हैं। 

अब श्वेतकेतु के पिता आरूणि उद्दालक ने वैश्वावसव्य से पूछा - हे ब्राह्मण वैश्वावसव्य! क्या चार महान् तत्वों को जानते हो ? 

वैश्वावसव्य - हां जानता हूं। 

उद्दालक - क्या तुम उन चार महान् तत्वों से भी और अधिक महान तत्व को जानते हो। 

वैश्वावसव्य - हां, मैं उन्हें भी जानता हूँ। 

उद्दालक - क्या तुम चार व्रतों को जानते हो ? 

वैश्वावसव्य - हां, मैं जानता हूँ। 

उद्दालक - क्या तुम चार व्रतों के भी व्रत को जानते हो। 

वैश्वावसव्य - हां मैं उन्हें भी जानता हूं। 

उद्दालक - क्या तुम चार क्य को जानते हो। 

वैश्वावसव्य - हां मैं चार क्य को जानता हूं। 

उद्दालक - क्या तुम चार क्या के क्य को भी जानते हो। 

वैश्वावसव्य - हा मैं उन्हें भी जानता हू। 

उद्दालक - क्या तुम चार अर्को को जानते हो। 

वैश्वावसव्य - हॉ मैं जानता हूं। 

उद्दालक - क्या तुम चार अर्को के भी अर्को को जानते हो? 

वैश्वावसव्य - हां, मैं उन्हें भी जानता हूं।

वैश्वावसव्य ने भी उद्दालक से प्रश्न करना प्रारम्भ कर दिया। अब क्या आप मुझे बतायेंगे कि क्या आप अर्क को जानते हैं? क्या आप अर्क पुष्प, अर्क कोशी, अर्कसमुद्रग अर्कचाना, अर्कष्ठीला तथा अर्कमूल को जानते हैं ?

  इतने प्रश्न करके वैश्वावसव्य ने उद्दालक के प्रश्नो के उत्तर देना आरम्भ किया। अग्नि महान् है। इस महान अग्नि से भी महान् औषधियां एवं वनस्पतियाँ हैं। ये अग्नि के अन्न हैं। वायु महान् है। महान् वायु से भी महान् जल है। यह वायु का अन्न है। आदित्य महान् है। महान् आदित्य से भी महान् चन्द्रमा है। यह इसका अन्न है। पुरूष महान् है। महान् पुरूष से भी महान् पशु है। ये अग्नि, आदित्य, वायु एवं पुरूष चार महान हैं। इन चारों महान् से भी महान् औषधि वनस्पति, जल, चन्द्रमा और पशु हैं। ये ही चार व्रत हैं। चार व्रतों के भी व्रत हैं। ये ही चार 'क्य' हैं। ये ही चार 'क्य' के भी 'क्य' हैं। ये ही चार अर्क हैं और ये चार अर्को के भी अर्क हैं।

उद्यालक ने भी वैश्वासव्य के प्रश्नों का उत्तर दिया- पुरूष अर्क है। कर्ण अर्कपर्ण है। ऑंखें अर्क पुष्प हैं। नासिकारन्ध्र अर्ककोशी है। ओष्ठ अर्कसमुद्ग हैं। दांत अर्कघाना हैं जिह्वा अर्कष्ठाला है। अन्न अर्कमूल है। इस प्रकार पुरूष ही अर्करूप हैं, जो पुरूष अपने को 'अर्काग्नि हूं', इस रूप में जान जाता है, उसके अन्दर विद्या से अर्काग्नि का चयन सम्पन्न हो जाता है।

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