"यदि आप जीवन में आर्थिक समस्याओं (financial problems) का सामना कर रहे हैं या माँ लक्ष्मी की स्थायी कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो Kamala Karuna Kataksha Stotram (कमला करुणा कटाक्ष स्तोत्रम्) का पाठ सबसे अचूक उपाय माना जाता है। इस दिव्य स्तोत्र में माँ लक्ष्मी के 'कमल' समान कोमल स्वरूप और उनकी 'करुणा' (Compassion) से भरी दृष्टि का वर्णन किया गया है।
कहा जाता है कि जिस घर में श्रद्धापूर्वक इस स्तोत्र का नित्य पाठ होता है, वहाँ दरिद्रता (Poverty) कभी नहीं ठहरती और 'श्री' यानी सुख-संपत्ति का वास होता है। बहुत से भक्त इसे Kanakdhara Stotram के समान ही प्रभावशाली मानते हैं।
इस ब्लॉग पोस्ट में, हमने Kamala Karuna Kataksha Stotram को बहुत ही सरल रूप में प्रस्तुत किया है। यहाँ आपको:
शुद्ध संस्कृत श्लोक (Sanskrit Lyrics),
उनका सरल हिंदी अनुवाद (Hindi Meaning), और
पाठ करने के लाभ और विधि मिलेगी।
चाहे आप पूजा-पाठ में नए हों या संस्कृत के जानकार, यह पोस्ट आपको इस महामंत्र के अर्थ को गहराई से समझने में मदद करेगी। माँ लक्ष्मी के आशीर्वाद के लिए आज ही इस स्तोत्र का पाठ शुरू करें। जय माँ लक्ष्मी!"
Kamala Karuna Kataksha Stotram: Sanskrit Lyrics & Hindi Meaning | धन और सुख का महामंत्र
कमला करुणा कटाक्ष स्तोत्रम्
ध्यान स्तुति
| क्र. | श्लोक और अर्थ |
| १ | ॐ देवी कमलासना करुणामयी सुरूपिणि । शरणागतपालिनि त्वं सर्वत्र प्रसन्ना भव ॥१॥ हे देवी! आप कमलासन पर विराजमान, करुणा से परिपूर्ण एवं सुरूपिणी हैं। आप शरणागतों की रक्षा करने वाली हैं। आप सदा, सर्वत्र प्रसन्न रहें। |
| २ | त्वद्भक्तानां मनःस्थाने श्री ददातु शुभा मम । प्रसन्ना भूत्वा करुणार्णवे दुःखानि नश्यन्तु मे सदा ॥२॥ हे शुभमयी देवी! आपके भक्तों के हृदय में श्री (समृद्धि, सौभाग्य, लक्ष्मी) का वास हो। आप करुणा सागर की भाँति प्रसन्न होकर मेरे सभी दुःखों का नाश करें। |
| ३ | करपङ्कजपद्मनाभे स्वर्णपदसपर्शिनि । मुदितं कुरु मे चित्तं त्वत्प्रसादेन सर्वदा ॥३॥ पद्मनाभ प्रिया! आपके कमल-सदृश हाथ और स्वर्ण-वर्ण पद-स्पर्श से मेरा मन शीघ्र ही प्रसन्न और आनंदमय हो जाए। आपकी कृपा मुझ पर सदैव बनी रहे। |
| ४ | सकलसंकटहारिणि त्वं सर्वसंपत्तिदायिनि । सुखं धैर्यं च मे देहि करुणामये सुरेश्वरि ॥४॥ हे करुणामयी सुरेश्वरी! आप सारे संकटों को हरने वाली और समस्त संपत्ति देने वाली हैं। मुझे सुख और धैर्य प्रदान करें। |
मूल स्तोत्रम्
| क्र. | श्लोक और अर्थ |
| १ | शरणागतपालिनी पूर्णशक्तिः, दयाम्बुधिर्दक्षिणा दाक्षिणेयी। करोतु मे शुभदं देवि लक्ष्मि, कटाक्षवृष्ट्या सुखसारमस्मै ॥१॥ अर्थ: हे शरणागतों की रक्षा करने वाली, पूर्ण शक्ति से संपन्न, दया-सागर, दक्षिणामूर्ति, दाक्षिणेयी लक्ष्मी! मुझ पर कृपा करें और अपने कटाक्ष की वर्षा से मुझे शुभफल एवं सुख का सार दें। |
| २ | सुशीतलस्मेरमुखी समृद्धिः, मनोज्ञमालालसदंशुकान्तिः। विलसतु चेतसि मे चिराय, कमलारम्या चरणाब्जलक्ष्मी ॥२॥ अर्थ: हे कमलारम्या लक्ष्मी! आपके चेहरे की शीतल मुस्कान और मनोहारी कान्ति सदा मेरे मन में चमकती रहे। आपके चरणकमल से मेरी समृद्धि बनी रहे। |
| ३ | दारिद्र्यता दुःखजालं हरित्री, दयार्द्रदृष्ट्या झटिति प्रसन्ना। सदा ममासीत्कृपाकटाक्षस्तथा च जीवं धन्यं सुखेन ॥३॥ अर्थ: हे देवी! आप तुरंत दयार्द्र दृष्टि से दुःख और दरिद्रता का नाश करती हैं। आपके कृपाकटाक्ष से मेरा जीवन सदा सुखमय और धन्य बना रहे। |
| ४ | किं वाऽपि मन्त्रैः तपसां च वृष्ट्या, न लभ्यसे चेत्कटाक्षमात्रात्। ततोऽहमालोकय ईश्वरी त्वां, श्रद्धासमर्पेण सदा नमामि ॥४॥ अर्थ: हे देवी! यदि कोई मंत्र या तपस्यान्ना भी फल न दे, आपके कटाक्ष मात्र से सब सिद्ध हो जाता है। इसलिए मैं श्रद्धा सहित आपकी वंदना करता हूँ। |
| ५ | न रत्नशाला न च स्वर्णकूटं, न वेदपारायणपूर्तिहोमाः। यदा कटाक्षस्तव मे कृपामयस्तदा ममाऽसौ भवती शिवाय ॥५॥ अर्थ: हे लक्ष्मी! न तो रत्नकोष और न सोने के पहाड़, न ही वेद-पूजन या होम, आपके कृपाकटाक्ष के समान नहीं। जब आप कृपामयी दृष्टि डालती हैं, तब सब सफल हो जाता है। |
| ६ | वदने च विमलोद्गतचन्द्रबिम्बा, नयनद्वये नीलकमलप्रकाशा। विलसत्यनङ्गा च प्रिया सुरूपा, भवतु प्रसन्ना मयि श्रीरमा त्वम् ॥६॥ अर्थ: हे श्रीरमा! आपका चेहरा चंद्रबिंब जैसा शीतल और शुद्ध है। आपकी आँखों से नीला कमल प्रकाशमान है। आपका सुन्दर रूप सदा मेरे लिए प्रसन्नता लाए। |
| ७ | करपङ्कजे तव वरदाभयाद्ये, लसत्किरीटी मणिरत्नजाले। मधुमत्तभृङ्गावलिसंवृताङ्घ्रे, विहर मम चित्तसरोरुहे त्वम् ॥७॥ अर्थ: हे देवी! आपके हाथ के पंकज वरद और अभय प्रदायक हैं। आपके सिर पर मणि और रत्नों से अलंकृत मुकुट चमक रहा है। आपके मधुर और रचित अंगों का सौंदर्य मेरे चित्त में सदा विचरता रहे। |
| ८ | अनुगृह्णतु मां वरदाङ्कपद्मा, स्मितमञ्जरीभृतमधुर्मुखेया। विकसन्मणिः पट्टविभूषिता या, कल्याणदा कामदा केवलैषा ॥८॥ अर्थ: हे देवी! आपके वरद हाथ और पादकमल से मुझे कृपा करें। आपके मधुर मुख और मुस्कान सदा मेरे जीवन में कल्याण और सुख का कारण बने। |
| ९ | यस्याः स्मृत्या विपुलं श्रियमेत्य, वाणिज्यं वा सुहृदः कुलधर्माः। नश्यन्त्याशु रिपवोऽपि स्वयं मे, सा पातु मां श्रीपतिवल्लभायै ॥९॥ अर्थ: हे देवी! जिनकी स्मृति मात्र से समृद्धि, व्यापार और कुलधर्म में वृद्धि होती है, और जो शत्रुओं को नष्ट करती हैं—ऐसी श्रीपतिवल्लभा देवी मुझे सदा सुरक्षा दें। |
| १० | त्वमाश्रिता वाञ्छितसिद्धिदात्री, त्वमेकया भाव्यसि हृत्सरोजे। त्वदर्चनं यस्य गृहे प्रयुक्तं, तत्रैव लक्ष्म्याः पदमुत्तमं स्यात् ॥१०॥ अर्थ: हे देवी! आप आश्रितों की इच्छाओं को पूर्ण करने वाली हैं। आपके एकमात्र ध्यान और भाव से घर में लक्ष्मी का सर्वोत्तम स्थान स्थापित होता है। |
| ११ | वर्षसि भक्तेक्षणगोचरायां, त्वं धनमत्यद्भुतमद्भुतानि। स्मरणेनापि प्रसरा त्वमेशे, सकलार्थसिद्धिपरिपूर्णदात्री ॥११॥ अर्थ: हे देवी! आप भक्तों की दृष्टि में सदा वर्षा करती हैं। आपके स्मरण मात्र से भी मेरे जीवन में अद्भुत धन और सुख फैलता है। आप सब प्रकार के कार्यों में पूर्ण सफलता देने वाली हैं। |
| १२ | त्वं कनकधारमयी कृपास्या, दयासुधासारसगन्धयुक्ता। निरीक्षिता येन जनः स लोके, सुखानि पुष्णाति दिनैः क्षणेन ॥१२॥ अर्थ: हे लक्ष्मी! आप सोने की धारा जैसी कृपालु हैं, दया और अमृत जैसी सुगंधयुक्त हैं। जिन लोगों पर आपकी दृष्टि पड़ती है, उनके जीवन में शीघ्र ही सुख और समृद्धि आती है। |
| १३ | कुपथे पतितं च मामनाथं, विहाय मां नाथवती न काचित्। त्वमेककी देवि दयामयी या, समुद्धर त्वं शरणं गतं माम् ॥१३॥ अर्थ: हे दयालु देवी! जब मैं पाप और कठिनाइयों के मार्ग पर गिरा, तब आपने मुझे अपने शरण में उठाया। आप एकमात्र आश्रय देने वाली देवी हैं। |
| १४ | कनकमयैः कुन्दकुसुमगौरैः, वसनविभूषितया मनोज्ञैः। प्रभया तव मे मनसा विमिश्रा, स्फुरतु सदा श्रीमयी सुधेयं ॥१४॥ अर्थ: हे देवी! आपके सोने जैसे आभूषण और सुंदर वस्त्र मेरे मन में सदा विमल और मंगलमय प्रभाव उत्पन्न करें। आपका तेज और सौंदर्य मेरे हृदय में स्थायी रहे। |
| १५ | सदास्मि तवैकदृशां वरेण्यो, न मेऽस्ति किञ्चित् स्वयमेव शक्तिः। त्वमेव चिन्तासमये प्रबोध्या, कृपां कुरु त्वं मयि कोटिलक्ष्मि ॥१५॥ अर्थ: हे देवी! मैं सदा आपके जैसी श्रेष्ठा और एकमात्र साध्य हूँ। मेरी कोई शक्ति स्वयं में नहीं है। संकट और चिन्ता के समय आप मुझे जाग्रत करें और अनंत समृद्धि प्रदान करें। |
| १६ | त्वदीयं पादाम्बुजसङ्गतं मे, भवेदधिष्ठानमशेषसिद्ध्यै। संसारसिन्धौ पतितं जनं मां, उद्धारयाशु करुणार्णवे त्वम् ॥१६॥ अर्थ: हे माता! आपके चरणों का संग मेरे लिए शाश्वत सिद्धियों का आधार बने। आप ही मुझे संसार के समुद्र से निकाल कर करुणा के सागर में सुरक्षित करें। |
| १७ | द्राक्षारसारुणनिभं वदनं, स्निग्धं दृगञ्चलमनोहरं यत्। दृष्ट्वा च नष्टं सकलं ममेति, सदा स्मरामि त्वदनन्तरूपम् ॥१७॥ अर्थ: हे देवी! आपका मुख अंगूर के रस जैसी लालिमा और सौम्यता से परिपूर्ण है। आपकी दृष्टि मात्र से मेरे सभी संकट नष्ट हो जाते हैं। मैं सदा आपके अनंत रूप को स्मरण करता हूँ। |
| १८ | त्वमङ्गना चेतसि चिन्मयी या, त्वमेव चित्ते परमेश्वरी च। न मे भयं तव पदप्रसादा, न मे विषादो न च मोहबन्धः ॥१८॥ अर्थ: हे देवी! आप मेरे मन की चेतना और परमेश्वरी हैं। आपके चरणों की कृपा से मुझे न भय, न विषाद और न मोह का बंधन सताए। |
| १९ | दिव्याङ्गनानां सुरसुन्दराणां, त्वमेव मूलं रमणीयभावम्। समीरणे नूपुरवर्णनं यत्, त्वदीयमेतत्कलया लसन्ति ॥१९॥ अर्थ: हे देवी! सभी दिव्य और सुरसुनदरियों का मूल आप ही हैं। आपके रूप की सुंदरता से हवा में झंकृत नूपुर भी चमकते हैं। |
| २० | मत्तालिमालोपगतेव दिव्या, कुवेरगेहे किल कन्यका या। स तादृशं सम्पदमाप्य लोकं, भजत्यनल्पं तव दृष्टिमात्रात् ॥२०॥ अर्थ: हे देवी! जैसे दिव्य मल्लिका-मालाएं आपके चरणों पर आती हैं, वैसे ही आपके दृष्टिपात मात्र से व्यक्ति कम समय में संसार में समृद्धि और संपत्ति प्राप्त कर लेता है। |
| २१ | शुभेति घोषेण जगत्समेतं, त्वां चिन्तयन्तो लभते च सौख्यम्। श्रियेति नाम्ना भवती प्रसन्ना, दयार्द्रया भावयतां हृदिस्था ॥२१॥ अर्थ: हे देवी! जब लोग आपका ध्यान “शुभेति” शब्द से करते हैं, तब वे सुख और समृद्धि प्राप्त करते हैं। आपकी दयार्द्र दृष्टि हमेशा हृदय में स्थायी रहे। |
| २२ | त्वं धर्मनाथा, त्वमृतेश्वरी च, त्वं कामराजप्रियमन्त्रिणी च। त्वं ब्रह्मविद्या, त्वमणुग्रहेशी, त्वं चिन्मयी चेतसि दीपिकेव ॥२२॥ अर्थ: हे देवी! आप धर्म और मोक्ष की अधिष्ठात्री, कामराजप्रिय, ब्रह्मविद्या की दात्री और कृपालु हैं। आप मेरे चित्त में दीपक के समान प्रकाशित हो। |
| २३ | ह्लादिन्यहो शक्तिरसीदनन्ता, प्रसादिनी संहृतिसंविधात्री। सदा मया भाव्यसि भावयुक्त्या, बिना त्वदीयं न सुखं हि लोके ॥२३॥ अर्थ: हे देवी! आपकी शक्ति अनंत हर्ष और प्रसन्नता देती है। आप सदा मेरी भावनाओं से जुड़ी रहती हैं। आपके बिना संसार में सुख प्राप्त नहीं हो सकता। |
| २४ | अहर्निशं त्वां हृदि भावयामि, विलोकये त्वां मम चित्तनेत्रैः। स्वप्ने जगे वा सुषुपौ च या त्वं, त्वमेव देवि प्रियमात्मरूपम् ॥२४॥ अर्थ: हे देवी! मैं दिन-रात आपका हृदय में ध्यान करता हूँ। चाहे जागते समय, सपने में या गहरी नींद में, आप मेरे प्रिय आत्मरूप से सदा प्रकट हों। |
| २५ | त्वत्सङ्गमे यः पुरुषोऽप्यचेताः, बुध्येत शीघ्रं त्वदुपासनायाम्। स धन्यधन्यः स गुणप्रवाहः, स चेश्वरी सन्निधिना सुवन्द्यः ॥२५॥ अर्थ: हे देवी! जो भी व्यक्ति आपका संग चाहे और आपकी उपासना में मन लगाए, वह शीघ्र ही धन्य और गुणों से परिपूर्ण होता है। आपकी सन्निधि में वह शुभ और सम्मानित बनता है। |
| २६ | यत्र स्थिता त्वं शुभदा गृहेषु, तत्रैव पुष्टिः परमा हि लक्ष्मीः। गजेन्द्रवत्पद्मवनं गता सा, विनिर्गता नापि कदाचिदीशे ॥२६॥ अर्थ: हे देवी! जहाँ आप शुभ रूप में घर में निवास करती हैं, वहाँ सर्वोच्च लक्ष्मी की पुष्टि होती है। जैसे गजेंद्र कभी कमलवन से नहीं जाता, वैसे ही लक्ष्मी आपके घर से दूर नहीं होती। |
| २७ | नित्यं समृद्ध्या सह संयुता या, त्वदीयवृत्तिर्मम भूत्वमस्तु। कदा नु ते पादसरोजभक्तिं, लब्ध्वा भवेयं सुखसंवृतोऽहम् ॥२७॥ अर्थ: हे देवी! आप सदा समृद्धि और सफलता से युक्त रहती हैं। आपके चरणकमल की भक्ति प्राप्त कर मैं सदा सुखी और सुरक्षित रहूँ। |
| २८ | न कञ्चनं मे हृदये प्रियेऽन्यत्, त्वमेव लक्ष्मीः परमात्मभावा। विलीयमानोऽस्मि तवैव चिन्तां, चिन्मात्रवृत्तौ भवसागरस्य ॥२८॥ अर्थ: हे देवी! मेरे हृदय में और कोई प्रिय नहीं है। आप ही मेरी परम लक्ष्मी और परमात्मा हैं। मैं केवल आपके ध्यान में विलीन होकर जीवनसागर में सुरक्षित रहूँ। |
| २९ | यदा कटाक्षोऽपि भवत्ययत्नः, तदा मम प्रार्थनया किमस्ति। त्वमेकसिद्धिप्रदया प्रसन्ना, कृपां कुरुष्वाधुना मयि त्वम् ॥२९॥ अर्थ: हे देवी! जब आपका कटाक्ष भी स्वतः कार्य करता है, तब मेरी प्रार्थना की आवश्यकता नहीं। आप एकमात्र सिद्धिप्रदायिनी हैं। कृपा करके मुझे सदा प्रसन्न रखें। |
| ३० | त्वं योगिनां ध्यानविभावनी या, त्वं चात्मविद्यापरिपाकहेतुः। त्वं केवलं भक्तजनैकशक्ता, त्वं विश्वमातेत्युपरि स्थिता च ॥३०॥ अर्थ: हे देवी! आप योगियों के ध्यान का आधार और आत्मविद्या की पूर्णता का कारण हैं। आप केवल भक्तों की आश्रित हैं और सम्पूर्ण जगत की माता भी हैं। |
| ३१ | चन्द्रबिम्बसमा त्वं च, सौम्या करुणयार्द्रिता। रक्ष मां सकलापद्भ्यः, भुवनेशि कृपामयी ॥३१॥ अर्थ: हे देवी! आप चंद्रमा जैसी सौम्य और करुणामयी हैं। आप मुझे सभी संकटों और पापों से सुरक्षित रखें। |
| ३२ | मन्दस्मितेन हससि या, क्रीडसि जगतां हिते। सृष्टिस्थितिलयकर्त्री, सा त्वं भव सदा मयि ॥३२॥ अर्थ: हे देवी! आपकी मृदु मुस्कान से जगत का कल्याण होता है। आप सृष्टि, स्थिति और लय की रचना करती हैं। आप सदा मेरे साथ रहें। |
| ३३ | कल्पवृक्षसमालभ्या, वरदां त्वां सदा भजे। त्वदीयं चिन्तनं मातः, सर्वपापविनाशनम् ॥३३॥ अर्थ: हे देवी! आप कल्पवृक्ष के समान सब इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। आपका स्मरण करने से सभी पाप नष्ट होते हैं। |
| ३५ | मातङ्ग्याः च भावेन, ललितायाश्च शक्तिभिः। त्वमेव हि समाराध्या, सप्तवर्ण्यभिधायिनी ॥३५॥ अर्थ: हे देवी! आप ही मातंगी और ललिता की शक्तियों में समाहित हैं। आप ही सच्ची पूज्य हैं और सभी सप्त वर्णों में प्रतिष्ठित हैं। |
| ३६ | श्रीविद्ये, परशक्तिस्त्वं, कुण्डलिन्यप्यहर्निशम्। षोडशी विद्या रूपेण, मुदं कुरु मयि सदा ॥३६॥ अर्थ: हे देवी! आप श्रीविद्या और परशक्ति स्वरूप हैं। आप कुण्डलिनी रुप में सदैव सक्रिय रहती हो। षोडशी विद्या के रूप में आप सदा मुझमें आनंद उत्पन्न करें। |
| ३७ | कल्याणवृष्टिः या देवी, वर्षसि चित्तसन्ततिम्। त्वद्भक्तः परमं याती, ब्रह्मलोकं सुखान्वितम् ॥३७॥ अर्थ: हे देवी! आप सदा कल्याण की वर्षा करते हुए भक्त के हृदय में निवास करती हैं। आपके भक्त ब्रह्मलोक में सुखों सहित पहुँचते हैं। |
| ३८ | कनकधारा कृपया या, ददाति स्वर्णसञ्चयम्। तस्यां प्रीते सुखं तावत्, न विद्यते विपत्तयः ॥३८॥ अर्थ: हे देवी! आप सोने की धारा जैसी कृपा से धन-संपत्ति प्रदान करती हैं। आपकी प्रसन्नता में जितना सुख है, उतना विपत्ति से बचाव भी है। |
| ३९ | यत्र श्रीः पादपद्मं च, यत्र भक्तिः प्रतिष्ठिता। तत्र दुःखं न तिष्ठेत, न च मृत्युः भयङ्करः ॥३९॥ अर्थ: हे देवी! जहाँ आपके चरणकमल और भक्त की भक्ति निवास करती है, वहाँ दुख और मृत्यु का भय कभी नहीं रहता। |
| ४० | न त्वमेका रमा देवि, त्वं राधा त्वं हि चापरा। त्वं भुवनेश्वरी देवी, त्वं कनकधारिणी शिवे ॥४०॥ अर्थ: हे देवी! आप केवल रमा ही नहीं हैं, आप राधा भी हैं। आप भुवनेश्वरी और सोने की धारा की धारिणी हैं। |
| ४१ | ललिता त्वं, महात्रिपुरा, षोडशी च सदा मम। श्रीचक्रराजसंस्थे च, त्रैलोक्यमोहनाकृतिः ॥४१॥ अर्थ: हे देवी! आप ललिता, महात्रिपुरा और षोडशी रूप में सदा मेरे साथ हैं। श्रीचक्रराज में प्रतिष्ठित होकर आप सम्पूर्ण त्रिलोक को मोहित करती हैं। |
| ४२ | सौम्यं सौन्दर्यमाधुर्यं, त्वत्तो लभ्यं हि सन्नतम्। रसमाधुर्यकान्तारि, श्रीकृष्णप्रियवल्लभे ॥४२॥ अर्थ: हे देवी! आपका सौम्य सौंदर्य और माधुर्य साधक को प्राप्त होता है। आपकी मधुरता और आकर्षण श्रीकृष्णप्रिय रूप में विशेष रूप से दिखाई देता है। |
| ४३ | नमस्ते विश्वरूपिण्यै, नमस्ते भक्तवत्सले। नमस्ते भुवनेशान्यै, नमस्ते कमले सदा ॥४३॥ अर्थ: हे देवी! नमस्कार आपको, जो विश्वरूपा हैं, भक्तवत्सला हैं, भुवनेश्वरी हैं और सदा कमल जैसी सुंदर हैं। |
| ४४ | त्वं श्रीराधा त्वमेव श्रीः, त्वं च कनकदायिनी। कटाक्षे वर्तसे मातः, यतः सर्वं हि लभ्यते ॥४४॥ अर्थ: हे देवी! आप स्वयं श्रीराधा और कनकधारिणी हैं। आपके कटाक्ष से ही सभी कल्याण और संपत्ति प्राप्त होती है। |
| ४५ | शरणागतपालिनी पूर्णशक्तिः, दयाम्बुधिर्दक्षिणा दाक्षिणेयी। करोतु मे शुभदं देवि लक्ष्मि, कटाक्षवृष्ट्या सुखसारमस्मै ॥४५॥ अर्थ: हे देवी! आप शरणागतों की पालक, पूर्णशक्ति वाली और दयालु हैं। आपके कटाक्ष की वर्षा से मुझे सुख और कल्याण प्राप्त हों। |
| ४६ | सुशीतलस्मेरमुखी समृद्धिः, मनोज्ञमालालसदंशुकान्तिः। विलसतु चेतसि मे चिराय, कमलारम्या चरणाब्जलक्ष्मी ॥४६॥ अर्थ: आपका सौम्य मुख और मधुर स्मित मेरे हृदय में हमेशा प्रकाशमान रहें। आप कमलारूपा और चरणकमल लक्ष्मी हैं। |
| ४७ | हरसि दारिद्र्यदुःखजालं, दयार्द्रदृष्ट्या झटिति प्रसन्ना। सदा ममासीत्कृपाकटाक्षः, त्वदीय एष श्रीकरेश्वरीणाम् ॥४७॥ अर्थ: आप करुणामयी दृष्टि से मुझे दारिद्र्य और दुखों से तुरंत मुक्त करें। आपका कृपाकटाक्ष सदा मेरे साथ रहे। |
| ४८ | न रत्नशाला न च स्वर्णकूटं, न वेदपारायणपूर्तिहोमाः। यदा कटाक्षस्तव मे कृपामयः, तदा ममाऽसौ भवती शिवाय ॥४८॥ अर्थ: स्वर्ण और रत्न की संपत्ति, वेद-यज्ञ या तपस्या से अधिक लाभकारी आपका कृपाकटाक्ष है। |
| ४९ | वदने विमलोद्गतचन्द्रबिम्बा, नयनद्वये नीलकमलप्रकाशा। विलसत्यनङ्गप्रिया सुरूपा, भवतु प्रसन्ना मयि श्रीरमा त्वम् ॥४९॥ अर्थ: आपका मुख चंद्रमा जैसा शुद्ध और सुंदर है, नयन नीले कमल के समान चमकते हैं। हे देवी! आप मेरे लिए हमेशा प्रसन्न रहें। |
| ५० | करपङ्कजे वरदाभयाद्ये, लसति किरीटी मणिरत्नजाले। मधुमत्तभृङ्गावलिसंवृताङ्घ्रे, विहर मम चित्तसरोरुहे त्वम् ॥५०॥ अर्थ: आपके करपद्म वरदान और अभय प्रदान करते हैं, मणि और रत्नों से अलंकृत मुकुट में मधुमक्खी जैसी मधुरता है। हे देवी! आप मेरे हृदय में निवास करें। |
| ५१ | अनुगृह्णतु मां वरदाङ्कपद्मा, स्मितमञ्जरीभृतमधुर्मुखेया। विकसन्मणिपट्टविभूषिता या, कल्याणदा कामदा केवलैषा ॥५१॥ अर्थ: हे देवी! आप मुझे वरदांकपद्मा से आशीर्वाद दें। आपका मधुर स्मित और रत्नों से सुसज्जित रूप केवल कल्याण और कामना पूर्ण करता है। |
| ५२ | यस्याः स्मृत्या विपुलं श्रियमेत्य, वाणिज्यं वा सुहृदः कुलधर्माः। नश्यन्त्याशु रिपवोऽपि स्वयं मे, सा पातु मां श्रीहरिकान्तायै ॥५२॥ अर्थ: जिसका स्मरण करने से संपत्ति, व्यवसाय और परिवार की भलाई होती है, और शत्रु भी नष्ट हो जाते हैं, वही देवी मेरी रक्षा करें। |
| ५३ | त्वमाश्रिता वाञ्छितसिद्धिदात्री, त्वमेकया भाव्यसि हृत्सरोजे। त्वदर्चनं यस्य गृहे प्रयुक्तं, तत्रैव लक्ष्म्याः पदमुत्तमं स्यात् ॥५३॥ अर्थ: हे देवी! आप शरणागत की इच्छाओं और सिद्धियों की दात्री हैं। आपका आराधन जहाँ होता है, वहाँ लक्ष्मी का प्रिय स्थान होता है। |
| ५४ | वर्षसि भक्तेक्षणगोचरायां, त्वं धनमत्यद्भुतमद्भुतानि। स्मरणेनापि प्रसरा त्वमेशे, सकलार्थसिद्धिपरिपूर्णदात्री ॥५४॥ अर्थ: हे देवी! आप भक्तों की दृष्टि में हमेशा धन, समृद्धि और अद्भुत वस्तुएँ वर्षा करती हैं। स्मरण मात्र से ही आप सभी कल्याणकारी फल देती हैं। |
| ५५ | त्वं कनकधारमयी कृपास्या, दयासुधासारसगन्धयुक्ता। निरीक्षिता येन जनः स लोके, सुखानि पुष्णाति दिनैः क्षणेन ॥५५॥ अर्थ: आप कनकधारा लक्ष्मी और दयामयी हैं। जिन पर आपकी दृष्टि पड़ती है, वे दिन-क्षण में सुख संपन्न होते हैं। |
| ५६ | कुपथे पतितं च मामनाथं, विहाय मां नाथवती न काचित्। त्वमेककी देवि दयामयी या, समुद्धर त्वं शरणं गतं माम् ॥५६॥ अर्थ: हे देवी! मैं अज्ञानी और कुपथ पर हूँ, आप मेरी सहायता करें और मुझे शरणागत बनाकर उद्धार करें। |
| ५७ | कनकमयैः कुन्दकुसुमगौरैः, वसनविभूषितया मनोज्ञैः। प्रभया तव मे मनसा विमिश्रा, स्फुरतु सदा श्रीमयी सुधेयं ॥५७॥ अर्थ: आप स्वर्णवर्ण और कुंदकुसुम के समान सुंदर हैं। आपके प्रभाव से मेरा हृदय विमल और आनंदित हो, ऐसा कृपा सदैव बनी रहे। |
| ५८ | सदास्मि तवैकदृशां वरेण्यो, न मेऽस्ति किञ्चित् स्वयमेव शक्तिः। त्वमेव मम एकैकाक्षा धायिनी, कृपां कुरु त्वं मयि सर्वसंपत्तये ॥५८॥ अर्थ: "हे देवी! मैं हमेशा आपकी एकमात्र आशा हूँ। मेरी अपनी कोई शक्ति नहीं है। केवल आपकी कृपा से ही मैं सभी सुख और समृद्धि प्राप्त करूँ। आप ही मेरी एक मात्र आशा हो।" |
| ५९ | त्वदीयं पादाम्बुजसङ्गतं मे, भवेदधिष्ठानमशेषसिद्ध्यै। संसारसिन्धौ पतितं जनं मां, उद्धारयाशु करुणार्णवे त्वम् ॥५९॥ अर्थ: हे देवी! आपके चरणकमल मेरे लिए सभी सिद्धियों का आधार है। संसार के समुद्र में डूबते हुए मुझे अपने करुणा-सागर से उद्धार करें। |
| ६० | द्राक्षारसारुणनिभं वदनं, स्निग्धं दृगञ्चलमनोहरं यत्। दृष्ट्वा च नष्टं सकलं ममेति, सदा स्मरामि त्वदनन्तरूपम् ॥६०॥ अर्थ: आपका मुख द्राक्षारस-समान लाल, नयन मनोहर और मोहक है। आपका स्मरण करने मात्र से मेरे सभी कष्ट नष्ट हो जाते हैं। |
| ६१ | त्वमङ्गना चेतसि चिन्मयी या, त्वमेव चित्ते परमेश्वरी च। न मे भयं तव पदप्रसादा, न मे विषादो न च मोहबन्धः ॥६१॥ अर्थ: हे देवी! आप मेरी चेतना में और हृदय में परमेश्वरी रूप में विद्यमान हैं। आपके चरणों की कृपा से मुझे न भय, न विषाद और न मोहबन्ध होता है। |
| ६२ | दिव्याङ्गनानां सुरसुन्दराणां, त्वमेव मूलं रमणीयभावम्। समीरणे नूपुरवर्णनं यत्, त्वदीयमेतत्कलया लसन्ति ॥६२॥ अर्थ: हे देवी! आप सभी दिव्यांगनाओं और सुरसुंदरियों की मूल और रमणीय भावना हैं। आपके सौंदर्य की झलक उनकी नूपुरों और कलाओं में प्रकट होती है। |
| ६३ | मत्तालिमालोपगतेव दिव्या, कुवेरगेहे किल कन्यका या। स तादृशं सम्पदमाप्य लोकं, भजत्यनल्पं तव दृष्टिमात्रात् ॥६३॥ अर्थ: "जैसे किसी दिव्य व्यक्तित्व के हाथ में माला या अलंकरण सजता है, वैसे ही कुवेर के घर में कोई कन्यकां (संपत्ति/धन-संपदा) होती है। उसी प्रकार, कोई भक्त यदि आपका ध्यान और भक्ति करता है, तो उसे कम से कम भी आपके दर्शन मात्र से महान संपत्ति और वैभव प्राप्त हो जाता है।" |
| ६४ | शुभेति घोषेण जगत्समेतं, त्वां चिन्तयन्तो लभते च सौख्यम्। श्रियेति नाम्ना भवती प्रसन्ना, दयार्द्रया भावयतां हृदिस्था ॥६४॥ अर्थ: संपूर्ण जगत आपका नाम लेकर आपका स्मरण करता है। ऐसा स्मरण करने वाला व्यक्ति सुख और समृद्धि पाता है। हे देवी! आप हृदय में दयालु भाव से प्रसन्न रहें। |
| ६५ | त्वमेव मेऽप्याशासि लक्ष्मी, कृपामयी परमेश्वरी। भक्तियोगप्रदायिनि त्वं, समृद्धिं कुरु मे नित्यदा ॥६५॥ अर्थ: हे देवी! आप मेरी आशा हैं, कृपामयी और परमेश्वरी लक्ष्मी। आप ही भक्तियोग देने वाली हैं, मेरी समृद्धि और सुख-सम्पत्ति हमेशा बनाए रखें। |
| ६६ | ह्लादिन्यहो शक्तिरसीदनन्ता, प्रसादिनी संहृतिसंविधात्री। सदा मया भाव्यसि भावयुक्त्या, बिना त्वदीयं न सुखं हि लोके ॥६६॥ अर्थ: आपकी अनंत शक्ति और प्रसाद ही मुझे हर्ष और सफलता प्रदान करती है। आपके बिना संसार में सुख नहीं मिलता। |
| ६७ | अहर्निशं त्वां हृदि भावयामि, विलोकये त्वां मम चित्तनेत्रैः। स्वप्ने जगे वा सुषुपौ च या त्वं, त्वमेव देवि प्रियमात्मरूपम् ॥६७॥ अर्थ: मैं दिन-रात आपको हृदय और चित्त में स्मरण करता हूँ। जागते, सोते या स्वप्न में भी आप मेरी प्रिय आत्मा रूपी देवी हैं। |
| ६८ | कल्याणदा माता त्वं, करुणा पूर्णा सदा। मम जीवनपथेषु, प्रकाशं कुरु कृपया ॥६८॥ अर्थ: हे माता! आप हमेशा कल्याण देने वाली और करुणा पूर्ण हैं। मेरे जीवन मार्ग में कृपया प्रकाश डालें। |
| ६९ | संकटमोचन त्वमेव, दुःखहरणि मम। कटाक्षवृष्ट्या प्रसन्ना, सुखसंपत्ति दायिनी ॥६९॥ अर्थ: हे देवी! आप संकट और दुःख हरने वाली हैं। आपका कटाक्ष मुझे सुख और समृद्धि प्रदान करे। |
| ७० | नित्यं तव स्मरणेन, मनः प्रसन्नं भवेत्। सर्वक्लेशहरं त्वं, माता मम प्रियतम ॥७०॥ अर्थ: आपका नित्य स्मरण मेरे मन को प्रसन्नता दे और सभी कष्ट दूर करें। |
| ७१ | पदपद्मारविन्देन, जीवनं सज्जितं मे। भवतु सर्वसिद्धिः मम, त्वदीया कृपया सदा ॥७१॥ अर्थ: आपके चरणकमलों के स्पर्श से मेरा जीवन सज्जित हो। आपकी कृपा से मुझे सभी सिद्धियाँ प्राप्त हों। |
| ७२ | संतानप्राप्तिदायिनी, गृहकल्याणकरिणी। सुखसंपदा प्रदान कृत्वा, करुणा मम भूषा ॥७२॥ अर्थ: हे माता! आप संतान और गृह कल्याण देने वाली हैं। कृपया करुणा के साथ मुझे सुख और संपत्ति दें। |
| ७३ | सर्वशत्रुनाशिनी त्वं, रक्षणकर्ता मम। सदैव कटाक्षेनैव, द्रष्टव्यमस्मि भवः ॥७३॥ अर्थ: आप सभी शत्रुओं का नाश करने वाली हैं। आपका कृपा कटाक्ष हमेशा मेरी रक्षा करे। |
| ७४ | भक्तिसंपन्नात्मनोऽपि, सुखं त्वया लभ्यते। सकलसंपत्ति युक्तं, मम जीवनं भवतु ॥७४॥ अर्थ: भक्तजन भी आपकी कृपा से सुख और समृद्धि पाते हैं। मेरे जीवन में संपत्ति और सुख हमेशा रहे। |
| ७५ | कनकधारा माता त्वं, सर्वकार्यसिद्धिदा। सदा करुणावृष्ट्या, मम जीवनं भूषिता ॥७५॥ अर्थ: आप कनकधारा माता हैं, जो सभी कार्यों में सिद्धि देती हैं। आपकी करुणा मेरे जीवन को सुंदर बनाये। |
| ७६ | सुखसंपत्तिदायिनी त्वं, दुःखविनाशिनी च। करूणाकटाक्षमात्रेणैव, मम जीवने प्रकाशा ॥७६॥ अर्थ: हे देवी! आप सुख और संपत्ति देने वाली और दुःख हरने वाली हैं। आपका करूणा कटाक्ष मेरे जीवन में प्रकाश फैले। |
| ७७ | भक्तपरायण त्वमेव, हृदयप्रसन्नकरिणी। सर्वसंपत्तिप्रदा त्वं, मम जीवनसखा ॥७७॥ अर्थ: आप केवल भक्तों की भलाई चाहने वाली हैं। आप मेरे हृदय को प्रसन्न करें और मेरे जीवन में सभी संपत्ति प्रदान करें। |
| ७८ | सदैव मम रक्षणे, संकल्पसिद्धिदायिनी। कटाक्षे कृपारसिके, जीवनमेव सम्पन्नम् ॥७८॥ अर्थ: आप सदा मेरे रक्षण में रहें और मेरे सभी संकल्प पूर्ण करें। आपका कृपाकटाक्ष मेरे जीवन को सफल बनाये। |
| ७९ | सर्वजनहिते त्वं, करुणा पूर्णमयी। भवतु मम जीवनं, तव कृपया हृष्टम् ॥७९॥ अर्थ: आप सभी की भलाई चाहने वाली, करुणा से पूर्ण हैं। आपकी कृपा से मेरा जीवन आनंदित हो। |
| ८० | सदा हृदयसुखदा त्वं, संतापहरिणी च। कृपा कटाक्षमात्रेणैव, मम जीवने विजयी भूयात् ॥८०॥ अर्थ: आप सदा हृदय को सुख देने वाली और संताप दूर करने वाली हैं। आपका कृपा कटाक्ष मेरे जीवन में विजय दिलाये। |
| ८१ | कनकधारा करुणा, सम्पत्ति दायिनी माता। भक्तजनाभिलाषितं, लभन्तु सर्वदा मे ॥८१॥ अर्थ: हे कनकधारा माता! आप करुणा और संपत्ति देने वाली हैं। आपके कृपाकटाक्ष से मेरी सभी इच्छाएँ हमेशा पूर्ण हों। |
फलश्रुति
| क्र. | श्लोक और अर्थ |
| ८२ | स्तुत्या त्वां सर्वानन्दमयीं कमलाम्, यः पठेत् स तव कृपादृष्टिं प्राप्नुयात्। सर्वसुखसौभाग्यसम्पन्नो भूयात्, भवसागरात् च मोक्षं प्राप्नुयात् ॥८२॥ अर्थ: हे सर्वानंदमयी कमला माता! जो व्यक्ति आपकी यह सुंदर स्तुति पढ़े, उस पर आपकी कृपा दृष्टि बनी रहे। वह सभी सुख-सौभाग्य प्राप्त करे और अंत में भवसागर से मुक्त हो जाए। |
| ८३ | सत्यनारायण्यै स्थिरं तस्य गृहं यत्र गुणगानम्। स पुत्रा धर्मसंयुक्ता कन्याश्च पवित्रजीविनः। ऋद्धिसिद्धयश्च तत्रैव वसन्ति सदा स्थिरा ॥८३॥ अर्थ: हे सत्यनारायणी देवी! जहाँ आपका गुणगान होता है, आप उस घर में स्थिर रहती हैं। वहाँ पुत्र धर्मसंयुक्त और कन्याएँ पवित्र जीवन जीती हैं। ऋद्धि-सिद्धि भी उस घर में सदा निवास करती हैं। |
| ८४ | यः पठेच्छ्रद्धया युक्तः, करूणा कटाक्षस्तोत्रमीदृशम्। स लभेत्कामितं सर्वं, श्रीः सदा नित्यवासिनी ॥८४॥ अर्थ: जो व्यक्ति श्रद्धा के साथ इस करूणा कटाक्ष स्तोत्र का पाठ करता है, उसकी सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं और वहाँ सदैव लक्ष्मी का वास रहता है। |
| ८५ | युद्धे जयः सुखं वापि, दारिद्र्यं च नश्यति। रोगशोकविनाशश्च, स्तोत्रस्येति फलश्रुतिः ॥८५॥ अर्थ: इस स्तोत्र के नियमित पाठ से युद्ध में विजय, सुख, और दारिद्र्य का नाश होता है। रोग और शोक भी नष्ट होते हैं। |
| ८६ | मन्त्रं न जानाति यदि, मन्त्रवर्जोऽपि भक्तिमान्। पठेच्चेदिदमेकं स्तोत्रं, लभते श्रियमात्मनीम् ॥८६॥ अर्थ: यदि कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता या मंत्रविहीन है, तब भी यदि वह भक्तिभाव से यह स्तोत्र पढ़े, तो उसे जीवन में श्री और समृद्धि प्राप्त होती है। |
| ८७ | यत्र पाठो नित्यकाले, यत्र भक्तिः दृढा सदा। तत्रैव श्रीः समायाति, स्थायिनी न च चलिता ॥८७॥ अर्थ: जहाँ यह स्तोत्र नियमित रूप से, दृढ़ भक्ति के साथ पढ़ा जाता है, वहाँ लक्ष्मी स्थायी रूप से निवास करती हैं और कभी विचलित नहीं होतीं। |
| ८८ | श्रीकेशववल्लभे रम्ये रसेश्वरी शुभे । कृपाकटाक्षं मे देहि जीवितं भवतु त्वयि ॥८८॥ अर्थ: हे केशव वल्लभा, रमणीय और शुभ स्वरूपिणी रसेश्वरी देवी! कृपा करके मुझे अपना कृपा कटाक्ष दें और मेरा जीवन आपके आशीर्वाद से ही सफल हो। |
| ८९ | इति सम्पूर्णमेतद्वै कमलाकरुणाकटाक्षस्तोत्रम् । भक्त्युदितं पठेन्नित्यं लभते सुखसम्पदः ॥८९॥ अर्थ: इस प्रकार कमला-करुणा-कटाक्ष-स्तोत्र पूर्ण हुआ। जो व्यक्ति इसे भक्ति भाव से नित्य पढ़ता है, वह सुख और संपत्ति प्राप्त करता है। |
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| Kamala Karuna Kataksha Stotram: Sanskrit Lyrics & Hindi Meaning | धन और सुख का महामंत्र |
"Kamala Karuna Kataksha Stotram (कमला करुणा कटाक्ष स्तोत्रम्) संस्कृत और हिंदी अर्थ सहित पढ़ें। माँ लक्ष्मी की असीम कृपा और धन-समृद्धि पाने का यह अत्यंत शक्तिशाली पाठ है।"
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