मृत्यु के साथ रिश्ते मिट जाते हैं !

Sooraj Krishna Shastri
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Relationships end with death
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 एक बार देवर्षि नारद अपने शिष्य तुम्बरू के साथ मृत्युलोक का भ्रमण कर रहे थे। गर्मियों के दिन थे। गर्मी की वजह से वह पीपल के पेड़ की छाया में जा बैठे। इतने में एक कसाई वहाँ से २५/३० बकरों को लेकर गुजरा।

 उसमें से एक बकरा एक दुकान पर चढ़कर मोठ खाने लपक पड़ा। उस दुकान पर नाम लिखा था - 'शगालचंद सेठ।' दुकानदार का बकरे पर ध्यान जाते ही उसने बकरे के कान पकड़कर दो-चार घूँसे मार दिये। बकरा 'मैंऽऽऽ.... मैैंऽऽऽ...' करने लगा और उसके मुँह में से सारे मोठ गिर गये।

फिर कसाई को बकरा पकड़ाते हुए कहाः "जब इस बकरे को तू हलाल करेगा तो इसकी मुंडी मेरे को देना क्योंकि यह मेरे मोठ खा गया है।" देवर्षि नारद ने जरा-सा ध्यान लगाकर देखा और ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे।

तब तुम्बरू पूछाः "गुरुदेव! आप क्यों हँस रहे हैं? उस बकरे को जब घूँसे पड़ रहे थे तब तो आप दुःखी हो गये थे, किंतु ध्यान करने के बाद आप हँस पड़े। इस हँसी का क्या रहस्य है?"

नारद जी ने कहाः

"छोड़ो भी.... यह तो सब अपने अपने कर्मों का फल है, छोड़ो।"

"नहीं गुरुदेव! कृपा करके बताऐं।"

अच्छा सुनो: "इस दुकान पर जो नाम लिखा है 'शगालचंद सेठ' - वह शगालचंद सेठ स्वयं यह बकरे की योनि में जन्म लेकर आया है; और यह दुकानदार शगालचंद सेठ का ही पुत्र है। सेठ मरकर बकरा बना और इस दुकान से अपना पुराना सम्बन्ध समझकर इस पर मोठ खाने गया।

उसके पूर्व जन्म के बेटे ने उसको मारकर भगा दिया। मैंने देखा कि ३० बकरों में से कोई दुकान पर नहीं गया फिर यह क्यों गया कमबख्त? इसलिए ध्यान करके देखा तो पता चला कि इसका पुराना सम्बंध था।

जिस बेटे के लिए शगालचंद सेठ ने इतनी महेनत की थी, इतना कमाया था, वही बेटा मोठ के चार दाने भी नहीं खाने देता और खा भी लिये हैं तो कसाई से मुंडी माँग रहा है _"अपने ही बाप की"_!

नारदजी कहते हैं; इसलिए कर्म की गति और मनुष्य के मोह पर मुझे हँसी आ रही है। अपने-अपने कर्मों के फल तो प्रत्येक प्राणी को भोगने ही पड़ते हैं और इस जन्म के रिश्ते-नाते मृत्यु के साथ ही मिट जाते हैं, कोई काम नहीं आता, काम आता है तो वह है सिर्फ भगवान का नाम।

अपने पापों ओर पुण्यों का हिसाब इंसान को खुद ही भोगना है...

इसलिए,, भक्तों...मरने के बाद इस संसार से कोई नाता नहीं रहता केवल अपने कर्म फल ही सुरक्षित रहते हैं।

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