संस्कृत श्लोक "अन्तस्तिमिरनाशाय शाब्दबोधो निरर्थकः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🌸 जय श्रीराम। सुप्रभातम्। प्रस्तुत श्लोक का विस्तारपूर्वक विश्लेषण नीचे दिया गया है –
🌿 संस्कृत मूल श्लोकः
अन्तस्तिमिरनाशाय शाब्दबोधो निरर्थकः ।
न नश्यति तमो नाम कृतया दीपवार्तया ॥
🌐 English Transliteration:
Antas-timira-nāśāya śābdabodho nirarthakaḥ।
Na naśyati tamo nāma kṛtayā dīpavārtayā॥
🇮🇳 हिन्दी अनुवाद:
अन्तर्मन के अंधकार के नाश के लिए केवल शब्दों की समझ (ज्ञान) व्यर्थ है।
केवल दीपक के विषय में बात करने से अंधकार नहीं मिटता।
🧠 व्याकरणात्मक विश्लेषण:
पद | पदच्छेद | शब्द रूप | प्रकार | अर्थ |
---|---|---|---|---|
अन्तस्तिमिरनाशाय | अन्तः-तिमिर-नाशाय | समास: तत्पुरुष | चतुर्थी विभक्ति | अन्तः = भीतर का, तिमिर = अंधकार, नाश = विनाश |
शाब्दबोधः | शाब्द + बोधः | पुल्लिङ्ग एकवचन प्रथमा | तत्पुरुष समास | शब्दों के माध्यम से होने वाला बोध या ज्ञान |
निरर्थकः | निर + अर्थकः | विशेषण | प्रथमा एकवचन पुल्लिङ्ग | व्यर्थ, फलहीन |
न | — | अव्यय | — | नहीं |
नश्यति | नश् + यति | धातु: 'नश्' + लट् लकार | प्रथम पुरुष एकवचन | नष्ट होता है |
तमः | तमस् | नपुंसक एकवचन प्रथमा | अंधकार | |
नाम | नाम | अव्यय | विशेषण रूप में प्रयोग | केवल नाम से (nominally) |
कृतया | कृ + त | स्त्रीलिङ्ग तृतीया एकवचन | ‘कृ’ धातु से बना | करने से, क्रिया से |
दीपवार्तया | दीप + वार्ता | स्त्रीलिङ्ग तृतीया एकवचन | दीपक की बात (वार्ता) |
🪔 भावार्थ (सारांश):
सिर्फ ज्ञान की बात करना, सिर्फ "प्रकाश" की चर्चा करना, सिर्फ "दीपक" के गुण गिनाना — यह सब भीतर के अंधकार को दूर नहीं कर सकता। जैसे कोई कहे कि मैं दीपक के बारे में बहुत जानता हूँ, पर दीप जलाए बिना ही अंधकार से छुटकारा चाहता है — यह व्यर्थ है।
🔎 आधुनिक सन्दर्भ में व्याख्या:
आज के समय में "ज्ञान", "प्रेरणा", "सत्संग", "संवाद", "पाठ" — यह सब तभी प्रभावी हैं जब उन्हें जीवन में उतारा जाए।
- किसी ने ध्यान की बहुत बातें सुनीं पर अभ्यास नहीं किया — तो भीतर का तनाव नहीं मिटेगा।
- किसी ने धर्म की बहुत बातें पढ़ीं पर आचरण नहीं बदला — तो जीवन में प्रकाश नहीं आएगा।
- केवल "प्रेरक वचन" सुनने से जीवन नहीं बदलता — जब तक हम "कर्म" से उसे अमल में न लाएँ।
इस श्लोक की प्रेरणा यही है कि "ज्ञान तब तक व्यर्थ है, जब तक वह आचरण में नहीं उतरता।"
📖 संवादात्मक नीति कथा:
शीर्षक: "दीपक की चर्चा"
एक शिष्य अपने गुरु से बोला —
"गुरुदेव! मैंने उपनिषद, गीता, वेदांत सब पढ़ लिया है। अब मैं आत्मज्ञान से भर गया हूँ।"
गुरु मुस्काए और बोले —
"बिलकुल, पुत्र! पर आज की रात एक कार्य करो — अपने कमरे में जाकर दीपक की चर्चा करना और देखना कि अंधकार भागता है या नहीं।"
शिष्य ने कहा —
"गुरुदेव! ऐसा कैसे होगा? दीपक जलाए बिना तो अंधकार जाएगा नहीं।"
गुरु बोले —
"बिलकुल वही तुम्हारे ज्ञान के साथ हो रहा है। तुम दीपक की बात कर रहे हो, लेकिन दीप नहीं जला रहे हो। केवल 'ज्ञान' को शब्दों में गिनाने से 'अन्तरतम का तम' नहीं भागता — उसे कर्म रूपी दीप से ही दूर किया जा सकता है।"
🔔 संदेश (Takeaway):
ज्ञान तब तक केवल "दीप की चर्चा" है जब तक वह "कर्म रूपी ज्योति" न बने।
"ज्ञान + आचरण = आत्मप्रकाश"