“प्रियं ब्रूयादकृपणः श्लोक” एक प्राचीन संस्कृत नीति सूत्र है जो जीवन के चार मूल गुण सिखाता है — वाणी में मधुरता, शौर्य में विनम्रता, दान में विवेक, और साहस में करुणा।
इस लेख में श्लोक का संस्कृत पाठ, अंग्रेज़ी ट्रान्सलिटरेशन, शब्दार्थ, व्याकरणिक विश्लेषण, हिन्दी अनुवाद, आधुनिक सन्दर्भ, नीति कथा और जीवनोपयोगी निष्कर्ष दिए गए हैं।
यह नीति श्लोक आज के युग में भी उतना ही प्रासंगिक है, क्योंकि यह हमें सिखाता है कि सच्ची शक्ति विनम्रता में और सच्ची दानशीलता विवेक में निहित है।
आइए जानें इस अमूल्य श्लोक का गूढ़ अर्थ और उसका व्यवहारिक जीवन में महत्व।
प्रियं ब्रूयादकृपणः नीति श्लोक अर्थ – जीवन में विनम्रता, विवेक और करुणा का संदेश | Priyam Bruyat Kripana Niti Shloka Meaning & Moral in Hindi
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प्रियं ब्रूयादकृपणः नीति श्लोक अर्थ – जीवन में विनम्रता, विवेक और करुणा का संदेश | Priyam Bruyat Kripana Niti Shloka Meaning & Moral in Hindi |
1. श्लोक (Devanagari)
2. English Transliteration (IAST)
(सुविधा हेतु सरल Roman transliteration: Priyam bruyat kripanaḥ, shurah syad avikathanah. Dataa na-patra-varshī syāt, pragalbhah syād aniṣṭhurah.)
3. हिन्दी अनुवाद (Concise & Natural)
- उदार (दानी) व्यक्ति को सबके साथ स्नेहपूर्ण और अनुकूल वचन बोलना चाहिए।
- शूर (साहसी) व्यक्ति को घमंड या बड़े-बड़े दावे नहीं करने चाहिए।
- दाता को अतिथि / उपहार अपात्र को सौंप कर उंडेलना (बिना विवेक दान करना) नहीं चाहिए — दान योग्य को दान दें।
- जो प्रगल्भ (अत्यन्त निडर/हठी) हो, वह निर्दयी नहीं होना चाहिए; साहस में करुणा भी आवश्यक है।
(सरल वाक्य: उदार बोलो; शूर विनम्र हो; दान विवेक से करो; निडर पर दयालु बनो।)
4. शब्दार्थ (Word-by-word)
संस्कृत पद | प्रारम्भिक अर्थ (short) |
---|---|
प्रियं | प्रिय-वचन, स्नेहपूर्वक / अनुकूलता से (acc.) |
ब्रूयात् | (इच्छार्थ/आज्ञार्थ) बोले/बोलना चाहिए — “may say / should say” (optative) |
कृपणः | कृपण — कंजूस/मित-धनी (subject, nominative) — यहाँ अर्थ: ‘उदारता दिखाने योग्य व्यक्ति (who gives?)’ परंपरागत पढ़ाई में 'कृपण' अक्सर 'कंजूस' पर भी लागू होता; पर कई ग्रंथों में 'कृपण' = 'यथा-वह' usage; यहाँ व्याख्या: जो धन देने वाला/उदार (contextual) |
शूरः | वीर, साहसी (subject) |
स्यात् | बने/होना चाहिए (optative) — “should be / may be” |
अविकथनः | (a-)vikathanaḥ — non-boaster / non-boastful (a-prefix negative) — वैकल्पिक रूप: विकथनः = ‘boastful’; ‘अविकथनः’ = न-घमंडी |
दाता | दान करने वाला, उदार व्यक्ति (subject) |
नापात्रवर्षी | na + apātra-varṣī → “वह न हो जो (वर्षा-वत्) अपात्र को उंडेल दे” — वर्णक रूप में ‘वर्षी’ यहाँ उपमा (जैसे वर्षा कर देना) — अर्थ: अपात्र पर दान बरसाना नहीं चाहिए |
प्रगल्भः | प्रगल्भ – हठी/अत्यन्त निडर/उत्साही/कुछ संदर्भों में ‘बड़ी बोली वाला’ (subject) |
अनिष्ठुरः | अनिष्टुर — निर्दयी/कठोर/दयाहीन |
टेकअवे: कुछ पदों (कृपणः, प्रगल्भः) के अर्थ ग्रंथानुसार भिन्नान्तरित हो सकते हैं — मैंने ऊपर उस अर्थ का चुनाव किया है जो श्लोक के तात्पर्य (moral maxims) से मेल खाता है।
5. व्याकरणात्मक विश्लेषण (Grammatical parsing & stylistic points)
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रचना: श्लोक में चार सूक्तियाँ/नियम-सूत्र हैं — प्रत्येक में कर्तृ (nominative) + इच्छार्थ (optative) + गुण/नियत-वचन — संक्षेप में “X को Y रीति से होना चाहिए / नहीं होना चाहिए” का विधान है। optative forms: ब्रूयात्, स्यात् (एकरूप इच्छा/नीति-वाचक रूप).
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पहला पद्य: प्रियं ब्रूयात् कृपणः — यहाँ ब्रूयात् (optative 3sg) क्रिया है; कृपणः कर्ता; प्रियं कर्म/विधेय (शब्द रूप से प्रिय-वचन)। श्लोक कहता है: "कृपण (उदार व्यक्ति) को प्रिय वचन बोलना चाहिए" — अर्थात उदार व्यवहार को शब्दों में भी अनुकूलता जालनी चाहिए।
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दूसरा पद्य: शूरः स्याद् अविकथनः — शूर (वीर) = कर्ता; स्याद् = optative; अविकथनः = 'न-घमंडी/न-बड़बोल' — "वीर को दम्भविहीन होना चाहिए"।
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तीसरा पद्य: दाता नापात्रवर्षी स्यात् — दाता कर्ता; नापात्र-वर्षी = 'न-अपात्र-वर्षी' — यहाँ वर्षी ('वर्षा-वत् बरसाने वाला') उपमात्मक प्रयोग है: "दाता ऐसा न हो जो अपने दान बारम्बार अपात्रों पर उंडेल दे" — अर्थात दान-विवेक अपेक्षित है।
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चौथा पद्य: प्रगल्भः स्याद् अनिष्ठुरः — प्रगल्भ (जो घमंडी/बहुत अगले कदम उठाने वाला/अति आत्मविश्वासी) = कर्ता; अनिष्टुरः = 'निर्दयी' — "प्रगल्भ को निर्दयी नहीं होना चाहिए" — साहस के साथ करुणा भी चाहिए।
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शैलीगत उपकरण: संक्षेप, समता (parallelism) और नीतिनिर्देश — चार स्वतंत्र नीति-बिंदु एक श्लोक में समाहित — साधारण, स्मरणीय।
6. आधुनिक सन्दर्भ (Practical / Contemporary relevance)
यह श्लोक आज के सामाजिक-नैतिक परिदृश्य में बहुत सटीक उपदेश देता है। इसके चार मुख्य नैतिक निर्देश और समकालीन अर्थ:
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उदार व्यक्ति को अनुकूल बोलना (speech of kindness):
- उदारता केवल धन देने तक सीमित नहीं; शब्दों में भी उदारता होनी चाहिए — दयालु और प्रेरक भाषा, जिससे समाज में गरिमा बनी रहे।
- Modern: नेताओं, प्रबंधकों, शिक्षकों के लिए— कड़वी आलोचना के बजाय सहानुभूतिपूर्ण वार्तालाप अधिक प्रभावी है।
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शौर्य में विनम्रता (bravery without boasting):
- शूरता का अर्थ दिखावा नहीं; जोन-एव जीत पर घमंड दिखाये वह अस्वस्थ नेतृत्व बनता है।
- Modern: सैनिक/CEO/नेता — अपनी क्षमताओं का अहंकार न करें; विनम्र नेतृत्व टिकाऊ होता है।
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दान में विवेक (discerning philanthropy):
- दान देना महत्त्वपूर्ण है परंतु अपात्रों को बार-बार अंधाधुंध देना दान का विडम्वनापूर्ण उपयोग है। दाता को देखने की क्षमता होनी चाहिए — दान का सही लक्ष्य और सत्य-उद्देश्य सुनिश्चित करना चाहिए।
- Modern: NGO/CSR — संसाधनों का लक्ष्यीकरण, fraud-checks, capacity-building पर निवेश न कि सिर्फ नकद वितरण।
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साहस में करुणा (compassion with boldness):
- प्रगल्भता (अर्थ: अति आत्मविश्वास/हठ) में यदि निर्दयता जुड़ जाए तो वह जर्जर कर देती है। साहस आवश्यक पर निर्दयता न हो।
- Modern: कानून लागू करने वाले, चिकित्सक, न्यायाधीश — कठोर निर्णयों में भी अनिवार्य मानवता/करुणा का स्थान हो।
समाप्ति-बिंदु: इस श्लोक का आधुनिक सार — “कर्म के साथ चरित्र” (action + character) — अर्थात व्यवहार-कुशलता के साथ नैतिक विवेक और मानवता आवश्यक है।
7. संवादात्मक नीति-कथा (Dialogue-style moral vignette)
स्थान: राजा का सभा-कक्ष — गुरु (नीतिज्ञ) व युवराज की वार्ता।
युवराज: गुरुजी, मैंने सुना है कि दरबार में कुछ लोग अपने साहस का दिखावा करते हैं और कुछ दान करते-करते गलत लोगों में धन उंडेल देते हैं — क्या करना चाहिए?
युवराज: यह नीति सरल पर गहरी है — इसे अपनाकर राज्य को भी समुचित बनाया जा सकता है।
गुरु: ठीक कहा। नीतिमूलक व्यवहार से ही सामरिक व सामाजिक दोनों स्थिरता आती है।
8. निष्कर्ष (Conclusion — सार)
- यह श्लोक चार छोटे-पर-घने नीतिसूत्र प्रदान करता है: वाणी में उदारता, शौर्य में विनम्रता, दान में विवेक, साहस में करुणा।
- न केवल व्यक्तिगत नैतिकता के लिए, बल्कि प्रशासन, परोपकार और सामुदायिक नेतृत्व के लिए भी ये निर्देश अत्यन्त प्रासंगिक हैं।
- व्यवहारिक निर्देश:
- बोलते समय स्नेह दिखाइए — वाणी आपके चरित्र की झाँकी है।
- अपनी बहादुरी को सम्हालिए — दम्भ नहीं, धर्म।
- दान करने से पहले जाँचीए कि वह दान किसे, किस लिये और किस प्रकार लाभ पहुँचाएगा।
- साहस का मतलब क्रूरता न बनना — करुणा हमेशा साथ हो।
नीति-सूत्र (Compact):“उदाहरण बनो: उदार वाणी, विनम्र वीरता, विवेकी दान, करुणामय साहस।”