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"भारतगीतम्" काव्य: भारतवर्ष की महिमा का अद्भुत वर्णन, हिन्दी अनुवाद के साथ |
"भारतगीतम्" काव्य: भारतवर्ष की महिमा का अद्भुत वर्णन, हिन्दी अनुवाद के साथ
यहाँ "भारतगीतम्" नामक इस काव्य में भारतवर्ष की महिमा का अद्भुत वर्णन किया गया है। अब हम प्रत्येक श्लोक का हिन्दी में अनुवाद प्रस्तुत करते हैं:
श्लोक १:
श्रीमत्समस्तसंपत्समृद्धिसंपूर्णरम्यतोत्कर्षम् ।
हृद्यानवद्यविद्याविद्योति विभाति भारतं वर्षम् ॥
अनुवाद:
समस्त ऐश्वर्य और समृद्धि से पूर्ण, अतीव रमणीय और महान गौरवशाली, तथा हृदय को प्रसन्न करने वाली निर्मल विद्या से प्रकाशित भारतवर्ष चमकता है।
श्लोक २:
सहकारनालिकेरागरुपाटीरादिमतरुवररुचिरम् फलविनतकलमशालिक्षेत्रव्याख्यातसारसर्वस्वम् ॥
अनुवाद:
आम, नारियल, सुपारी आदि श्रेष्ठ वृक्षों की शोभा से अलंकृत तथा फल-फूलों और लहलहाते धान्य-क्षेत्रों से सम्पन्न भारतवर्ष परम सारस्वरूप है।
श्लोक ३:
नानाकलाकलापप्रचारविस्तारिकीर्तिकमनीयम् ।
देशान्तरानुकार्यप्रगुणपरिष्कारसाररमणीयम् ॥
अनुवाद:
अनेक प्रकार की कलाओं के प्रचार और विस्तार से शोभायमान, तथा अन्य देशों के लिए अनुकरणीय गुणों और संस्कृति से संपन्न यह भारतवर्ष अद्वितीय सौंदर्ययुक्त है।
श्लोक ४:
प्रतिदिनमधीयमानश्रुतिपरिपूताग्रहारमहनीयम् ।
षड्दर्शनीपटिष्ठद्विजगोष्ठीचिन्त्यमानशास्त्रार्थम् ॥
अनुवाद:
जहाँ प्रतिदिन वेदों का अध्ययन किया जाता है, जो श्रुति-संस्कार से पवित्र है, तथा जहाँ षड्दर्शन के ज्ञाता ब्राह्मणों की गोष्ठियों में शास्त्रार्थ होता है, वह भारतवर्ष महान है।
श्लोक ५:
वैदिककर्मठविद्वत्परिषदनुष्ठीयमानबहुयागम् ।
अनवरतमुदितनिर्जरभावितसस्यादिसंपदभिरामम् ॥
अनुवाद:
जहाँ विद्वानों की सभाओं में वेद-विहित यज्ञ संपन्न होते हैं, तथा जहाँ निरंतर देवताओं की कृपा से अन्न और संपत्ति का वैभव बना रहता है, वह भारतवर्ष मनोहर है।
श्लोक ६:
अत्र विराजति गौरीगुरुरच्युतमूर्तिराश्रयो जगताम् ।
व्योमावगाहिपादः सुरसरिदवतारकारणं हिमवान् ॥
अनुवाद:
जहाँ स्वयं गौरीपति भगवान शिव और अच्युत (भगवान विष्णु) का वास है, तथा जहाँ देवताओं की गंगा के अवतरण का कारण बना महान हिमालय स्थित है।
श्लोक ७:
यं किल यज्ञाङ्गखनिं धरणीधरणक्षमस्वसाराढ्यम् ।
परिकलितयज्ञभागं शैलाधिपतिं प्रजापतिर्व्यधित ॥
अनुवाद:
जिसे यज्ञ के लिए आवश्यक सामग्री और संपत्ति का भंडार कहा जाता है, जिसे भगवान प्रजापति ने यज्ञभाग के योग्य समझकर शैलराज हिमालय का निर्माण किया।
श्लोक ८:
यत्र महामहिमानो विषयविदूरा महात्मानः ।
भगवद्ध्यानैकपरास्तप्यन्ते तेपिरे च तप्स्यन्ते ॥
अनुवाद:
जहाँ महान महात्मा विषय-वासना से दूर रहते हुए केवल भगवान के ध्यान में लीन होकर तप करते आए हैं, कर रहे हैं और करते रहेंगे।
श्लोक ९:
श्रीखण्डखण्डजनिभूरगस्त्यवासातिपावनोद्देशः ।
दक्षिणसमीरसूतिर्लसतितरां मलयशैलोऽत्र ॥
अनुवाद:
जहाँ सुगंधित चंदन उत्पन्न होता है, जहाँ अगस्त्य मुनि का पावन आश्रम है, और जहाँ मलय पर्वत से उठने वाली शीतल दक्षिण पवन बहती है।
श्लोक १०:
या कापिलकोपानलशलभायितसगरनृपतितनयानाम् ।
त्रिदिवाधिरोहलीलाकल्पितदृढपुण्यरज्जुनिश्रेणिः ॥
अनुवाद:
जहाँ कपिल मुनि के शाप से भस्म हुए सगर के पुत्रों को मोक्ष प्रदान करने हेतु गंगा अवतरित हुई, वह पुण्यभूमि भारतवर्ष है।
श्लोक ११:
यां किल हरिचरणारुणसरसिजनिष्यन्दिमधुरमधुधाराम्
आसेव्य सुकृतिलोकस्तापं विजहाति सर्वतः प्रसृतम् ॥
अनुवाद:
जिस गंगा के जल में भगवान हरि के चरणों की महिमा समाहित है, जिसे ग्रहण कर पुण्यात्मा अपने समस्त तापों को दूर कर लेते हैं।
श्लोक १२:
बहुतीर्थशोभमाना संगतयमुना सरस्वतीरुचिरा ।
प्रथमा महानदीनां प्रवहति साप्यत्र पावनी गङ्गा ॥
अनुवाद:
जहाँ अनेकों पवित्र तीर्थस्थलों की शोभा है, जहाँ यमुना और सरस्वती नदियाँ बहती हैं, और जहाँ पहली महान नदी गंगा प्रवाहित होती है।
श्लोक १३:
मातेव पोषयन्ती पयसा चोलानबाधमङ्कगतान् ।
श्रीरङ्गसङ्गसंगतमङ्गलतुङ्गात्र वहति कावेरी ॥
अनुवाद:
जो माता के समान अपनी गोद में पलने वाले चोलों को अपने जल से पोषित करती है, जो श्रीरंगनाथ की शोभा को बढ़ाती है, वह पुण्यसलिला कावेरी प्रवाहित होती है।
श्लोक १४:
मुक्ताकलितं तीर्थे दधती विरजेव यावगाहिजनान् ।
मुक्तामयान्वितनुते प्रवहति सरिदत्र ताम्रपर्णी सा ॥
अनुवाद:
जो अपने तीर्थों में स्नान करने वालों को निर्मलता प्रदान करती है, जैसे विरजा नदी मोक्ष प्रदान करती है, वैसी ताम्रपर्णी नदी भारतवर्ष में प्रवाहित होती है।
अब हम "भारतगीतम्" के शेष श्लोकों का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत करते हैं:
श्लोक १५:
यस्मिन्विन्यस्य पदं सुरलोकाद्भारतीदेवी ।
स्वयमवततार भूमावत्राभूत्कविगुरुः स वाल्मीकिः ॥
अनुवाद:
जिस भूमि पर स्वयं भारती देवी (सरस्वती) स्वर्गलोक से उतरकर प्रकट हुईं, उसी भारतवर्ष में काव्यगुरु महर्षि वाल्मीकि का अवतरण हुआ।
श्लोक १६:
सूक्तिसुधारसदानादखिलानामोदयन्विबुधान् ।
रूपान्तरगतविष्णुः कृष्णद्वैपायनोऽत्र संजज्ञे ॥
अनुवाद:
जिस भारतभूमि में महर्षि व्यास (कृष्णद्वैपायन) का जन्म हुआ, जिन्होंने अमृतमयी वाणी से समस्त विद्वानों को आनंदित किया और जो स्वयं विष्णु का अवतार माने जाते हैं।
श्लोक १७:
सूर्याचन्द्रमसाविव संतमसं यौ विधूनुतो जगतः ।
ताभ्यां पूतं भारतवर्षे वर्णयतु कः कथंकारम् ॥
अनुवाद:
जिस भूमि में महर्षि वाल्मीकि और व्यास ने जन्म लेकर सूर्य-चंद्रमा के समान अज्ञान के अंधकार को दूर किया, उस पावन भारतवर्ष की महिमा को कौन और कैसे वर्णित कर सकता है?
श्लोक १८:
देहस्य वाङ्मनसयोरपि मलमुन्मूलितं येन ।
तेन पतञ्जलिनेदं वर्षमभूष्यात्मनो जनुषा ॥
अनुवाद:
जिस महर्षि पतंजलि ने योगशास्त्र द्वारा शरीर, वाणी और मन के मल (अशुद्धियों) को दूर करने की विधि बताई, उनका जन्म भी इसी भारतभूमि में हुआ।
श्लोक १९:
आस्थिषत कर्मणैव हि संसिद्धिं ब्रह्मवादिनो ये ते ।
जनकादयो महान्तो वर्षमिदं ज्ञानपूर्णमतनिषत ॥
अनुवाद:
जिस भारतभूमि में राजा जनक और अन्य महान ऋषियों ने केवल कर्म के माध्यम से ब्रह्मज्ञान को प्राप्त किया और ज्ञान की परिपूर्णता स्थापित की।
श्लोक २०:
श्रीशंकररामानुजमध्वाचार्या अवातरन्नत्र ।
ये किल सोपानततिं निरमासत मुक्तिसौधमधिरोढुम् ॥
अनुवाद:
जिस भूमि में आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य और मध्वाचार्य का अवतरण हुआ, जिन्होंने मुक्ति रूपी भवन तक पहुँचने के लिए सोपान (मार्ग) का निर्माण किया।
श्लोक २१:
यद्गथितसूक्तिमाला सुदृशां प्रतिदेशमुल्लसति कण्ठे ।
कविलोकसार्वभौमः कीर्त्या रेजे स कालिदासोऽत्र ॥
अनुवाद:
जिस भारतभूमि में महाकवि कालिदास जन्मे, जिनकी रचित सूक्तियाँ सुंदर वाणी में संपूर्ण देश के कंठ में गूँजती हैं, और जिनकी कीर्ति आज भी चमकती है।
श्लोक २२:
वाचां विहारभवनं प्रसन्नगम्भीरसरसमधुराणाम् ।
बाणकविरत्र जज्ञे यः किल सारस्वतं पौंस्स्नम् ॥
अनुवाद:
जिस भारतभूमि में बाणभट्ट का जन्म हुआ, जिनकी वाणी गम्भीर, मधुर और रसपूर्ण थी, और जो सरस्वती के आशीर्वाद से सुशोभित थे।
श्लोक २३:
दुष्करसंगरधीरो नीतिविदां ज्ञानिनां च धौरेयः ।
स्वच्छन्दमृत्युरासीदत्र महात्मा स गाङ्गेयः ॥
अनुवाद:
जिस भारतभूमि में महाभारत के महानायक भीष्म पितामह जन्मे, जो अडिग नीति और ज्ञान के धुरंधर थे, तथा जिन्होंने स्वेच्छा से मृत्यु को वरण किया।
श्लोक २४:
सत्यपरिपालनाय व्यक्रीणाद्यः कलत्रपुत्रौ स्वौ ।
चण्डालकिंकरोऽभूत्स्वयमिह सोऽभून्महान्हरिश्चन्द्रः ॥
अनुवाद:
जिस भारतभूमि में सत्यव्रत राजा हरिश्चन्द्र जन्मे, जिन्होंने सत्य की रक्षा के लिए अपनी पत्नी और पुत्र को बेच दिया और स्वयं चांडाल के सेवक बने।
श्लोक २५:
पितृवाक्यपालनरतो यो वनमध्यास्त धन्विनां धुर्यः ।
नियतैकदारचर्यो धर्मात्मा सोऽजनीह रघुवर्यः ॥
अनुवाद:
जिस भारतभूमि में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का जन्म हुआ, जिन्होंने पितृवचन का पालन किया, एकपत्नीव्रत का आदर्श रखा और महान धर्मात्मा बने।
श्लोक २६:
मेधाविहारिवाचा नन्दितविजयः सुरेन्द्रशिवदाता |
गोकुललालनपालो मोहनतिलकोऽनुजगृह इह कृष्णः ॥
अनुवाद:
जिस भारतभूमि में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण अवतरित हुए, जिन्होंने अपनी बुद्धि और वाणी से विजय प्राप्त की, देवताओं को संकट से बचाया और गोकुल में लीला की।
श्लोक २७:
कर्मज्ञानप्रपदनयोगैरौदार्यवीर्यशीलगुणैः
विद्याविवेकशिल्पैर्वर्षमिदं प्रागदिद्युतन्बहवः ॥
अनुवाद:
जहाँ कर्म, ज्ञान और भक्ति के माध्यम से अनेकों महापुरुषों ने उत्कृष्टता प्राप्त की, जहाँ उदारता, वीरता, सद्गुण, विद्या, विवेक और कला की अद्भुत शोभा रही।
समाप्ति:
यह "भारतगीतम्" भारतवर्ष की महानता का स्तुतिपूर्ण वर्णन करता है, जिसमें यहाँ के ऋषि-मुनियों, महापुरुषों, नदियों, पर्वतों, तीर्थों और सांस्कृतिक विरासत की गौरवगाथा गाई गई है। यदि आप किसी विशेष श्लोक की गहराई से व्याख्या चाहते हैं या कोई चर्चा करना चाहते हैं, तो अवश्य बताइए।
रचनाकार - श्री कृष्णमाचार्य जी
अनुवादक - सूरज कृष्ण शास्त्री