संस्कृत श्लोक: "दाक्षिण्यं स्वजने दया परिजने शाठ्यं सदा दुर्जने" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "दाक्षिण्यं स्वजने दया परिजने शाठ्यं सदा दुर्जने" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "दाक्षिण्यं स्वजने दया परिजने शाठ्यं सदा दुर्जने" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद


संस्कृत श्लोक: "दाक्षिण्यं स्वजने दया परिजने शाठ्यं सदा दुर्जने" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

🙏 जय श्री राम 🌹 सुप्रभातम् 🙏
आज के नीति-श्लोक के साथ प्रस्तुत है उसका हिन्दी अनुवाद, शाब्दिक विश्लेषण, व्याकरण, भावार्थ, और आधुनिक सन्दर्भ में विस्तृत विवेचना


श्लोकः

🔸
दाक्षिण्यं स्वजने दया परिजने शाठ्यं सदा दुर्जने
प्रीतिः साधुजने नयो नृपजने विद्वज्जने चार्जवम्।
शौर्यं शत्रुजने क्षमा गुरुजने कान्ताजने धृष्टता
ये चैवं पुरुषाः कलासु कुशलास्तेष्वेव लोकस्थितिः॥


शाब्दिक अर्थ:

  • दाक्षिण्यम् – विनम्रता, सभ्यता
  • स्वजने – अपने लोगों के प्रति
  • दया – करुणा
  • परिजने – सेवक/नौकर/आश्रित के प्रति
  • शाठ्यम् – चतुराई, कठोरता, रणनीतिक छल
  • सदा दुर्जने – सदा दुर्जनों के प्रति
  • प्रीतिः – प्रेम, आत्मीयता
  • साधुजने – सज्जन लोगों के प्रति
  • नयः – नीति, चातुर्य
  • नृपजने – राजा या सत्ताधारी के प्रति
  • विद्वज्जने – विद्वानों के प्रति
  • आर्जवम् – सरलता, निष्कपट व्यवहार
  • शौर्यम् – पराक्रम, वीरता
  • शत्रुजने – शत्रुओं के प्रति
  • क्षमा – क्षमाशीलता
  • गुरुजने – गुरुजनों के प्रति
  • धृष्टता – साहस/ताकत के साथ संवाद
  • कान्ताजने – स्त्री या प्रेमिका के प्रति
  • ये च एवम् पुरुषाः – जो ऐसे पुरुष (व्यक्ति) हैं
  • कलासु कुशलाः – इन कलाओं में निपुण
  • तेषु एव लोकस्थितिः – उन्हीं पर ही यह लोक टिका हुआ है

व्याकरणिक विश्लेषण:

  • यह श्लोक एक समासात्मक वाक्य रचना है, जहाँ प्रत्येक पंक्ति में द्वंद्व समास, षष्ठी तत्पुरुष समास एवं तृतीया तत्पुरुष का प्रयोग हुआ है।
  • दाक्षिण्यं स्वजने, दया परिजने आदि में कर्तृवाचक संज्ञाओं के साथ भाववाचक शब्दों का यथास्थान प्रयोग किया गया है।
  • "ये चैवं पुरुषाः..." से आरम्भ होकर श्लोक का निष्कर्ष स्पष्ट किया गया है।

भावार्थ (भावनात्मक अनुवाद):

जो व्यक्ति
🔹 अपने निकट स्वजनों के साथ विनम्रता रखते हैं,
🔹 परिजनों और सेवकों के प्रति करुणाशील हैं,
🔹 दुर्जनों के साथ चतुराईपूर्ण और कठोर व्यवहार करते हैं,
🔹 सज्जनों के प्रति स्नेह और श्रद्धा रखते हैं,
🔹 शासकों के साथ व्यवहारिक नीति अपनाते हैं,
🔹 विद्वानों के साथ निष्कपट और सच्चे रहते हैं,
🔹 शत्रुओं के सामने साहसी बनते हैं,
🔹 गुरुओं के सामने नम्र होते हैं,
🔹 स्त्रियों या जीवन-साथी के प्रति सौम्य किन्तु स्पष्ट होते हैं —
ऐसे बहुआयामी गुणों में दक्ष पुरुष ही वास्तव में इस संसार के आधार स्तम्भ होते हैं।


आधुनिक सन्दर्भ में विवेचना:

यह श्लोक एक प्रबंधकीय, सामाजिक और नैतिक शिक्षा देता है जो आज की दुनिया में भी उतनी ही उपयोगी है जितनी प्राचीन काल में थी। इसमें एक व्यक्ति के सामाजिक बुद्धिमत्ता (social intelligence) का चित्र खींचा गया है:

व्यक्ति वर्ग अपेक्षित गुण आज का संदर्भ
स्वजन विनम्रता परिवार में विनय और मर्यादा
परिजन (सेवक) करुणा कर्मचारियों के साथ सहानुभूति
दुर्जन चतुराई नकारात्मक लोगों से दूर रहना, स्मार्ट रहना
सज्जन प्रेम अच्छाई को प्रोत्साहन
नृप (नेता) नीति सरकारी या सत्ताधारियों से समझदारीपूर्ण व्यवहार
विद्वान सरलता विशेषज्ञों से ईमानदारी और खुले मन से संवाद
शत्रु साहस दमन नहीं, लेकिन निर्भीकता
गुरु क्षमा आध्यात्मिक या बौद्धिक मार्गदर्शकों के प्रति नम्रता
स्त्री धृष्टता (यहाँ अर्थ ‘निडर खुलापन’, अशिष्टता नहीं) प्रेम में स्पष्टता, गरिमा के साथ साहस

उपसंहार:

यह श्लोक केवल नीति नहीं सिखाता, यह बताता है कि मनुष्य के जीवन में विभिन्न प्रकार के लोगों से कैसा व्यवहार करना चाहिए।
यह सामाजिक व्यवहार की परिपक्वता का मार्गदर्शन करता है — जो आज के नेता, शिक्षक, पारिवारिक पुरुष या स्त्री सभी के लिए अत्यंत उपयोगी है।

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