संत रविदास: भक्तिकाल के महान कवि और समाज सुधारक

Sooraj Krishna Shastri
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संत रविदास: भक्तिकाल के महान कवि और समाज सुधारक

संत रविदास (लगभग 1450–1520 ईस्वी) भारत के भक्तिकाल के महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। वे निर्गुण भक्ति परंपरा के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। उनकी कविताएँ, जिन्हें "रविदासियां" कहा जाता है, सामाजिक समानता, ईश्वर की भक्ति और मानवता की एकता पर केंद्रित हैं।

रविदास का काव्य केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक सुधार का माध्यम भी है। उन्होंने जाति-व्यवस्था, छुआछूत, और अन्य सामाजिक बुराइयों का विरोध किया और हर व्यक्ति को ईश्वर की भक्ति के माध्यम से समान अधिकार और स्वतंत्रता का संदेश दिया।


संत रविदास का जीवन परिचय

  1. जन्म और स्थान:

    • संत रविदास का जन्म वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के पास सीर गोवर्धनपुर गाँव में हुआ।
    • वे चर्मकार जाति से थे, जिसे तत्कालीन समाज में निम्न जाति माना जाता था।
  2. सामाजिक पृष्ठभूमि:

    • रविदास ने समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव को खुली चुनौती दी।
    • उन्होंने दिखाया कि ईश्वर की भक्ति के लिए जाति, धर्म, या सामाजिक स्थिति का कोई महत्व नहीं है।
  3. गुरु और शिष्य:

    • संत कबीर के समकालीन माने जाने वाले संत रविदास ने कई शिष्यों को अपने विचारों से प्रेरित किया, जिनमें मीरा बाई प्रमुख थीं।

रविदास का काव्य

1. काव्य की विशेषताएँ:

  • संत रविदास की कविताएँ सरल, प्रभावी, और लोकभाषा में रचित हैं।
  • उनका काव्य आध्यात्मिक ज्ञान और सामाजिक समानता का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत करता है।
  • कविताओं में प्रेम, भक्ति, और मानवता की झलक मिलती है।

2. भाषा और शैली:

  • उनकी रचनाएँ मुख्यतः हिंदी, ब्रजभाषा, और अवधी में लिखी गई हैं।
  • सरल और स्पष्ट भाषा का उपयोग, जो आम जनता के दिल तक पहुँच सके।

3. भक्ति और निर्गुण ब्रह्म:

  • संत रविदास निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे। उनका काव्य इस बात पर बल देता है कि ईश्वर हर जगह विद्यमान हैं और उनकी भक्ति के लिए कोई विशेष साधन या रूप की आवश्यकता नहीं है।

4. प्रसिद्ध रचनाएँ:

  • संत रविदास के कई पद और दोहे "गुरु ग्रंथ साहिब" में भी संकलित हैं।
  • उनके प्रसिद्ध पद, जैसे:
    • "मन चंगा तो कठौती में गंगा।"
    • "ऐसा चाहूँ राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न।"

रविदास के काव्य के प्रमुख विषय

  1. सामाजिक समानता:

    • उनकी कविताएँ जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ हैं। उन्होंने सभी मनुष्यों को समान बताया।
    • उदाहरण:
      "जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
      रैदास मनुष ना जुड़ सके, जब तक जाति न जात।।"
      
  2. ईश्वर की भक्ति और प्रेम:

    • उन्होंने दिखाया कि ईश्वर प्रेम और भक्ति के माध्यम से प्राप्त किए जा सकते हैं। बाहरी आडंबर या पूजा-पाठ की आवश्यकता नहीं है।
  3. निर्गुण भक्ति:

    • उनके भजन और पद निर्गुण ब्रह्म की उपासना पर आधारित हैं। उनके अनुसार, ईश्वर निराकार, अनंत, और सर्वव्यापी हैं।
  4. सामाजिक सुधार और मानवता:

    • रविदास ने मानवता की एकता और समाज में सुधार के विचारों को बढ़ावा दिया।
  5. सुख और शांति का संदेश:

    • उनकी कविताएँ आत्मिक शांति, प्रेम, और सहिष्णुता का संदेश देती हैं।

रविदास के प्रसिद्ध काव्य और दोहे

1. भक्ति का महत्व:

"मन चंगा तो कठौती में गंगा।"
  • यह पद दिखाता है कि यदि मन शुद्ध है, तो कहीं भी ईश्वर को पाया जा सकता है। बाहरी दिखावे की कोई आवश्यकता नहीं।

2. सामाजिक समानता:

"रैदास कहै मोही दरस दे,
जात-पात पूछै नहि कोई।"
  • यह पद सामाजिक समानता की महत्ता को दर्शाता है, जहाँ जाति-पाति का कोई स्थान नहीं।

3. ईश्वर का सर्वव्यापी रूप:

"अमर लोक में रहो प्रभु,
तू व्यापक सब ठाई।"
  • यह पद दिखाता है कि ईश्वर हर जगह मौजूद हैं और हर किसी के लिए सुलभ हैं।

4. आत्मा का सत्य स्वरूप:

"हरि का सेवक हरि सम जानो,
हरि बिन सेवक नाही।"

रविदास के काव्य की विशेषताएँ

  1. सहजता और सरलता:

    • उनकी रचनाओं में कठिन शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया, जिससे उनका काव्य आम जनता के लिए सरल और सुलभ बन गया।
  2. लोकभाषा का प्रयोग:

    • ब्रज, अवधी, और भोजपुरी जैसी भाषाओं में रचनाएँ, जो लोगों के बीच लोकप्रिय हुईं।
  3. सामाजिक सुधार का दृष्टिकोण:

    • उनका काव्य सामाजिक सुधार और समरसता की भावना को बढ़ावा देता है।
  4. भक्ति और तात्त्विक ज्ञान:

    • उनके पद आत्मज्ञान, भक्ति, और अध्यात्मिकता के समावेश का उदाहरण हैं।

संत रविदास का प्रभाव

  1. सामाजिक सुधार:

    • संत रविदास ने जाति और छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों को चुनौती दी और समानता का संदेश दिया।
  2. भक्ति आंदोलन पर प्रभाव:

    • उन्होंने भक्ति आंदोलन को गहराई और दिशा दी। उनकी शिक्षाएँ संत कबीर, गुरु नानक, और मीरा बाई पर गहरा प्रभाव डालती हैं।
  3. लोकप्रियता और प्रेरणा:

    • उनके पद और दोहे आज भी समाज में व्यापक रूप से गाए जाते हैं और लोगों को प्रेरित करते हैं।
  4. गुरु ग्रंथ साहिब में योगदान:

    • उनके 41 पद सिख धर्म के गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल हैं, जो उनकी सार्वभौमिक अपील को दर्शाते हैं।

रविदास की शिक्षाएँ

  1. सभी मनुष्यों की समानता:

    • समाज में जाति और वर्ग का कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।
  2. आडंबर रहित भक्ति:

    • भक्ति सच्चे मन से होनी चाहिए, न कि बाहरी आडंबर से।
  3. ईश्वर की सर्वव्यापकता:

    • ईश्वर हर जगह विद्यमान हैं और उन्हें पाने के लिए किसी विशेष साधन या पूजा की आवश्यकता नहीं।
  4. प्रेम और करुणा का संदेश:

    • समाज में प्रेम, करुणा, और सहिष्णुता का पालन करना चाहिए।

निष्कर्ष

संत रविदास का काव्य भक्ति, सामाजिक सुधार, और आत्मज्ञान का प्रतीक है। उन्होंने समाज में समानता और न्याय की भावना को प्रोत्साहित किया और भक्ति आंदोलन को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया।

उनकी रचनाएँ न केवल आध्यात्मिक प्रेरणा देती हैं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का भी माध्यम हैं। उनकी शिक्षाएँ और काव्य आज भी मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर हैं।

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