ईशावास्य उपनिषद्, मन्त्र 1

Sooraj Krishna Shastri
By -
0

 
मन्त्र 1 (ईशावास्य उपनिषद)।यह चित्र ईशावास्योपनिषद् की भावना को दर्शाने के लिए बनाया गया है।

मन्त्र 1 (ईशावास्य उपनिषद)।यह चित्र ईशावास्योपनिषद् की भावना को दर्शाने के लिए बनाया गया है। 


मन्त्र 1 (ईशावास्य उपनिषद)


मूल पाठ

ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्।


शब्दार्थ

  1. ईशावास्यम्: ईश्वर से आवृत या ईश्वर का वास।
  2. इदम् सर्वम्: यह सबकुछ।
  3. यत्किञ्च: जो कुछ भी।
  4. जगत्याम्: इस संसार में।
  5. जगत्: जो गतिशील है।
  6. तेन त्यक्तेन: त्यागपूर्वक।
  7. भुञ्जीथा: भोग करो।
  8. मा गृधः: लोभ मत करो।
  9. कस्यस्विद्धनम्: यह धन किसका है?

अनुवाद

यह सारा संसार, जो कुछ भी स्थिर और गतिशील है, ईश्वर से व्याप्त है। इसलिए, त्यागपूर्ण दृष्टिकोण से इसका भोग करो। किसी भी वस्तु पर लोभ मत करो, क्योंकि यह सबकुछ परमात्मा का है।


व्याख्या

यह मन्त्र अद्वैत वेदांत का गूढ़ सिद्धांत प्रस्तुत करता है। इसमें ईश्वर की सर्वव्यापकता, त्याग और भोग का संतुलन, और लोभ से मुक्ति के तीन मुख्य संदेश दिए गए हैं:

  1. ईश्वर की सर्वव्यापकता:
    यह संसार ईश्वर से आवृत है। इसका अर्थ है कि हर वस्तु में ईश्वर का निवास है। ईश्वर ही इस जगत के मूल में हैं, और हर जीव और वस्तु उनके स्वरूप को दर्शाती है।

  2. त्याग और भोग का संतुलन:
    यह मन्त्र सिखाता है कि जीवन में हमें त्याग और भोग का सामंजस्य बनाकर चलना चाहिए। "त्याग" का अर्थ यह नहीं है कि संसार से भाग जाना चाहिए, बल्कि आसक्ति और स्वामित्व के भाव को त्यागकर वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए।

  3. लोभ का त्याग:
    हमें समझना चाहिए कि यह संसार और इसमें मौजूद वस्तुएं किसी एक व्यक्ति की नहीं हैं। सबकुछ परमात्मा का है। इसलिए, लोभ और स्वार्थ से मुक्त रहकर जीवन जीना चाहिए।


आध्यात्मिक संदेश

  • संपत्ति पर अधिकार: यह मन्त्र यह बताता है कि किसी भी वस्तु पर हमारा पूर्ण अधिकार नहीं है। सबकुछ ईश्वर का है।
  • सांसारिक जीवन का मार्ग: भोग करना बुरा नहीं है, लेकिन भोग को त्याग और धर्म के साथ संतुलित करना चाहिए।
  • परमात्मा का अनुभव: जो व्यक्ति ईश्वर को हर वस्तु में देखता है, वह संसार के बंधनों से मुक्त हो जाता है।

उपदेश

इस मन्त्र का मुख्य उद्देश्य यह है कि व्यक्ति अपने जीवन में भौतिक वस्तुओं का उपयोग करे लेकिन उनमें आसक्त न हो। संसार में रहते हुए भी ईश्वर का साक्षात्कार करना और अपने जीवन को त्याग और भोग के संतुलन से जीना ही मोक्ष का मार्ग है।

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!