नीच योनि मे पड़े हुए पित्रों की होगी सद्गति

Sooraj Krishna Shastri
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नीच योनि मे पड़े हुए पित्रों की होगी सद्गति

नीच योनि मे पड़े हुए पित्रों की होगी सद्गति। यह चित्र उन पितरों की सद्गति को दर्शाता है जो नीच योनि में पड़े हुए हैं। इसमें भक्ति, कर्मकांड और दिव्य शक्तियों के माध्यम से पितरों को उन्नति और मुक्ति प्राप्त करते हुए दिखाया गया है। 




 नीच योनि मे पड़े हुए पित्रों की होगी सद्गति

   इन्द्रिरा एकादशी पर इतना करने से नीच योनि मे पडे हुए पित्रों की होगी सद्गति । कन्यादान और हजार वर्ष की तपस्या सिर्फ इतना करने से।

एकादशी व्रत के लाभ

  • जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान से होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है ।
  • जो पुण्य गौ-दान सुवर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है ।
  • एकादशी करनेवालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं और अपने परिवारवालों पर प्रसन्नता बरसाते हैं ।इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है ।
  • धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है ।
  • कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन रसमय बनता है ।
  • परमात्मा की प्रसन्नता प्राप्त होती है ।पूर्वकाल में राजा नहुष, अंबरीष, राजा गाधी आदि जिन्होंने भी एकादशी का व्रत किया, उन्हें इस पृथ्वी का समस्त ऐश्वर्य प्राप्त हुआ ।भगवान शिवजी ने नारद से कहा है : एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं, इसमे कोई संदेह नहीं है । एकादशी के दिन किये हुए व्रत, गौ-दान आदि का अनंत गुना पुण्य होता है ।

एकादशी के दिन करने योग्य कार्य

 एकादशी को दिया जलाके विष्णु सहस्त्र नाम पढ़ें विष्णु सहस्त्र नाम नहीं हो तो १० माला गुरुमंत्र का जप कर लें l अगर घर में झगडे होते हों, तो झगड़े शांत हों जायें ऐसा संकल्प करके विष्णु सहस्त्र नाम पढ़ें तो घर के झगड़े भी शांत होंगे l

श्राद्ध पक्ष की एकादशी पर पित्रों की सद्गति के लिए  इतना जरूर करें

 एकादशी के दिन ये सावधानी रहे

 महीने में १५-१५ दिन में एकादशी आती है एकादशी का व्रत पाप और रोगों को स्वाहा कर देता है लेकिन वृद्ध, बालक और बीमार व्यक्ति एकादशी न रख सके तभी भी उनको चावल का तो त्याग करना चाहिए एकादशी के दिन जो चावल खाता है... तो धार्मिक ग्रन्थ से एक- एक चावल एक- एक कीड़ा खाने का पाप लगता है...ऐसा डोंगरे जी महाराज के भागवत में डोंगरे जी महाराज ने कहा है।

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