संस्कृत श्लोक: "निस्सारस्य पदार्थस्य प्रायेणाडम्बरो महान्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "निस्सारस्य पदार्थस्य प्रायेणाडम्बरो महान्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "निस्सारस्य पदार्थस्य प्रायेणाडम्बरो महान्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद


संस्कृत श्लोक: "निस्सारस्य पदार्थस्य प्रायेणाडम्बरो महान्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

🙏जय श्री राम।🌼 सुप्रभातम्।
 प्रस्तुत श्लोक एक अत्यंत सुंदर नीति-वचन है, जो दिखावे और वास्तविक मूल्य के बीच के अंतर को दर्शाता है।

आइए इसका हिन्दी अनुवाद, शब्दार्थ, व्याकरणिक विश्लेषण, और आधुनिक सन्दर्भ सहित विस्तार से विश्लेषण करें:


श्लोक:

निस्सारस्य पदार्थस्य प्रायेणाडम्बरो महान्।
न हि स्वर्णे ध्वनिस्तादृग् यादृक् कांस्ये प्रजायते॥


शब्दार्थ:

  • निस्सारस्य = सार (अर्थ, मूल्य) रहित वस्तु का
  • पदार्थस्य = वस्तु का
  • प्रायेण = सामान्यतः, अधिकतर
  • आडम्बरः = दिखावा, तामझाम
  • महान् = अधिक होता है, बड़ा होता है
  • न हि = नहीं ही
  • स्वर्णे = सोने में
  • ध्वनिः = ध्वनि, आवाज
  • तादृक् = वैसी
  • यादृक् = जैसी
  • कांस्ये = कांस्य (पीतल) में
  • प्रजायते = उत्पन्न होती है

हिन्दी अनुवाद (भावार्थ):

सामान्यतः, जो वस्तु सारहीन होती है, उसमें दिखावा अधिक होता है। जैसे — सोना कम आवाज करता है, परंतु पीतल अधिक शोर करता है।


व्याकरणिक विश्लेषण:

  • निस्सारस्य पदार्थस्य — षष्ठी विभक्ति (सम्बन्ध) द्विवचन; "सारहीन वस्तु का"
  • प्रायेण — क्रियाविशेषण; "अधिकतर, सामान्यतः"
  • आडम्बरः महान् — "बड़ा दिखावा होता है" (प्रथम पुरुष, एकवचन)
  • न हि स्वर्णे — "नहीं ही सोने में" (सप्तमी विभक्ति)
  • ध्वनिः तादृक् — "ऐसी ध्वनि" (तादृक् = 'उस प्रकार की')
  • यादृक् कांस्ये प्रजायते — "जैसी कांस्य में उत्पन्न होती है"

यहां "यादृक्–तादृक्" युग्म का प्रयोग हुआ है — यह तुलनात्मक भाव को प्रकट करता है।


आधुनिक सन्दर्भ में व्याख्या:

यह नीति-वचन हमें आज की दुनिया में भी सत्य प्रतीत होता है।

  • जो व्यक्ति वास्तव में ज्ञानी होते हैं, वे बहुत कम बोलते हैं, विनम्र होते हैं।
  • वहीं, जिनके पास ज्ञान कम होता है, वे दिखावा अधिक करते हैं — बोलचाल, तामझाम, आडंबर।
  • जैसे एक सच्चा हीरा कम चमकता है पर मूल्यवान होता है, नकली पत्थर अधिक चमकते हैं पर मूल्यहीन होते हैं।
  • इसी प्रकार, बहुत-से ब्रांडेड उत्पाद सिर्फ विज्ञापन के बल पर बिकते हैं, जबकि असली गुणवत्ता छुपी होती है।

संक्षिप्त नीति-कथा (उदाहरण हेतु):

एक बार राजा ने दो वादक बुलाए — एक ने चमकदार वाद्य यंत्र लाया, बजाया तो केवल शोर निकला।
दूसरा, पुराने सरल वाद्य के साथ आया और मधुर राग छेड़ दिया।
राजा बोला — “कांस्य की झंकार ने कान दुखाए, पर सादगी ने आत्मा छू ली।”


यह रहा नीति-श्लोक "निस्सारस्य पदार्थस्य प्रायेणाडम्बरो महान्" पर आधारित एक संवादात्मक नीति-कथा, जो बालकों, छात्रों और सामान्य पाठकों के लिए भी रोचक, बोधप्रद और संवाद-शैली में तैयार की गई है:


नीति-कथा: "कांस्य की चमक और सोने की शांति"

स्थान: आचार्य वसिष्ठ का आश्रम
पात्र: आचार्य वसिष्ठ, छात्र सुमति और दुर्विनीत


(एक दिन गुरुकुल में दो छात्र – सुमति और दुर्विनीत – अपने ज्ञान का प्रदर्शन कर रहे थे।)

दुर्विनीत (उत्तेजित स्वर में):
गुरुदेव! देखिए, मैंने कितनी सारी शास्त्रों की बातें याद कर ली हैं। नीति, व्याकरण, गणित, खगोल – सब कुछ!
(ज़ोर से पाठ सुनाने लगता है…)

सुमति (शांत स्वर में):
गुरुदेव, मैं प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा अभ्यास करता हूँ, और जो समझ आता है, उसी का जीवन में पालन करने की चेष्टा करता हूँ।

आचार्य वसिष्ठ (मुस्कुराते हुए):
दुर्विनीत, तुम्हारा उत्साह प्रशंसनीय है, परंतु क्या तुम समझते हो कि केवल ऊँची आवाज़ और आडंबर ही ज्ञान का प्रमाण है?

दुर्विनीत (अभिमान से):
गुरुदेव, जो अधिक बोलता है, वही अधिक जानता है — ऐसा तो सभी कहते हैं!

आचार्य वसिष्ठ (एक पीतल और एक स्वर्ण पात्र दिखाते हुए):
देखो इन दोनों पात्रों को। यह कांस्य का पात्र है – चमकदार, हल्का, और बजाने पर तेज़ आवाज करता है।
और यह स्वर्ण पात्र – साधारण दीखता है, भारी है, और ध्वनि धीमी।

दुर्विनीत:
परंतु स्वर्ण तो अधिक मूल्यवान है!

आचार्य:
बिलकुल! यही तो आज का पाठ है –
"निस्सारस्य पदार्थस्य प्रायेणाडम्बरो महान्।
न हि स्वर्णे ध्वनिस्तादृग् यादृक् कांस्ये प्रजायते॥"

जो वस्तु जितनी हीन होती है, उतना ही अधिक शोर मचाती है। असली मूल्यवान व्यक्ति दिखावा नहीं करता।

सुमति (विनम्रता से):
गुरुदेव, अब मैं समझ गया – ज्ञान का मूल्य उसके आडंबर में नहीं, बल्कि आचरण में होता है।

आचार्य (स्नेहपूर्वक):
साधु सुमते! यही सच्चा ज्ञान है — शांति में ही गहराई बसती है। जो जितना गूढ़ होता है, वह उतना ही मौन रहता है।


नीति-संदेश:

"सच्चे मूल्यवान व्यक्ति आडंबर नहीं करते, वे मौन में भी संसार को दिशा देते हैं।"


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