महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ पर बैठे हनुमानजी कभी-कभी खड़े हो कर कौरवों की सेना की और घूर कर देखते तो उस समय कौरवों की सेना तूफान की गति से युद्ध भूमि को छोड़ कर भाग जाती। हनुमानजी की दृष्टि का सामना करने का साहस किसी में नही था।
उस दिन भी ऐसा ही हुआ था । जब कर्ण और अर्जुन के बीच युद्ध चल रहा था। कर्ण अर्जुन पर अत्यंत भयंकर बाणों की वर्षा किये जा रहा था। उनके बाणों की वर्षा से श्रीकृष्ण को भी बाण लगते गए अतः उनके बाण से श्रीकृष्ण का कवच कटकर गिर पड़ा और उनके सुकुमार अंगो पर बाण लगने लगे।
रथ की छत पर बैठे पवनपुत्र हनुमानजी एक टक नीचे अपने इन आराध्य की और ही देख रहे थे। श्रीकृष्ण कवच हीन हो गए थे। उनके श्री अंग पर कर्ण निरंतर बाण मारता ही जा रहा था। हनुमानजी से यह सहन नही हुआ। अकस्मात् वे उग्रतर गर्जना करके दोनों हाथ उठाकर कर्ण को मार देने के लिए उठ खड़े हुए।
हनुमानजी की भयंकर गर्जना से ऐसा लगा मानो ब्रह्माण्ड फट गया हो। कौरव सेना तो पहले ही भाग चुकी थी। अब पांडव पक्ष की सेना भी उनकी गर्जना के भय से भागने लगी। हनुमानजी का क्रोध देख कर कर्ण के हाथ से धनुष छूट कर गिर गया।
भगवान श्रीकृष्ण तत्काल उठकर अपना दक्षिण हस्त उठाया और हनुमानजी को स्पर्श करके सावधान किया। रुको ! आपके क्रोध करने का समय नही है।
श्रीकृष्ण के स्पर्श से हनुमान जी रुक तो गए किन्तु उनकी पूंछ खड़ी हो कर आकाश में हिल रही थी। उनके दोनों हाथों की मुठ्ठियाँ बन्द थीं। वे दाँत कट- कटा रहे थे और आग्नेय नेत्रों से कर्ण को घूर रहे थे। हनुमानजी का क्रोध देख कर कर्ण और उनके सारथी काँपने लगे।
हनुमानजी का क्रोध शांत न होते देख कर श्रीकृष्ण ने कड़े स्वर में कहा - हनुमान ! मेरी और देखो। अगर तुम इस प्रकार कर्ण की ओर कुछ क्षण और देखोगे तो कर्ण तुम्हारी दृष्टि से ही मर जाएगा। यह त्रेतायुग नहीं है। आपके पराक्रम को तो दूर आपके तेज को भी कोई यहाँ सह नही सकता।
आपको मैंने इस युद्ध मे शांत रहकर बैठने को कहा है। फिर हनुमान जी ने अपने आराध्यदेव की और नीचे देखा और शांत हो कर बैठ गए।
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