धर्म क्या है ?

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
0

  'धर्म मृत्यु की विधि से जीवन को पाने का द्वार है ।'-----संत हरिदास ने यह बात अपने शिष्य तानसेन से कहीं । पूर्णिमा की रात्रि थी, सब और चांदनी बरस रही थी । बाबा हरिदास नाव पर थे, नाव यमुना के जल में थी। नाव में उनके साथ तानसेन के अलावा कुछ अन्य शिष्य भी थे । हरिदास ने पूछा---"यमुना तेजी से भागी जा रही है, लेकिन कहाँ ? " तानसेन ने कहा---"बाबा ! सभी नदियां, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सागर की ओर ही तो जाती हैं ।" बाबा हरिदास ने फिर पूछा---" क्या नदी का सागर की ओर जाना, अपने मृत्यु की ओर जाना नहीं है ?" उनकी इस बात पर सभी सोच में पड़ गए । हरिदास बोले---"नदी सागर में मिटेगी ही तो, शायद इसीलिए सरोवर सागर की ओर नहीं जाते । अपनी ही मृत्यु की ओर, कौन समझदार जाना पसंद करेगा ? इसलिए चतुर , बुद्धिमान और अहंकारी लोग धर्म की ओर नहीं जाते । नदी के लिए जो सागर है, मनुष्य के लिए वही धर्म है । धर्म है स्वयं को, सर्व में, सामग्रीभूत रूप से खो देना। यह अहंकार के लिए महामृत्यु है । इसलिये जो स्वयं को बचाना चाहते हैं , वह अहंकार का सरोवर बनकर परमात्मा के सागर में मिलने से रुके रहते हैं । सागर में मिलने की अनिवार्य शर्त तो अपने आप को मिटाना है। लेकिन यह मिटाना, यह मृत्यु--- दरअसल सत्य जीवन है । इस सत्य जीवन को पाने के लिए असत्य जीवन को मारना ही पड़ता है । अहंकार की मृत्यु , आत्मा का जीवन है । सागर नदी की मृत्यु नहीं, उसका जीवन है ।"

    बाबा हरिदास आगे बोले - " अब मैं तुमको अपनी आध्यात्मिक अनुभूति सुनाता हूं । सुबह मैंने ध्यान से देखा, राधारानी श्रीकृष्ण से कह रही है -'कन्हैया ! यह बांसुरी सदा ही तुम्हारे होठों से लगी रहती है, तुम्हारे होठों का स्पर्श इस बाँस की पोगरी को इतना अधिक मिलता है कि मुझे जलन होने लगती है ।' राधारानी की बात सुनकर श्रीकृष्ण खूब जोर से हंसे और बोले राधिके ! बांसुरी होना सबसे कठिन है, शायद उससे कठिन और कुछ भी नहीं । जो स्वयं को बिल्कुल मिटा दे, वही बांसुरी हो सकता है । यह बांसुरी बांस की पोगली नहीं, बल्कि प्रेमी का हृदय है । इसका स्वयं का को स्वर नहीं है -- मैं गाता हूं तो वह गाती है, मैं मौन हूं तो वह मौन है, मेरा जीवन ही उसका जीवन है ।' अपनी इस अनुभूति को सुनाते हुए बाबा बोले---राधा और कान्हा की बातों ने मुझे समझा दिया कि अस्मिता का अंत ही आत्मा की प्राप्ति है । मृत्यु से जीवन पाना ही धर्म की परिभाषा है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top