संस्कृत व्याकरण में वर्ण-विचार (Phonology) भाषा की मूल ध्वनि संरचना को समझने का आधार है। यहाँ संस्कृत के स्वर (Vowels), व्यंजन (Consonants), अयोगवाह (Anusvāra, Visarga), और उच्चारण स्थान (Place of Articulation) का विस्तारपूर्वक वर्णन दिया गया है।
पाणिनि के माहेश्वर सूत्र (Māheśvara Sūtras) — १४ सूत्र — के माध्यम से संपूर्ण वर्णमाला का आधार निर्मित होता है, जो प्रत्याहार और ध्वनि-विज्ञान का मूल है। इस लेख में प्रत्येक वर्ग के वर्णों का वर्गीकरण, उदाहरणों सहित विवरण, एवं उनके उच्चारण स्थानों (कण्ठ, तालु, मूर्धा, दन्त, ओष्ठ) की तालिकाएँ दी गई हैं।
यह सामग्री संस्कृत शिक्षकों, छात्रों, और भाषाशास्त्र के शोधकर्ताओं के लिए अत्यंत उपयोगी है, जो संस्कृत ध्वनि-विज्ञान (Sanskrit Phonetics) को व्यवस्थित रूप से समझना चाहते हैं।
👉 जानिए — संस्कृत वर्ण कैसे उच्चरित होते हैं, स्वर और व्यंजन में क्या अंतर है, और माहेश्वर सूत्र किस प्रकार पाणिनि व्याकरण की नींव हैं।
संस्कृत वर्ण-विचार (Sanskrit Varna Vichar): Phonology, Types of Letters, Māheśvara Sūtras & Articulation Explained
📘 १. वर्ण-विचार (Phonology / Letters)
परिभाषा:
संस्कृत भाषा की सबसे छोटी ध्वनि इकाई को वर्ण (Varṇa) कहा जाता है।
यह वह ध्वनि है जिसे और अधिक विभाजित नहीं किया जा सकता।
संस्कृत के सभी वर्ण मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित हैं —
(१) स्वर (Vowels) और (२) व्यंजन (Consonants)।
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| संस्कृत वर्ण-विचार (Sanskrit Varna Vichar): Phonology, Types of Letters, Māheśvara Sūtras & Articulation Explained |
🕉️ १.१ माहेश्वर सूत्र (Māheśvara Sūtras)
पाणिनि द्वारा रचित ये १४ सूत्र संस्कृत ध्वनिविज्ञान की मूलाधार हैं।
इनसे ही प्रत्याहार (Pratyāhāra) का निर्माण होता है — जो संक्षिप्त रूप में वर्ण-समूहों को सूचित करते हैं।
| क्रम |
सूत्र |
व्याख्या |
| १ |
अ इ उ ण् |
स्वरों का आरंभ |
| २ |
ऋ लृ क् |
ऋ-लृ वर्ग |
| ३ |
ए ओ ङ् |
दीर्घ स्वर |
| ४ |
ऐ औ च् |
संयुक्त स्वर |
| ५ |
ह य व र ट् |
अन्तस्थ व्यंजन प्रारंभ |
| ६ |
ल ण् |
लकार |
| ७ |
ञ म ङ ण न म् |
पंचनासिक |
| ८ |
झ भ ञ् |
घोष स्पर्श |
| ९ |
घ ढ ध ष् |
घोष-ष वर्ग |
| १० |
ज ब ग ड द श् |
घोष स्पर्श द्वितीय |
| ११ |
ख फ छ ठ थ च ट त व् |
अघोष स्पर्श |
| १२ |
क प य् |
स्पर्श-ओष्ठ वर्ग |
| १३ |
श ष स र् |
ऊष्म वर्ग |
| १४ |
ह ल् |
समाप्ति सूत्र |
🪶 १.२ वर्णों का वर्गीकरण (Classification of Varṇas)
(क) स्वर (Svarāḥ / Vowels)
स्वर वे ध्वनियाँ हैं जो स्वतंत्र रूप से उच्चरित हो सकती हैं।
इन्हें अच् (Ac) कहा जाता है।
| भेद |
वर्ण |
विशेषता |
| ह्रस्व (Short) |
अ, इ, उ, ऋ, लृ |
एक मात्रा काल |
| दीर्घ (Long) |
आ, ई, ऊ, ॠ, ए, ओ, ऐ, औ |
दो मात्रा काल |
(ख) व्यंजन (Vyañjanāni / Consonants)
व्यंजन वे ध्वनियाँ हैं जो स्वरों की सहायता से उच्चरित होती हैं।
इन्हें हल् (Hal) कहा जाता है।
| मुख्य भेद |
उपभेद |
वर्ण |
| स्पर्श (Stop) |
२५ वर्ण |
क्, ख्, ग्, घ्, ङ् (क-वर्ग); च्, छ्, ज्, झ्, ञ् (च-वर्ग); ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण् (ट-वर्ग); त्, थ्, द्, ध्, न् (त-वर्ग); प्, फ्, ब्, भ्, म् (प-वर्ग) |
| अन्तस्थ (Semivowels) |
४ वर्ण |
य्, र्, ल्, व् |
| ऊष्म (Sibilants) |
४ वर्ण |
श्, ष्, स्, ह् |
🪔 टिप्पणी:
व्यंजन उच्चारण योग्य तभी बनते हैं जब उनमें स्वर जोड़ा जाता है —
उदा. क् + अ = क, ग् + अ = ग।
🌺 १.३ अयोगवाह एवं अन्य (Ayogavāha and Others)
ये वर्णमाला में प्रत्यक्ष नहीं गिने जाते, किंतु ध्वन्यात्मक रूप से आवश्यक हैं।
| नाम |
चिह्न |
उदाहरण |
| अनुस्वार (Anusvāra) |
ं |
संगमः (स + ं + गमः) |
| विसर्ग (Visarga) |
ः |
रामः (राम + ः) |
🔱 १.४ उच्चारण स्थान (Sthāna – Place of Articulation)
संस्कृत वर्णों के सही उच्चारण हेतु उनके स्थान (place of articulation) को जानना आवश्यक है।
| उच्चारण स्थान |
वर्ण |
सूत्र सन्दर्भ |
| कण्ठ (Throat) |
अ, आ, क-वर्ग, ह्, विसर्ग (ः) |
अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः |
| तालु (Palate) |
इ, ई, च-वर्ग, य्, श् |
इचुयशानां तालु |
| मूर्धा (Cerebral) |
ऋ, ॠ, ट-वर्ग, र्, ष् |
ऋटुरषाणां मूर्धा |
| दन्त (Teeth) |
लृ, त-वर्ग, ल्, स् |
लृतुलसानां दन्ताः |
| ओष्ठ (Lips) |
उ, ऊ, प-वर्ग |
उपूपध्मानीयानामोष्ठौ |
| कण्ठ-तालु (Throat–Palate) |
ए, ऐ |
एदैतोः कण्ठतालु |
| कण्ठ-ओष्ठ (Throat–Lips) |
ओ, औ |
ओदौतोः कण्ठोष्ठम् |
| दन्त-ओष्ठ (Teeth–Lips) |
व् |
वकारस्य दन्तौष्ठम् |
✳️ सारांश (Summary)
| वर्ग |
उपवर्ग |
कुल वर्ण |
| स्वर |
ह्रस्व, दीर्घ |
१३ |
| व्यंजन |
स्पर्श, अन्तस्थ, ऊष्म |
३३ |
| अयोगवाह |
अनुस्वार, विसर्ग |
२ |
| कुल योग |
— |
४८ वर्ण |
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