दान पर संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlokas on Charity) – दान के अंग, भूषण, दूषण और महत्व सहित हिन्दी व्याख्या

Sooraj Krishna Shastri
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दान केवल वस्तु देने का कार्य नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि और करुणा का प्रतीक है। इस लेख में प्रस्तुत हैं दान पर संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlokas on Daan) – जिनमें दान के छह अंग (दाता, पात्र, शुद्धि, देय वस्तु, देश, काल), पाँच भूषण (आनन्दाश्रु, रोमांच, आदर, प्रिय वचन, अनुमोदन) और पाँच दूषण (तिरस्कार, विलम्ब, वैमुख्य, निष्ठुर वचन, पश्चात्ताप) का सुंदर वर्णन मिलता है। यहाँ प्रत्येक श्लोक का शुद्ध संस्कृत पाठ और गूढ़ हिन्दी व्याख्या दी गई है, जो धर्म, शिक्षा और समाज के लिए मार्गदर्शक है। Discover the essence of Charity (Daan) in Sanatan Dharma through these meaningful Sanskrit verses and their moral explanations in Hindi. Perfect for spiritual learners and educators.

दान पर संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlokas on Charity) – दान के अंग, भूषण, दूषण और महत्व सहित हिन्दी व्याख्या

दान पर संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlokas on Charity) – दान के अंग, भूषण, दूषण और महत्व सहित हिन्दी व्याख्या
दान पर संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlokas on Charity) – दान के अंग, भूषण, दूषण और महत्व सहित हिन्दी व्याख्या

🌸 १. दाता प्रतिगृहीता च शुद्धिर्देयं च धर्मयुक् । देशकालौ च दानानामङ्गान्येतानि षड्विदुः ॥

भावार्थ:
दान के छह अंग माने गए हैं –
(१) दाता – दान देने वाला व्यक्ति, जो श्रद्धावान और धर्मनिष्ठ हो,
(२) प्रतिग्रहीता – दान ग्रहण करने वाला, जो सुपात्र हो,
(३) शुद्धि – दान का उद्देश्य और भावना निर्मल हो,
(४) देय वस्तु – दान की वस्तु शुद्ध और धर्मसंगत हो,
(५) देश – उचित स्थान पर दिया गया दान,
(६) काल – उचित समय पर दिया गया दान।

अर्थात: दान तभी फलदायी होता है जब ये छहों तत्व उसमें सम्यक् रूप से उपस्थित हों।


🌸 २. आनन्दाश्रूणि रोमाञ्चो बहुमानः प्रियं वचः । तथानुमोदता पात्रे दानभूषणपञ्चकम् ॥

भावार्थ:
दान के पाँच भूषण (सौन्दर्य के कारण) हैं –
1️⃣ आनंद के आँसू,
2️⃣ रोमांच (हृदय की भाव-प्रेरणा),
3️⃣ दान-ग्राही के प्रति सम्मान,
4️⃣ मधुर वचन,
5️⃣ सुपात्र को दान का अनुमोदन।

अर्थात: जब दान आनंद, भाव, सम्मान, और मधुरता से किया जाए तो वही दान वास्तव में भूषणयुक्त अर्थात् अलंकारमय कहलाता है।


🌸 ३. अनादरो विलम्बश्च वैमुख्यं निष्ठुरं वचः । पश्चात्तापश्च पञ्चापि दानस्य दूषणानि च ॥

भावार्थ:
दान के पाँच दोष बताए गए हैं –
1️⃣ तिरस्कार करना,
2️⃣ देने में विलम्ब करना,
3️⃣ मुँह फेरना या उदासीनता दिखाना,
4️⃣ कठोर वचन बोलना,
5️⃣ देने के बाद पछताना।

अर्थात: यदि दान में ये पाँच दोष उपस्थित हों तो वह दान धर्म की दृष्टि से दूषित हो जाता है।


🌸 ४. यद् दत्त्वा तप्यते पश्चादपात्रेभ्यस्तथा च यत् । अश्रद्धया च यद्दानं दाननाशास्त्रयः स्मृताः ॥

भावार्थ:
तीन प्रकार के दान नष्ट हो जाते हैं –
1️⃣ देने के बाद पछताना,
2️⃣ अपात्र (अयोग्य व्यक्ति) को दान देना,
3️⃣ श्रद्धा के बिना दान देना।

अर्थात: बिना श्रद्धा या विवेक के किया गया दान न केवल निष्फल होता है बल्कि आत्मकल्याण के मार्ग में बाधा बनता है।


🌸 ५. लब्धानामपि वित्तानां बोद्धव्यौ द्वावतिक्रमौ । अपात्रे प्रतिपत्तिश्च पात्रे चाप्रतिपादनम् ॥

भावार्थ:
धन का दो प्रकार से दुरुपयोग होता है –
1️⃣ अपात्र (दुष्ट या अयोग्य व्यक्ति) को दान देकर,
2️⃣ पात्र (सज्जन, सत्पुरुष) को दान न देकर।

अर्थात: धन का वास्तविक सम्मान तब है जब वह सत्पात्र के हित में प्रयोग किया जाए।


🌸 ६. द्वाविमौ पुरुषौ लोके न भूतौ न भविष्यतः । प्रार्थितं यश्च कुरुते यश्च नार्थयते परम् ॥

भावार्थ:
दुनिया में दो प्रकार के व्यक्ति दुर्लभ हैं –
1️⃣ जो दूसरों की याचना पूरी करता है (उदार),
2️⃣ जो किसी के सामने याचना नहीं करता (संयमी)।

अर्थात: दान देने वाला और याचना न करने वाला दोनों ही व्यक्ति आत्मबल और आत्मसंतोष के प्रतीक हैं।


🌸 ७. अनुकूले विधौ देयं एतः पूरयिता हरिः । प्रतिकूले विधौ देयं यतः सर्वं हरिष्यति ॥

भावार्थ:
जब परिस्थितियाँ अनुकूल हों, तब दान इसलिए देना चाहिए क्योंकि सब कुछ देने वाला भगवान है।
और जब परिस्थितियाँ प्रतिकूल हों, तब भी दान देना चाहिए क्योंकि सब कुछ हर लेने वाला भी वही भगवान है।

अर्थात: दान परिस्थिति पर नहीं, श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर है। जो भगवान में पूर्ण विश्वास रखता है, उसका दान कभी व्यर्थ नहीं जाता।


🌸 ८. बोधयन्ति न याचन्ते भिक्षाद्वारा गृहे द्विजाः । दीयतां नित्यमदातुः फलमीदृशमित्यपि ॥

भावार्थ:
जब याचक आपके घर आते हैं, तो वे वास्तव में याचना नहीं करते बल्कि आपको उपदेश देते हैं कि “दान देना न छोड़ो”।
क्योंकि यदि तुम दान नहीं करोगे तो उसका परिणाम (अभाव, क्लेश, तिरस्कार) तुम्हें भुगतना पड़ेगा।

अर्थात: याचक दान की परंपरा को जीवित रखते हैं; वे हमारे भीतर दयाभाव जगाने वाले शिक्षक के समान हैं।


🌸 ९. दानेन भूतानि वशी भवन्ति दानेन वैराण्यपि यान्ति नाशम् । परोऽपि बन्धुत्वमुपैति दानैर् दानं हि सर्वे व्यसनानि हन्ति ॥

भावार्थ:
दान से प्राणी वश हो जाते हैं,
दान से शत्रुता मिट जाती है,
दान से पराया भी अपना बन जाता है,
दान से सभी संकट और व्यसन दूर हो जाते हैं।

अर्थात: दान केवल वस्तु देने का नहीं, बल्कि हृदय से उदारता फैलाने का माध्यम है; यही मानवता की जड़ है।


🌺 सारांश (निष्कर्ष)

दान धर्म का सबसे सुंदर रूप है। यह केवल धन देने का कार्य नहीं, बल्कि भाव, श्रद्धा, विनम्रता और करुणा का प्रदर्शन है।
दान के लिए न तो संपत्ति चाहिए, न अवसर — चाहिए केवल सहृदयता
सही पात्र, सही भावना और सही समय पर किया गया दान आत्मिक शुद्धि और परम पुण्य का कारण बनता है।


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