चोर कौन ?

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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  कुछ दिनों से महाराजा श्रेणिक के बगीचे से रोज ही आम चोरी हो जा रहे थे। राजा श्रेणिक ने वह वृक्ष महारानी चेलना के लिए विशेषत: लगवाए थे जिनमे साल में हर समय आम पैदा होते थे। कड़ी नगर व्यवस्था व बगीचे की पहरेदारी होते हुए अपने आप में यह आश्चर्यजनक था। जब कुछ दिनों बाद भी चोरी नहीं रुकी तो राजा ने यह घटना अपने मंत्री व पुत्र अभयकुमार को बताई और यथाशीघ्र चोर का पता लगाने का आदेश दिया।

  अभयकुमार रात्रि को भेष बदलकर निकला – सोचा उद्यान के पास वाली बस्ती में जाकर देखता हूँ शायद कुछ सुराग मिल जाए चोर का। वहाँ एक चोराहे पर कुछ लोग इकठ्ठे होकर आपस में व्यंग्य व कथा कहानी सुनाकर एक दुसरे का मनोरंजन कर रहे थे। अभयकुमार भी उन के बीच में जाकर बैठ गया। 

  सभी व्यक्ति अपनी बात कह चुके तब अपनी कुछ कहने की बारी आने पर अभयकुमार ने कहा -

" बसंतपुर नगर में एक कन्या रोज राजा के बगीचे से पूजा के लिए फूल तोड़़ कर ले जाती थी वह एक दिन माली द्वारा पकड़़ ली गयी। माली के धमकाने पर वह गिड़गिड़ाई व बोली– "मुझे जाने दो आगे से फूल नहीं तोडूंगी।"

"माली उसके रूप को देखकर मोहित हो गया ! बोला – "अगर तु मेरी इच्छा पूरी कर दे तो मै तुझे छोड़़ दूँगा।"

  "युवती सकपकाई व फिर साहस रखते हुए बोली – "अभी मै कुंवारी हूँ, कामदेव की पूजा करने जा रही हूँ! तुम्हारे स्पर्श से अशुद्ध हो जाउंगी ! अभी मुझे जाने दो, वादा करती हूँ कि विवाह होते ही प्रथम रात्रि को तुमसे मिलने आउंगी।

"अशुद्ध होने की बात माली के दिमाग में जम सी गयी। उसने कहा – "अपना वचन याद रखना।"

  हाँ हाँ –मै अपना वचन अवश्य याद रखूंगी।"युवती ने तुरंत से बगैर सोचे समझे जबाब दिया।

  कुछ समय बाद युवती का विवाह विमल नाम के एक युवक से हो गया। विवाह की प्रथम रात्रि को युवती ने पति से कहा "–प्राणनाथ ! मेरे सामने एक धर्म संकट उपस्थित हो गया है, आप ही बताएं मै क्या करूं ?"

 यह कहकर सारी घटना माली के साथ हुई थी वह पति को बता दी।युवक यह सुनकर एकाएक सन्न रह गया ! फिर कुछ सोचते हुए कहा - तुम ने सत्य कहकर मेरा मन जीत लिया है ! जाओ तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता सिर्फ अपने सत्य पर अटल रहना और सारी बात मुझे आकर सत्य बताना।

  युवती घर से निकली–सोलह श्रृंगार में सजी धजी माली के द्वार की ओर चल दी। कुछ दूर चलने पर उसे दो चोर दिखाई पड़े –उन्होंने उसे कहा – "जल्दी से अपने सारे आभूषण हमें उतार कर दे दो, हम पराई बहन बेटी को हाथ नहीं लगाते"। 

  मृत्यु के भय से उसने कहा – मुझे अपने वचन का पालन करने इसी रूप में जाना है ! मै वापस आकर आपको आभूषण दे दूंगी, मेरी बात का विश्वास कीजिये।"

  चोरों ने एक नजर एक दुसरे को देखा, फिर कुछ सोचकर उसे जाने की अनुमति दे दी।

  कुछ दूर जाने पर रास्ते में उसे एक दैत्य मिला – "हे कोमलांगी मै कई दिन से भूखा हूँ ! आज तुम्हे खाकर अपनी भूख मिटाऊंगा।"

युवती ने निर्भीकता से कहा "–दैत्यराज ! मेरा ये शरीर आपके किसी काम जाये, मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी लेकिन अभी मै किसी के वचन में बंधीं हूँ। आप मुझे जाने दीजिए। बस यहीं कुछ देर का ही इन्तजार कीजिये, वापसी में आप मुझे खा लेना।"

  दैत्य ने भी सुन्दरी की बात का विश्वास करके उसे जाने दिया। सुन्दरी माली के घर पहुंची –प्रणाम किया व अपने दिये हुए वचन की याद दिलाई ! माली आश्चर्यचकित था ! उसने हाथ जोड़कर उसे नमस्कार किया और कहा – "बहन ! आप तो देवी हैं , पूजा करने के योग्य हैं। मुझे क्षमा कीजिये। मेरा अपराध अक्षम्य है पर मुझे विश्वास है कि आप जैसी देवी जरूर मुझे क्षमा करके मुझे प्रायश्चित का मौका जरूर देंगी। ऐसे कहकर यथायोग्य उपहार देकर उसे बिदा कर दिया।

सुन्दरी निर्भीकता से चलते हुए दैत्य के पास पहुंची और कहा –

"हे दैत्यराज ! आप मुझे खा कर अपनी भूख मिटाएं। दैत्य ने क्षण भर को सोचा और कहा जाओ मै तुम्हारे सत्य और वचनबद्धता पर कायम रहने से खुश हुआ। मै तुम्हारा भक्षण करके घोर पाप का भागी नहीं बन सकता।

 अगली बारी चोरों की थी ! युवती की सारी कहानी सुनकर चोरों का मन बदल गया ! उन्होंने कहा "–जाओ! निर्भीक होकर अपने निवास स्थान पर जाओ। तुम जैसी सत्य पालन करने वाली स्त्री तो हमारी बहन के समान है।

  घर जाकर सुंदरी ने सारी घटना पति को यथास्थिति बता दी ! उसने खुश होकर कहा- प्रिये! मुझे तुम्हारी सत्यवादिता पर विश्वास था। इसीलिए तुम्हे जाने दिया और तुम्हारी विजय हुई ।

कहानी सुनाकर अभयकुमार एक क्षण को चुप हो गया –फिर बोला "सज्जनो ! आप सब ज्ञानी हैं , बुद्धिमान हैं, आप लोगों ने कहानी बड़े ध्यान से सुनी। कृपया आप मुझ बताएं कि इन सब में श्रेष्ठ कौन ? सुंदरी, उसका पति, चोर, दैत्य अथवा वह माली ?" ऐसा कहकर अभयकुमार चुप हो गया।

स्त्रियाँ तुरंत से बोल पड़ी – सुंदरी का साहस ही सबसे बड़ा है, वही सर्वश्रेष्ठ है।

वृद्ध बोले – "नहीं ! दैत्य कई दिन का भूखा था! उसने अपने हाथ में आये हुए प्राणी को जाने दिया,वह तो मनुष्य भी नहीं, इसीलिए वही सर्वश्रेष्ठ है।"

 युवकों ने कहा – "नहीं ! कदापि नहीं, कोई भी व्यक्ति अपनी नवविवाहिता पत्नी को पर पुरुष के पास जाने की अनुमति नहीं दे सकता। इसीलिए उस युवक का ही त्याग सर्वश्रेष्ठ है।"

 तभी एक व्यक्ति भीड़ में से खड़ा हुआ और बोला- क्या उन चोरों का त्याग श्रेष्ठ नहीं है जिन्होंने हाथ में आये हुए कीमती आभूषणों को ऐसे ही छोड़ दिया ? मेरी नजर में तो वही सर्वश्रेष्ठ है।

अभयकुमार तुरंत उस की बात सुनकर चौंक गया। समझ गया कि यहीं कुछ दाल में काला है और उससे पूछताछ की तो उसने आमों की चोरी की बात कबूल कर ली।

अभयकुमार ने कहा – "सच सच बताओ! तुमने ही बगीचे से आम चुराए हैं ?"

  सभी चकित थे कि यह व्यक्ति जो पूछताछ कर रहा है कौन है ? अभयकुमार ने उसे गिरफ्तार कर लिया और अगले दिन राजदरबार में पेश किया।

वह व्यक्ति बोला – "महामंत्री जी ! मै व्यवसाय से चोर नहीं हूँ। सच मानिए! मेरा नाम मातंग है! मैंने वह आम अपनी गर्भवती पत्नी की इच्छा पूर्ण करने के लिए ही चुराए थे। क्योंकि आम इस ऋतू में कहीं और उपलब्ध नहीं थे। मुझे क्षमा कर दीजिए" । 

राजा ने हुक्म दिया– "इसका अपराध अक्षम्य है! इसे मृत्यु दण्ड दिया जाए।"

अभयकुमार ने सोचा – इसका अपराध तो अपराध है पर शायद मृत्यु दण्ड का अधिकारी तो यह नहीं ! कुछ पल सोचा और मातंग से पूछा – "एक बात बाताओ –उद्यान के चारों ओर ऊँची दीवार होने और दरवाजे पर इतना कडा पहरा होने के बावजूद तुमने ये आम चुराए कैसे ?"

"हुजूर! मैने आकर्षणी विद्या सीखी है! उसी विद्या का प्रयोग करके मैंने फलों की डाल को अपनी ओर आकर्षित कर लिया और उस पर से आम तोड़ लिए।" मातंग ने सिर झुकाकर जबाब दिया।

अभयकुमार ने राजा को मुखातिब होते हुए कहा – "राजन् ! मेरी सलाह है कि आप मातंग से यह दुर्लभ विद्या सीख लें। उसके बाद ही इसे दण्ड दिया जाए।"

 श्रेणिक को अभयकुमार की बात पसन्द आई। उन्होंने मातंग से आकर्षणी विद्या सीखना प्रारंभ कर दिया।  मातंग एक आसन पर बैठ गया और राजा को मन्त्र पाठ सिखाने लगा। परन्तु राजा मन्त्र जाप बार - बार भूल जाते। उन्होंने मातंग से गुस्से में कहा – "तुम मुझे ठीक से विद्या नहीं सिखा रहे हो।"

अभय कुमार ने कहा – मगधेश ! गुरु का स्थान शिष्य से हमेशा ऊँचा होता है ! शिष्य गुरु की विनय करके ही विद्या सीख सकता है! 

  श्रेणिक अभय का इशारा समझ गये! उन्होंने मातंग को सिंहासन पर बिठाया और स्वयं उसके सामने नीचे खड़े हो गये। अबकी बार जब मन्त्र जाप किया तो कुछ समय के उपरान्त उन्हें मन्त्र याद हो गया। 

  विद्या सीखने से श्रेणिक प्रसन्न हो गये और उन्होंने कहा – "तुमने हमें विद्या सिखाई है और इसीलिए अब आपका दर्जा गुरु का है, गुरु को इतने सामन्य से अपराध के लिए दण्ड नहीं दिया जा सकता।"

उन्होंने मातंग को यथोचित सम्मान व धन दे कर विदा कर दिया।

  विनय बिना विद्या नहीं मिलती विद्या के अभाव में आपको ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती! जब तक आपको यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति न हो जाए, सच्चा सुख यानी मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती! यदि महान बनना है तो विनयी बनें। झुकना सीखें। आप कितने गुणवान हैं, यह आपका झुका हुआ मस्तक बताएगा। वृक्ष जितना फलदार होता है, वह उतना ही झुकता है! उसे अपना परिचय देने की जरूरत नहीं पड़ती! हंस जैसी दृष्टि बनाइए, ताकि गुण को ग्रहण कर सकें और जो बेकार है,उसे छोड़ सकें !

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