मैं कौन हूँ?– एक खोज की यात्रा

Sooraj Krishna Shastri
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मैं कौन हूँ?– एक खोज की यात्रा
मैं कौन हूँ?– एक खोज की यात्रा


 यह प्रेरक कथा अत्यंत भावपूर्ण और गूढ़ अर्थ लिए हुए है। नीचे इसे एक सुव्यवस्थित, अनुभूति-प्रधान शैली में प्रस्तुत किया गया है, ताकि पाठक गहराई से जुड़ सकें –


मैं कौन हूँ?– एक खोज की यात्रा

एक अत्यंत पहुँचे हुए सन्यासी वर्षों तक संसार का भ्रमण कर भारत लौट रहे थे। मार्ग में वे एक छोटी-सी रियासत में ठहरे। जब वहाँ के राजा को उनके आगमन का समाचार मिला, तो वे तुरंत उनसे मिलने पहुँच गए।

राजा ने विनम्रतापूर्वक चरण वंदना करते हुए कहा –
"स्वामीजी! बीते 20 वर्षों से एक प्रश्न का उत्तर खोज रहा हूँ। मुझे मार्ग नहीं मिला। क्या आप सहायता करेंगे?"

सन्यासी मुस्कराए और बोले –
"निश्चिंत रहो। आज तुम खाली नहीं लौटोगे। पूछो – तुम्हारा प्रश्न क्या है?"

राजा ने कहा –
"मैं ईश्वर से मिलना चाहता हूँ। सुनना या समझना नहीं – सीधा मिलना चाहता हूँ।"

सन्यासी ने सहज भाव से पूछा –
"अभी मिलना चाहते हो या थोड़ी देर ठहर कर?"

राजा चौंककर बोले –
"शायद आप समझे नहीं। मैं परमपिता परमात्मा की बात कर रहा हूँ – किसी 'ईश्वर' नामक व्यक्ति की नहीं। जो आप पूछ रहे हैं कि 'अभी मिलना है या थोड़ी देर में।'"

सन्यासी मुस्कराए –
"भूल की कोई संभावना नहीं, राजन। मैं तो 24 घंटे परमात्मा से मिलाने का ही कार्य करता हूँ। बताओ – अभी मिलना है?"

राजा ने साहस जुटाया –
"हाँ, मैं अभी मिलना चाहता हूँ। कृपया मिला दीजिए।"

सन्यासी बोले –
"कृपा करके एक छोटे से काग़ज़ पर अपना नाम, पता और परिचय लिख दो – ताकि भगवान को बता सकूँ कि कौन उनसे मिलने आया है।"

राजा ने अपने नाम, उपाधियाँ, महल का नाम आदि लिखकर काग़ज़ थमा दिया।

सन्यासी ने उसे पढ़ा और शांत स्वर में कहा –
"मित्र, यह सब झूठ लगता है। यह तुम्हारा वास्तविक परिचय नहीं है।"

"अगर तुम्हारा नाम बदल दिया जाए, तो क्या तुम बदल जाओगे?"
राजा ने कहा –
"नहीं, नाम बदलने से मैं नहीं बदलूंगा।"

"तय हो गया – नाम तुम्हारा परिचय नहीं।"

"यदि आज तुम राजा हो और कल भिखारी हो जाओ, तो क्या तुम बदल जाओगे?"
राजा ने कहा –
"नहीं, परिस्थिति बदलेगी, पर मैं वही रहूँगा।"

"तय हो गया – राज्य, संपत्ति भी तुम्हारा परिचय नहीं।"

"तुम्हारी उम्र क्या है?"
राजा बोला –
"चालीस वर्ष।"

सन्यासी ने कहा –
"जब तुम बीस वर्ष के थे तब तुम अलग थे?"
राजा ने कहा –
"शरीर बदला, अवस्था बदली – पर 'मैं' नहीं बदला।"

"तो फिर शरीर, उम्र भी तुम्हारा परिचय नहीं। अब बताओ – तुम कौन हो? वही लिखो, जिसे भगवान के पास भेज सकूँ।"

राजा मौन रह गया –
"तब तो समस्या है। मैं भी नहीं जानता कि वास्तव में मैं कौन हूँ।"

सन्यासी ने मुस्कराकर कहा –
"वहीं से खोज शुरू होती है। जब तक तुम स्वयं को नहीं पहचानते, परमात्मा को कैसे पहचानोगे? और जिस दिन तुम स्वयं को जान लोगे, उस दिन परमात्मा को खोजने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी – क्योंकि स्वयं को जानना ही परमात्मा को जानना है।"


निष्कर्ष

"खुद को खोजो, खुदा मिल जाएगा।"


"हृदय आधारित ध्यान के अभ्यास में हम अपने अस्तित्व के सरलतम और शुद्धतम पहलू की खोज करके उसकी अनुभूति करते हैं।"
दाजी


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