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संस्कृत श्लोक: "निस्सारस्य पदार्थस्य प्रायेणाडम्बरो महान्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "निस्सारस्य पदार्थस्य प्रायेणाडम्बरो महान्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
आइए इसका हिन्दी अनुवाद, शब्दार्थ, व्याकरणिक विश्लेषण, और आधुनिक सन्दर्भ सहित विस्तार से विश्लेषण करें:
श्लोक:
शब्दार्थ:
- निस्सारस्य = सार (अर्थ, मूल्य) रहित वस्तु का
- पदार्थस्य = वस्तु का
- प्रायेण = सामान्यतः, अधिकतर
- आडम्बरः = दिखावा, तामझाम
- महान् = अधिक होता है, बड़ा होता है
- न हि = नहीं ही
- स्वर्णे = सोने में
- ध्वनिः = ध्वनि, आवाज
- तादृक् = वैसी
- यादृक् = जैसी
- कांस्ये = कांस्य (पीतल) में
- प्रजायते = उत्पन्न होती है
हिन्दी अनुवाद (भावार्थ):
सामान्यतः, जो वस्तु सारहीन होती है, उसमें दिखावा अधिक होता है। जैसे — सोना कम आवाज करता है, परंतु पीतल अधिक शोर करता है।
व्याकरणिक विश्लेषण:
- निस्सारस्य पदार्थस्य — षष्ठी विभक्ति (सम्बन्ध) द्विवचन; "सारहीन वस्तु का"
- प्रायेण — क्रियाविशेषण; "अधिकतर, सामान्यतः"
- आडम्बरः महान् — "बड़ा दिखावा होता है" (प्रथम पुरुष, एकवचन)
- न हि स्वर्णे — "नहीं ही सोने में" (सप्तमी विभक्ति)
- ध्वनिः तादृक् — "ऐसी ध्वनि" (तादृक् = 'उस प्रकार की')
- यादृक् कांस्ये प्रजायते — "जैसी कांस्य में उत्पन्न होती है"
यहां "यादृक्–तादृक्" युग्म का प्रयोग हुआ है — यह तुलनात्मक भाव को प्रकट करता है।
आधुनिक सन्दर्भ में व्याख्या:
यह नीति-वचन हमें आज की दुनिया में भी सत्य प्रतीत होता है।
- जो व्यक्ति वास्तव में ज्ञानी होते हैं, वे बहुत कम बोलते हैं, विनम्र होते हैं।
- वहीं, जिनके पास ज्ञान कम होता है, वे दिखावा अधिक करते हैं — बोलचाल, तामझाम, आडंबर।
- जैसे एक सच्चा हीरा कम चमकता है पर मूल्यवान होता है, नकली पत्थर अधिक चमकते हैं पर मूल्यहीन होते हैं।
- इसी प्रकार, बहुत-से ब्रांडेड उत्पाद सिर्फ विज्ञापन के बल पर बिकते हैं, जबकि असली गुणवत्ता छुपी होती है।
संक्षिप्त नीति-कथा (उदाहरण हेतु):
यह रहा नीति-श्लोक "निस्सारस्य पदार्थस्य प्रायेणाडम्बरो महान्" पर आधारित एक संवादात्मक नीति-कथा, जो बालकों, छात्रों और सामान्य पाठकों के लिए भी रोचक, बोधप्रद और संवाद-शैली में तैयार की गई है:
नीति-कथा: "कांस्य की चमक और सोने की शांति"
(एक दिन गुरुकुल में दो छात्र – सुमति और दुर्विनीत – अपने ज्ञान का प्रदर्शन कर रहे थे।)
जो वस्तु जितनी हीन होती है, उतना ही अधिक शोर मचाती है। असली मूल्यवान व्यक्ति दिखावा नहीं करता।
नीति-संदेश:
"सच्चे मूल्यवान व्यक्ति आडंबर नहीं करते, वे मौन में भी संसार को दिशा देते हैं।"