१. कैलाश मानसरोवर
बस यही एक मानसरोवर है, जो अपनी पवित्र अवस्था में आज भी मौजूद है, क्योंकि यह चीन के अधीन है। कैलाश मानसरोवर को सरोवरों में प्रथम पायदान पर रखा जाता है। इसे देवताओं की झील कहा जाता है। यह हिमालय के केंद्र में है। इसे शिव का धाम माना जाता है। मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर भगवान शिव साक्षात विराजमान हैं। यह हिन्दुओं के लिए प्रमुख तीर्थस्थल है। संस्कृत शब्द 'मानसरोवर', मानस तथा सरोवर को मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है, 'मन का सरोवर'। हजारों रहस्यों से भरे इस सरोवर के बारे में जितना कहा जाए, कम होगा।
संस्कृत शब्द 'मानसरोवर', मानस तथा सरोवर को मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है, 'मन का सरोवर'।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह सरोवर ब्रह्माजी मन से उत्पन्न हुआ था। इस सरोवर के पास ही कैलाश पर्वत है जो भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। जिसके कारण इस सरोवर का महत्व और भी कई गुना बढ़ जाता है।
इस सरोवर के बारे में कहा जाता है कि यहीं पर माता पार्वती स्नान करती हैं। यहां देवी सती के शरीर का दायां हाथ गिरा था इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। यहां शक्तिपीठ है। इस जगह को हिंदू धर्म के साथ साथ बौद्ध धर्म में भी बहुत पवित्र माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि रानी माया को भगवान बुद्ध की पहचान यहीं हुई थी। जैन धर्म तथा तिब्बत के स्थानीय बोनपा लोग भी इसे पवित्र मानते हैं।
मानसरोवर लगभग 320 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसके उत्तर में कैलाश पर्वत तथा पश्चिम में राक्षसताल है। इसके दक्षिण में गुरला पर्वतमाला और गुरला शिखर है। यह समुद्र तल से लगभग 4,556 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मानसरोवर टेथिस सागर का अवशेष है। जो कभी एक महासागर हुआ करता था, वह आज 14,900 फुट ऊंचे स्थान पर स्थित है। इन हजारों सालों के दौरान ध गया है,
२. नारायण सरोवर
गुजरात के कच्छ जिले के लखपत तहसील में स्थित यह सरोवर भगवान का विष्णु का सरोवर माना जाता है। मान्यता है कि इस सरोवर में स्वयं भगवान विष्णु ने स्नान किया था। कई पुराणों और ग्रंथों में इस सरोवर के महत्व का वर्णन पाया जाता है। यहां सिंधु नदी का सागर से संगम होता है।
पवित्र नारायण सरोवर के तट पर भगवान आदिनारायण का प्राचीन और भव्य मंदिर है। नारायण सरोवर से 4 किमी दूर कोटेश्वर शिव मंदिर है। नारायण सरोवर में कार्तिक पूर्णिमा से 3 दिन का भव्य मेला आयोजित होता है। इसमें उत्तर भारत के सभी संप्रदायों के साधु-संन्यासी और अन्य भक्त शामिल होते हैं। नारायण सरोवर में श्रद्धालु अपने पितरों का श्राद्ध भी करते हैं।
नारायण सरोवर से 4 किमी दूर कोटेश्वर शिव मंदिर है। इस पवित्र नारायण सरोवर की चर्चा श्रीमद् भागवत में मिलती है। इस पवित्र सरोवर में प्राचीनकालीन अनेक ऋषियों के आने के प्रसंग मिलते हैं। आद्य शंकराचार्य भी यहां आए थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी इस सरोवर की चर्चा अपनी पुस्तक 'सीयूकी' में की है। नारायण सरोवर में कार्तिक पूर्णिमा से 3 दिन का भव्य मेला आयोजित होता है। इसमें उत्तर भारत के सभी संप्रदायों के साधुसंन्यासी और अन्य भक्त शामिल होते हैं। नारायण सरोवर में श्रद्धालु अपने पितरों का श्राद्ध भी करते हैं।
३. पुष्कर सरोवर
राजस्थान में अजमेर शहर से 14 किलोमीटर दूर पुष्कर झील है। इस झील का संबंध भगवान ब्रह्मा से है। यहां ब्रह्माजी का एकमात्र मंदिर बना है। पुराणों में इसके बारे में विस्तार से उल्लेख मिलता है। यह कई प्राचीन ऋषियों की तपोभूमि भी रहा है। यहां विश्व का प्रसिद्ध पुष्कर मेला लगता है, जहां देश विदेश से लोग आते हैं। पुष्कर की गणना पंच तीर्थों में भी की गई है।
पुष्कर के उद्भव का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने यहां आकर यज्ञ किया था। पुष्कर का उल्लेख रामायण में भी हुआ है। विश्वामित्र यहां तप करने की बात कही गई है। अप्सरा व मेनका यहां के पावन जल में स्नान के लिए आई थीं। इस सरोवर को लेकर एक यह मान्यता भी प्रचलित है कि भगवान राम ने अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध भी यहीं पर किए थे। महाभारत के वन पर्व के अनुसार योगीराज श्री कृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की थी। सुभद्रा के अपहरण के बाद अर्जुन ने पुष्कर में विश्राम किया था।
झील की उत्पत्ति के बारे में किंवदंती है कि ब्रह्माजी के हाथ से यहीं पर कमल पुष्प गिरने से जल प्रस्फुटित हुआ जिससे इस झील का उद्भव हुआ। यह मान्यता भी है कि इस झील में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है। झील के चारों ओर 52 घाट व अनेक मंदिर बने हैं। इनमें गऊघाट, वराहघाट, ब्रह्मघाट, जयपुर घाट प्रमुख हैं।
पुष्कर सरोवर 3 हैं; ज्येष्ठ (प्रधान) पुष्कर, मध्य (बूढा) पुष्कर और कनिष्ठ पुष्कर। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्ठ पुष्कर के देवता रुद्र हैं। ब्रह्माजी ने पुष्कर एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ किया था जिसकी स्मृति में अनादिकाल से यहां कार्तिक शुक्ल में कार्तिक मेला लगता आ रहा है।
तीर्थराज पुष्कर को सब तीर्थों का गुरु कहा जाता है। इसे धर्मशास्त्रों में 5 तीर्थों में सर्वाधिक पवित्र माना गया है। पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार और प्रयाग को पंचतीर्थ कहा गया है।
४. पम्पा सरोवर
मैसूर के पास स्थित पंपा सरोवर एक ऐतिहासिक स्थल है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाई ओर पश्चिम दिशा में पंपा सरोवर स्थित है।
पंपा सरोवर के निकट पश्चिम में पर्वत के ऊपर कई जीर्ण शीर्ण मंदिर दिखाई पड़ते हैं। यहीं पर एक पर्वत है, जहां एक गुफा है जिससे शबरी की गुफा कहा जाता है। कहते हैं इसी गुफा में शबरी ने भगवान राम को बेर खिलाएं थें। माना जाता है कि वास्तव में रामायण में वर्णित विशाल पंपा सरोवर यही है। मैसूर के पास स्थित पंपा सरोवर एक ऐतिहासिक स्थल है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में पंपा सरोवर स्थित है।
पंपा सरोवर के निकट पश्चिम में पर्वत के ऊपर कई जीर्णशीर्ण मंदिर दिखाई पड़ते हैं। यहीं पर एक पर्वत है, जहां एक गुफा है जिससे शबरी की गुफा कहा जाता है। माना जाता है कि वास्तव में रामायण में वर्णित विशाल पंपा सरोवर यही है, जो आजकल हास्पेट नामक कस्बे में स्थित है।
५. बिन्दु सरोवर
अहमदाबाद (गुजरात) से 130 किलोमीटर उत्तर में अवस्थित ऐतिहासिक सिद्धपुर में स्थित है विन्दु सरोवर।
इस स्थल का वर्णन ऋग्वेद की ऋचाओं में मिलता है जिसमें इसे सरस्वती और गंगा के मध्य अवस्थित बताया गया है। संभवतः सरस्वती और गंगा की अन्य छोटी धाराएं पश्चिम की ओर निकल गई होंगी। इस सरोवर का उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है। इसी सरोवर के किनारे बैठ कर कर्दम ऋषि ने कई हजार वर्षों तक तपस्या की था। इस बात का वर्णन कई ग्रथों और पुराणों में भी पाया जाता है। साथ ही इस जगह को लेकर कहा जाता है कि यहीं पर भगवान परशुराम ने अपनी मां का श्राद्ध किया था। इस कारण इसे मातृ मोक्ष स्थल भी कहा जाता है।
बिंदु सरोवर 5 पवित्र सरोवरों में से एक है, जो कपिलजी के पिता कर्मद ऋषि का आश्रम था और इस स्थान पर कर्मद ऋषि ने 10,000 वर्ष तक तप किया था। कपिलजी का आश्रम सरस्वती नदी के तट पर बिंदु सरोवर पर था, जो द्वापर का तीर्थ तो था ही आज भी तीर्थ है। कपिल मुनि सांख्य दर्शन के प्रणेता और भगवान विष्णु के अवतार है।
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