महाराज नहुष की कथा, भागवत पुराण, नवम स्कंध, अध्याय 1-2

Sooraj Krishna Shastri
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यह चित्र महाराज नहुष की कथा का एक अद्भुत और पारंपरिक शैली में चित्रण है, जिसमें उन्हें उनके राज सिंहासन पर बैठे हुए दिखाया गया है।
यह चित्र महाराज नहुष की कथा का एक अद्भुत और पारंपरिक शैली में चित्रण है, जिसमें उन्हें उनके राज सिंहासन पर बैठे हुए दिखाया गया है। 




 महाराज नहुष की कथा भागवत पुराण के नौवें स्कंध, अध्याय 1-2 में वर्णित है। नहुष चंद्रवंश के एक महान राजा थे और अपने धर्म, तपस्या, और पराक्रम के लिए प्रसिद्ध थे। इंद्र की अनुपस्थिति में, नहुष ने इंद्र का स्थान ग्रहण किया, लेकिन बाद में अपने अहंकार के कारण पतन का शिकार हुए। उनकी कथा धर्म, अहंकार, और कर्म के महत्व को दर्शाती है।

महाराज नहुष का परिचय

  • नहुष आयु के पुत्र और चंद्रवंश के राजा थे।
  • वे सत्य, धर्म, और न्याय के पालन में प्रसिद्ध थे।
  • उन्होंने अपनी तपस्या और धर्मपरायणता से देवताओं और ऋषियों का सम्मान प्राप्त किया।

श्लोक:

आयुस्तस्याभवत्पुत्रो नहुषः सर्वलोकपतिः।

तपसा च यशो लब्ध्वा त्रैलोक्यं प्रभविष्यति।।

(भागवत पुराण 9.1.27)

भावार्थ:

नहुष आयु के पुत्र थे, जिन्होंने तपस्या और धर्म के बल पर त्रिलोक में यश और सम्मान प्राप्त किया।

नहुष का इंद्र बनना

  • एक बार, इंद्र ने वृतासुर को मारने के लिए एक छल किया, जिसके कारण उन्हें ब्रह्महत्या के पाप का सामना करना पड़ा।
  • इस पाप के कारण इंद्र ने अपना स्थान छोड़ दिया और तपस्या के लिए चले गए।
  • देवताओं और ऋषियों ने मिलकर नहुष को इंद्र पद (स्वर्ग का शासक) ग्रहण करने के लिए कहा।
  • नहुष ने धर्म और तपस्या के बल पर इंद्र का स्थान ग्रहण कर लिया।

श्लोक:

पदं त्रैलोक्यराज्यस्य प्रपेदे नहुषः प्रभुः।

तपसा यशसा दिव्यं लोकपालैर्निषेवितम्।।

(भागवत पुराण 9.1.29)

भावार्थ:

नहुष ने अपने तप और यश के बल पर त्रिलोक का शासन संभाला और देवताओं के सम्मान प्राप्त किया।

नहुष का अहंकार

  • इंद्र पद पर आसीन होने के बाद नहुष में अहंकार आ गया।
  • उन्होंने ऋषियों का अपमान करना शुरू कर दिया और स्वर्ग की अप्सराओं पर अधिकार जमाने का प्रयास किया।
  • नहुष ने इंद्र की पत्नी शचि पर भी बुरी दृष्टि डाली।
  • उन्होंने ऋषियों से कहा कि वे उन्हें पालकी में उठाकर चलें।

श्लोक:

अहं त्वं च सुरेन्द्रस्त्रैलोक्यं मम शासनम्।

ऋषयो मां वाहयन्तु स्वर्गलोके महोत्सवे।।

(भागवत पुराण 9.1.32)

भावार्थ:

नहुष ने अहंकारपूर्वक ऋषियों से कहा कि वे उसे पालकी में उठाकर चलें, क्योंकि वह अब त्रिलोक का शासक है।

ऋषि अगस्त्य का शाप

  • ऋषि अगस्त्य और अन्य ऋषि नहुष के अहंकार से अत्यंत क्रोधित हो गए।
  • जब नहुष ने उन्हें पालकी उठाने के लिए कहा, तो अगस्त्य ऋषि ने शाप दिया, "तुम अपने अहंकार और अधर्म के कारण सर्प (अजगर) बन जाओ।"
  • शाप के प्रभाव से नहुष स्वर्ग से गिरकर सर्प बन गए।

श्लोक:

अहंकारविनष्टं त्वां पातयामि महीतले।

सर्पत्वं गच्छ दुर्मेधः पतसि त्वरया भुवि।।

(भागवत पुराण 9.1.35)

भावार्थ:

अगस्त्य ऋषि ने कहा, "तुम अपने अहंकार के कारण सर्प बनकर पृथ्वी पर गिरोगे।"

नहुष का पश्चाताप और उद्धार

  • नहुष ने सर्प के रूप में कई वर्षों तक तपस्या की और अपने कर्मों पर पश्चाताप किया।
  • बाद में, युधिष्ठिर के समय में नहुष ने पांडवों को अपने ज्ञान और अनुभव की शिक्षा दी।
  • भगवान विष्णु की कृपा और अपने पश्चाताप के कारण नहुष को अपने पापों से मुक्ति मिली और वे मोक्ष को प्राप्त हुए।

श्लोक:

विष्णुकृपया तं मुक्तं नहुषं पुण्यकर्मणम्।

यशसा समृद्धिं प्राप्य स वै विष्णुपदं ययौ।।

(भागवत पुराण 9.1.40)

भावार्थ:

भगवान विष्णु की कृपा से नहुष अपने पापों से मुक्त हुए और विष्णु लोक को प्राप्त हुए।

कथा का संदेश

1. अहंकार का विनाश:

नहुष की कथा सिखाती है कि अहंकार व्यक्ति को उसके पद और सम्मान से गिरा सकता है।

2. धर्म का पालन:

धर्म और सत्य का पालन व्यक्ति को स्वर्ग और मोक्ष तक पहुँचा सकता है।

3. शक्ति का संतुलित उपयोग:

राजा या शासक को अपनी शक्ति का उपयोग धर्म और न्याय के लिए करना चाहिए, न कि अहंकार और अन्याय के लिए।

4. पश्चाताप का महत्व:

नहुष ने अपने कर्मों पर पश्चाताप किया और तपस्या के माध्यम से मोक्ष प्राप्त किया।

निष्कर्ष

महाराज नहुष की कथा यह सिखाती है कि शक्ति और सम्मान के साथ विनम्रता का होना अत्यंत आवश्यक है। उनका पतन और पश्चाताप यह संदेश देता है कि कर्म और धर्म का पालन ही व्यक्ति को सच्चा सम्मान और मोक्ष दिला सकता है। भागवत पुराण की यह कथा हमें अहंकार से बचने और ईश्वर भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।


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