राघव चरन रहे उर धारी

Sooraj Krishna Shastri
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राघव चरण रहे उर धारी।

सुभग चरन मन मोर बसैं नित ध्यावैं जेहि त्रिपुरारी।।

व्याकुल चित्त नित्य प्रति हेरैं नैन रहें नित प्यासे।

राम चरन कमलन हित भटकैं इत उत सदा उदासे।।

रघुवर त्रिभुवन की गति जानैं समझैं जग मन बानी।

दृष्टि कृपानिधि परैं तरैं तब अधम अकिंचन प्रानी।।

लालच ईर्ष्या लोभ मोह यदि काहू के उर आवै।

राम चरन हित लोभ धरै मन प्रभु पद लालच भावै।।

रघुवर चरन पावने हित जदि ईर्ष्या मन में जागे।

जग के सगरे प्रीत छोड़ि मन राम मोह में लागे।।

ऐसो चतुर्दोष मोहि देवैं जाचक मैं बलिहारी।

निसिदिन चरन तुम्हारे ध्यावहुं वर मोहे देहु खरारी।।

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