लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट।
पाछै फिर पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट।।
अर्थात् , हे प्राणी ! चारों तरफ ईश्वर के नाम की लूट मची है, अगर लेना चाहते हो तो ले लो, जब समय निकल जायेगा तब तू पछताएगा। अर्थात जब तेरे प्राण निकल जायेंगे तब भगवान का नाम कैसे जप पाएगा।
भगवान का नाम तो हर कोई लेता है,पर जब कृष्ण नाम लेना दुष्कर हो जाए अर्थात् सुनते, कहते ही मूर्छा आ जाए, हम अपनी साधारण स्थिति में ही ना रहे, जैसे चैतन्य महाप्रभु नाम लेते थे और उनकी दशा अवर्णनीय हो जाती थी, वास्तव में स्तर का फर्क है।
एक बार महाप्रभु रास्ते में से जा रहे थे,उनके पीछे गौर भक्त वृन्द भी थे,महाप्रभु हरे कृष्णा का कीर्तन करते जा रहे थे, कीर्तन करते करते महाप्रभु थोडा सा आगे निकल गए,उन्हें बड़ी जोर की प्यास लगी, परन्तु कही पानी नहीं मिला,तब एक व्यापारी सिर पर मिट्टी का घड़ा रखे सामने से चला आ रहा था, महाप्रभु ने उसे देखते ही बोले भईया बड़ी प्यास लगी है थोडा सा जल मिल जायेगा ?
व्यापारी में कहा - मेरे पास जल तो नहीं है हाँ इस घडे में छाछ जरुर है, इतना कहकर उसने छाछ का घड़ा नीचे उतारा महाप्रभु बहुत प्यासे थे
इसलिए सारी की सारी छाछ पी गए, और बोले भईया बहुत अच्छी छाछ थी, प्यास बुझ गई।
व्यापारी बोला - अब छाछ के पैसे लाओ!
महाप्रभु - भईया पैसे तो मेरे पास नहीं है ?
व्यापारी महाप्रभु के रूप और सौंदर्य को देखकर इतना प्रभावित हुआ कि उसने सोचा इन्होने नहीं दिया तो कोई बात नहीं इनके पीछे जो इनके साथ वाले आ रहे है, इनसे ही मांग लेता हूँ, महाप्रभु ने उसे खाली घड़ा दे दिया उसे सिर पर रखकर, वह आगे बढ़ गया और पीछे आ रहे, नित्यानंद जी और भी भक्त वृन्दों से उसने पैसे मांगे तो वे कहने लगे हमारे मालिक तो आगे चल रहे है। जब उनके पास ही नहीं है तो फिर हम तो उनके सेवक है हमारे पास कहाँ से आयेगे ?
उन सब को देखकर वह बड़ा प्रभावित हुआ,और उसने कुछ नहीं कहाँ जब घर आया और सिर से घड़ा उतारकर देखा तो क्या देखता है कि घड़ा हीरे मोतियों से भरा हुआ है, एक पल के लिए तो बड़ा प्रसन्न हुआ पर अगले ही पल दुखी हो गया, मन में तुरंत विचार आया, उन प्रभु ने इस मिट्टी के घड़े को छुआ तो ये हीरे मोती से भर गया, जब वे मिट्टी को ऐसा बना सकते है तो मुझे छू लेने से मेरा क्या ना हो गया होता ?
अर्थात् प्रभु की भक्ति मेरे अन्दर आ जाती झट दौडता हुआ उसी रास्ते पर गया जहाँ प्रभु को छाछ पिलाई थी, अभी प्रभु ज्यादा दूर नहीं गए थे, तुरंत उनके चरणों में गिर पड़ा,प्रभु मुझे प्रेम का दान दीजिये। प्रभु ने उठकर उसे गले से लगा लिया, और उसका जीवन बदल गया।
हमारी ऐसी दशा कब होगी जब कृष्ण नाम लेते ही हम भी प्रेम की वारुणी पीये हुए से छके से नाचते गाते रहेगे।
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