ऋग्वेद संहिता (मंडल 10, सूक्त 191) – ऐकमत्य सूक्तम्

Sooraj Krishna Shastri
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ऋग्वेद संहिता (मंडल 10, सूक्त 191) – ऐकमत्य सूक्तम्
ऋग्वेद संहिता (मंडल 10, सूक्त 191) – ऐकमत्य सूक्तम्

ऋग्वेद संहिता (मंडल 10, सूक्त 191) – ऐकमत्य सूक्तम्

(एकता एवं सामंजस्य का स्तोत्र)

ऋग्वेद के इस ऐकमत्य सूक्त में सामाजिक एवं आध्यात्मिक समरसता पर बल दिया गया है। इसमें अग्निदेव को संबोधित करते हुए यज्ञ, प्रार्थना, तथा एकता के महत्व को स्पष्ट किया गया है। यह सूक्त हमें परस्पर सहयोग, समभाव एवं सामूहिक चिंतन की ओर प्रेरित करता है, जिससे समाज में सुदृढ़ता एवं संतुलन बना रहे।


संस्कृत मूल पाठ एवं हिंदी अर्थ

(1) प्रथम मंत्र

संस॒मिद्यु॑वसे वृष॒न्नग्ने॒ विश्वा॑न्य॒र्य आ ।
इ॒ळस्प॒दे समि॑ध्यसे॒ स नो॒ वसू॒न्या भ॑र ॥

🔹 शब्दार्थ:

  • संसमित् = एकत्र होकर, संगठित होकर
  • युवसे = पुकारते हैं, प्रार्थना करते हैं
  • वृषन् = जल बरसाने वाले, दयालु
  • अग्ने = अग्निदेव
  • विश्वानि = समस्त, सभी
  • अर्ह्य = पूजनीय
  • इळस्पदे = यज्ञ स्थल, जहां आहुति दी जाती है
  • समिध्यसे = प्रज्वलित होते हो
  • सः नः = वह हमें
  • वसूनी = धन-धान्य, समृद्धि
  • आ भर = प्रदान करें

🔹 हिंदी अर्थ:
हे अग्निदेव! हम संगठित होकर आपकी स्तुति करते हैं। आप सभी पूजनीय देवताओं में सबसे श्रेष्ठ हैं। आप यज्ञस्थल में प्रज्वलित होते हैं और हमारे लिए धन, ऐश्वर्य, एवं सभी प्रकार की समृद्धि प्रदान करते हैं।


(2) द्वितीय मंत्र

सं ग॑च्छध्वं॒ सं व॑दध्वं॒ सं वो॒ मनां॑सि जानताम् ।
दे॒वा भा॒गं यथा॒ पूर्वे॑ संजाना॒ना उ॒पास॑ते ॥

🔹 शब्दार्थ:

  • सं गच्छध्वम् = साथ चलो
  • सं वदध्वम् = साथ बोलो, विचार-विमर्श करो
  • सं मनांसि जानताम् = तुम्हारे मन एक समान विचार करें
  • देवाः = देवगण
  • भागम् = यज्ञ का अंश, प्रसाद
  • यथा पूर्वे = जैसे पूर्वकाल के ऋषि-मुनि
  • संजानानाः = सहमत होकर, एकमत होकर
  • उपासते = उपासना करते थे

🔹 हिंदी अर्थ:
हे मानवो! तुम संगठित होकर साथ चलो, एक साथ विचार-विमर्श करो, और तुम्हारे मन भी एक समान हों। जिस प्रकार प्राचीन काल में देवगण एकमत होकर यज्ञ का भाग ग्रहण करते थे, उसी प्रकार तुम भी एकता के साथ कार्य करो।


(3) तृतीय मंत्र

स॒मा॒नो मन्त्र॒: समि॑तिः समा॒नी स॑मा॒नं मन॑: स॒ह चि॒त्तमे॑षाम् ।
स॒मा॒नं मन्त्र॑म॒भि म॑न्त्रये वः समा॒नेन॑ वो ह॒विषा॑ जुहोमि ॥

🔹 शब्दार्थ:

  • समानः मन्त्रः = एक ही संकल्प या विचार
  • समिति: = सभा, परिषद
  • समानि = समान
  • समानं मनः = एक ही मन
  • सह चित्तम् = एक ही चित्त (भावना, विचार)
  • अभि मन्त्रये = मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करता हूँ
  • सामनेन हविषा = समान भावना से दी गई आहुति

🔹 हिंदी अर्थ:
हे मानवो! तुम्हारे संकल्प समान हों, तुम्हारे विचार समान हों, तुम्हारा मन और चित्त समान हों। मैं तुम्हारे लिए यही प्रार्थना करता हूँ। जैसे यज्ञ में समान भावना से आहुति दी जाती है, वैसे ही तुम्हारे विचार एवं उद्देश्य भी एक समान हों।


(4) चतुर्थ मंत्र

स॒मा॒नी व॒ आकू॑तिः समा॒ना हृद॑यानि वः ।
स॒मा॒नम॑स्तु वो॒ मनो॒ यथा॑ व॒: सुस॒हास॑ति ॥

🔹 शब्दार्थ:

  • समानि आकूतिः = समान संकल्प
  • समान हृदयानि = समान हृदय
  • समानं मनः = एक जैसा मन
  • यथा वः सुसहासति = जिससे तुम परस्पर मेलजोल के साथ रह सको

🔹 हिंदी अर्थ:
तुम्हारे संकल्प समान हों, तुम्हारे हृदय समान हों, तुम्हारे मन समान हों, ताकि तुम एक-दूसरे के साथ प्रेमपूर्वक और सौहार्दपूर्वक रह सको।


भावार्थ एवं निष्कर्ष

ऋग्वेद का यह ऐकमत्य सूक्त संपूर्ण मानव समाज को एकता, सहयोग, और सामूहिक कल्याण की भावना से प्रेरित करता है। इसके मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

  1. संगठन एवं सामूहिकता:

    • यह सूक्त हमें एकजुट होकर कार्य करने और परस्पर विचार-विमर्श करने की प्रेरणा देता है।
  2. सामंजस्यपूर्ण विचार एवं उद्देश्य:

    • इसमें यह संदेश दिया गया है कि हमारे विचार, संकल्प और उद्देश्य समान होने चाहिए ताकि हम मिलकर श्रेष्ठ कार्य कर सकें।
  3. प्राचीन परंपराओं का अनुसरण:

    • जैसे देवगण यज्ञ में एकमत होकर भाग लेते थे, वैसे ही मनुष्यों को भी सहमति और सामंजस्य के साथ कार्य करना चाहिए।
  4. सामाजिक एवं आध्यात्मिक एकता:

    • यह सूक्त समाज में प्रेम, सद्भावना और एकजुटता स्थापित करने का संदेश देता है, जिससे संपूर्ण विश्व में शांति और समृद्धि बनी रहे।

अंतिम संदेश

ऋग्वेद का यह सूक्त आज के समय में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना प्राचीन काल में था। यह हमें संगठन, सहयोग, और एकता की महत्ता को समझाने के साथ-साथ समाज को सुदृढ़ बनाने की प्रेरणा देता है। यदि हम इस मंत्र के संदेश को आत्मसात करें, तो हम एक बेहतर समाज की स्थापना कर सकते हैं जो प्रेम, समरसता और समानता पर आधारित हो।

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