वक्त का बदला
सौराष्ट्र के पोरबंदर और अमरेली के कई लोग अफ्रीका के कई देशों में जाकर वहां बहुत बड़े उद्योगपति बन गए. जैसे नानजीभाई मेहता ~ माधवानी ग्रुप के माधवानी और विसावाड़ा के केशवाला ग्रुप के केशवाला.
फिर इनकी फैक्ट्रियों में काम करने के लिए पोरबंदर के आसपास के कई छोटे-छोटे गांव के लोग मेहनत मजदूरी करने 19वीं सदी के शुरुआत में छोटे-छोटे जहाजों में बैठकर अफ्रीका गए ।
पोरबंदर का एक छोटे से गांव का एक दलित हिन्दू युवक मजदूरी करने के लिए एक स्ट्रीमर में बैठकर युगांडा गया
बाद में उसने अपनी पत्नी को भी बुला लिया. वक्त गुजरता गया. वह दलित हिन्दू दंपत्ति एक बच्चे का पिता बना. वह बच्चा युगांडा का नागरिक बना ।
वक्त गुजरा. वह दलित बच्चा बड़ा हुआ. उसने भी शादी किया और उसे दो बेटियां और एक बेटा हुए।
वक्त गुजरता गया. 1972 में युगांडा में क्रूर तानाशाह नरभक्षी #ईदी_अमीन ने तख्तापलट किया और उसने रातों-रात फतवा निकालकर मूल युगांडा के कालों के अलावा सभी देश के लोगों को भले ही वह युगांडा के नागरिक ही क्यों ना हो, उनका सारा धंधा मिलकत सामान जप्त कर लिया और उन्हें युगांडा के नागरिक होते हुए भी देश छोड़ने का आदेश दे दिया।
भारत पाकिस्तान बांग्लादेश के तमाम मूल निवासी, जो दो या तीन पीढ़ियों से युगांडा में रहते थे, उन सबको उसने युगांडा से बाहर जाने का फरमान दे दिया।
हालात ऐसे हो गए कि युगांडा के हब्शी सैनिक भारतीय बस्तियों, जिसमें सबसे ज्यादा गुजराती थे, उनकी बस्ती में जाते थे और वहां तमाम अत्याचार करते थे.
भारत सरकार ने उन गुजरातियों को #युगांडा से निकाला. बहुत से ऐसे लोगों को ब्रिटेन ने अपने देश में शरण दे दिया। पहले उन्हें ब्रिटिश कैंप में रखा गया ।
वह दलित दंपत्ति भी अपनी एक 14 साल की बच्ची और दो छोटे बच्चों को लेकर महीनों तक रिफ्यूजी कैंप में रहा.
उस दलित बच्ची का नाम था, #बसंती_मकवाना. और वह दलित दंपत्ति कई सौ किलोमीटर पैदल चलकर ब्रिटिश कैंप में गए थे. रास्ते में उनके एक बच्चे का दु:खद निधन भी हो गया ।
बाद में ब्रिटिश सरकार ने उस कैंप में रहने वाले तमाम शरणार्थियों को ब्रिटेन भेज दिया, जिसमें वह छोटी 14 साल की किशोरी बच्ची बसंती मकवाना भी अपने मां बाप और एक भाई के साथ ब्रिटेन आ गई । वक्त गुजरता गया.
समय बदला. कई सालों बाद ईदी अमीन का भी तख्तापलट हो गया और उसे भी देश छोड़कर भागना पड़ा. वो कई टन सोना और कई मिलियन डॉलर प्लेन में रखकर, सऊदी अरब भाग आया।फिर और कुछ दशक गुजरे.
ईदी अमीन को सऊदी अरब में किडनी की बहुत खतरनाक बीमारी हो गई. सऊदी अरब के जद्दा शहर के सबसे बड़े हॉस्पिटल में उसे वीआईपी मरीज कि तरह लाया गया, क्योंकि ईदी अमीन के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी. वह कई जहाजों में भरकर डॉलर लेकर सऊदी अरब आया था ।
दुनिया के सभी देशों में खोज की गई कि कौन सा डॉक्टर है, जो किडनी का बहुत अच्छा स्पेशलिस्ट है, यानी नेफ्रोलॉजिस्ट है ।
तब पता चला कि कनाडा में एक महिला डॉक्टर है, जो किडनी की बहुत बड़ी डॉक्टर है।
उस महिला डॉक्टर को तुरंत विशेष विमान से सऊदी अरब बुलाया गया. उस महिला डॉक्टर ने सऊदी अरब के विख्यात हॉस्पिटल में आकर ईदी अमीन का बहुत ही रिस्की हीमोडायलिसिस किया और ज्यादा अच्छे इलाज के लिए उसे एक एयर एंबुलेंस से कनाडा के हॉस्पिटल में शिफ्ट किया ।
ईदी अमीन ने कई बार उसे फीस लेने के लिए कहा, लेकिन उस महिला डॉक्टर ने हर बार फीस के लिए मना किया ।
फिर ईदी अमीन एकदम ठीक हो गया उसे वापस सऊदी अरब लाया गया । सऊदी अरब में वह चलने-फिरने लायक हो गया ।
फिर ईदी अमीन ने हाथ जोड़कर उस महिला डॉक्टर से निवेदन किया कि अब तो आप अपनी फीस ले लीजिए. आपकी वजह से आज मैं जिंदा हूं. मैं अपने पैरों पर खड़ा हो गया. और मेरे पास पैसे की कोई कमी नहीं है. आपको फीस लेनी ही पड़ेगी।
तब उस महिला डॉक्टर ने कहा कि फीस की बात तो जाने ही दीजिए. अब मैं आपको अपने बारे में बताती हूं-
उस महिला डॉक्टर ने कहा, मेरा नाम डॉक्टर #बसंती_मकवाना है. मैं एक भारतीय मूल की हूं. कभी आपके ही देश युगांडा की नागरिक थी ।
मैं गुजरात के महात्मा गांधी की धरती पोरबंदर से हूं। आपकी वजह से मेरा एक प्यारा छोटा भाई इलाज के बगैर मारा गया, क्योंकि हम कई सौ किलोमीटर पैदल जा रहे थे. आप के सैनिकों ने हमारे ऊपर बेहद अत्याचार किया. मेरे मां-बाप उन सैनिकों के सामने हाथ जोड़कर निवेदन करते थे. फिर भी हमने अत्याचार सहा।
अंत में हम महीनों तक शरणार्थी शिविर में रहे. दाने-दाने के मोहताज थे हम. घंटों लाइन लगाकर हमें एक पैकेट बिस्किट मिलता था.
किसी तरह से हम ब्रिटेन आ गए. मैंने सिर्फ 14 साल की उम्र में आपकी वजह से जिंदगी के सबसे कठोर अनुभव झेले.
मैंने पढ़ाई की. जीवित रहने के लिए कठोर मेहनत की। बाद में मैंने लंदन से एमबीबीएस किया. एमएस किया. और मैंने अमेरिका से किडनी में विशेषज्ञता हासिल की।
इतना ही नहीं, आपने जो मेरे माता पिता को जो आघात दिए, उनकी वजह से, कुछ ही सालों बाद उनका भी दुःखद निधन हो गया था।
आपके प्रतिनिधि जब कनाडा में मेरे हॉस्पिटल में आए कि आपको सऊदी अरब में एक वीवीआइपी मरीज का इलाज करना है और आपको मुंह मांगा पैसा दिया जाएगा, तो मैंने मना किया.
फिर मैंने उत्सुकता बस पूछा कि उस मरीज का नाम क्या है? तब उन्होंने बताया ईदी अमीन।
तब ही मैंने सोच लिया था कि मैं एक पैसा भी नहीं लूंगी। लेकिन मैं आपकी चिकित्सा अवश्य ही करूंगी।
यह सुनकर, ईदी अमीन फूट-फूट कर रोने लगा। डॉक्टर बसंती मकवाना के पैरों पर गिर कर, क्षमा याचना करने लगा. और डॉक्टर बसंती मकवाना बिना पैसे लिए ही कनाडा अपने हॉस्पिटल में चली गई.
बाद में कई बार उन्हें ईदी अमीन के इलाज के लिए कनाडा से सऊदी अरब बुलाया गया. लेकिन एक बार भी उन्होंने फीस नहीं ली.
और अंत में डॉक्टर बसंती मकवाना के सामने ही 16 अगस्त 2003 को रोते हुए, चिल्लाते हुए, पागलों की तरह सिर पटकते हुए, ईदी अमीन मर गया।
मरने से पहले उसने अपनी वसीयत में लिखा था कि उसकी जो भी दौलत हो, वह डॉक्टर बसंती मकवाना को दे दी जाए.
लेकिन खुद्दार डॉक्टर बसंती मकवाना ने उसकी दौलत को लात मार दी।
(अभी हाल ही में गुजरात के एक दिनेश भाई गढवी कनाडा गए थे. तब वह फुर्सत में डॉक्टर बसंती मकवाना से मिले और बसंती मकवाना ने यह सब बातें उन्हें बताई)
भारतीयों ने पुरातन काल में सम्पूर्ण विश्व में बिना युद्ध किए, बिना रक्त बहाए, सनातन धर्म कैसे प्रसारित किया होगा, उसकी एक झलक उपरोक्त प्रसंग में स्पष्ट ही देखने को मिलती है।
Bahut hi Sundar gyanvardhak kahani
जवाब देंहटाएंजय श्री राम🙏🙏🙏... बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख👌👌
जवाब देंहटाएंओम् नमो भगवते वासुदेवाय🙏🙏.. बहुत सुंदर😍💓
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