Sher Lomdi Aur Gadha Ki Kahani – Hindu Secularism Par Kadwa Sach
कहानी
एक बार की बात है, जंगल का शेर भूखा था। उसने लोमड़ी से कहा –
"मेरे लिए कोई शिकार लाओ, वरना मैं तुम्हें खा जाऊँगा।"
लोमड़ी शिकार की तलाश में निकली और रास्ते में उसे एक गधा मिला। लोमड़ी ने गधे से कहा –
"मेरे साथ शेर के पास चलो। वह तुम्हें जंगल का राजा बनाना चाहता है।"
![]() |
Sher Lomdi Aur Gadha Ki Kahani – Hindu Secularism Par Kadwa Sach |
गधा खुशी-खुशी लोमड़ी के साथ चल पड़ा।
पहला धोखा
गधे ने लोमड़ी से कहा –
"तुमने मुझे धोखा दिया। शेर ने मुझे मारने का प्रयास किया और तुम कह रही थी कि वह मुझे राजा बनाएगा।"
लोमड़ी ने चालाकी से कहा –
"अरे मूर्ख! शेर ने तुम्हारे कान इसलिए काटे ताकि तुम्हारे सिर पर ताज आसानी से बैठ सके। चलो, वापस चलते हैं।"
गधे को यह बात ठीक लगी और वह फिर लोमड़ी के साथ चल पड़ा।
दूसरा धोखा
"अब तो साफ हो गया कि तुमने झूठ कहा।"
लोमड़ी ने फिर छल किया –
"अरे मूर्ख! शेर ने तुम्हारी पूँछ इसलिए काटी ताकि तुम सिंहासन पर आसानी से बैठ सको।"
गधा फिर से लोमड़ी के साथ चल पड़ा।
अंतिम परिणाम
इस बार शेर ने गधे को पकड़कर मार डाला और लोमड़ी से कहा –
"इसकी खाल उतार कर दिमाग, फेफड़ा और हृदय मेरे पास लाओ, बाकी तुम खा लो।"
लोमड़ी ने दिमाग खुद खा लिया और बाकी अंग शेर को दे दिए।
शेर ने पूछा –
"दिमाग कहाँ है?"
लोमड़ी ने उत्तर दिया –
"महाराज! इसके पास दिमाग होता तो क्या कान और पूँछ कटने के बाद भी यह आपके पास लौट आता?"
शेर ने कहा –
"तुम बिल्कुल सही कहती हो।"
कहानी का संदेश (समकालीन संदर्भ)
यह कहानी केवल एक पशु-कथा नहीं, बल्कि आज के समय के मूर्खता और आत्मघात की मानसिकता का प्रतीक है।
- यह हर उस हिंदू गधे की कहानी है जो 1947 में भारत के विभाजन (पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिम पाकिस्तान के निर्माण) के बाद भी अंध-धर्मनिरपेक्षता में विश्वास करता है।
- यह उन हिंदुओं की कहानी है जो ऐसे संगठनों या नेताओं का समर्थन करते हैं जिन्होंने भारत के विभाजन का विरोध तक नहीं किया, और आज भी गांधी को राष्ट्रपिता मानते हैं।
- यह उन हिंदुओं की कहानी है जो भारत की बदलती जनसंख्या संरचना (Demography) को खुली आंखों से देखते हैं, पर फिर भी अपने वोट और समर्थन उन्हीं को देते हैं जो सनातन और भारत का अपमान करते हैं।
- यह उन हिंदुओं की कहानी है जो 1000 वर्षों से बार-बार हुए धार्मिक और सांस्कृतिक विनाश को जानने के बावजूद भी बार-बार वही गलतियां दोहराते हैं।
सीख
- मूर्खता और भोलेपन की कीमत हमेशा अपना अस्तित्व खोकर चुकानी पड़ती है।
- इतिहास से न सीखने वाला समाज फिर से वही त्रासदी झेलता है।
- धोखा देने वालों को पहचानना और समय रहते निर्णय बदलना ही अस्तित्व की रक्षा है।