संस्कृत श्लोक "भारस्योद्वहनार्थं च रथाक्षोऽभ्यज्यते यथा" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🌞 🙏 जय श्रीराम 🌷 सुप्रभातम् 🙏
यह श्लोक मिताहार, वैराग्य, और ज्ञानयोग के व्यावहारिक पक्ष को अत्यंत सुंदर उपमेय शैली में प्रकट करता है। इसमें बताया गया है कि ज्ञानीजन भोजन को भी एक साधन मात्र मानते हैं, न कि भोग का विषय।
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| संस्कृत श्लोक "भारस्योद्वहनार्थं च रथाक्षोऽभ्यज्यते यथा" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
✨ श्लोक ✨
भारस्योद्वहनार्थं च रथाक्षोऽभ्यज्यते यथा।भोजनं प्राणयात्रार्थं तद्वद्विद्वान्निषेव्यते॥
bhārasyodvahanārthaṁ ca rathākṣo'bhyajyate yathā।bhojanaṁ prāṇayātrārthaṁ tadvadvidvān niṣevyate॥
🔍 शब्दार्थ व व्याकरणीय विश्लेषण:
| पद | अर्थ | व्याकरणिक टिप्पणी |
|---|---|---|
| भारस्य | बोझ का | षष्ठी विभक्ति |
| उद्वहनार्थं | ढोने के लिए | “उद् + वहन” = ऊपर उठाकर ले जाने की क्रिया |
| रथाक्षः | रथ का पहिया / धुरी | पुल्लिंग |
| अभ्यज्यते | अभ्यक्त किया जाता है (तेल से चुपड़ा जाता है) | कर्मणि प्रयोग |
| यथा | जैसे | उपमा (समानता) |
| भोजनं | आहार, भोजन | नपुंसक लिंग |
| प्राणयात्रार्थं | जीवन को चलाने हेतु | तृतीया तत्पुरुष समास |
| तद्वत् | उसी प्रकार | उपमा अव्यय |
| विद्वान् | ज्ञानी पुरुष | प्रथमा एकवचन |
| निषेव्यते | सेवन करता है | आत्मनेपद, लट् लकार |
🪷 भावार्थ:
"जैसे रथ के पहिये को बोझ उठाने के लिए तेल से चुपड़ा जाता है,
उसी प्रकार ज्ञानी पुरुष केवल प्राण-यात्रा के लिए (मात्र आवश्यक) भोजन करते हैं।"
यानी भोजन का उद्देश्य पेट-पूजन या स्वाद-भोग नहीं, बल्कि शरीर को धर्म-पालन के लिए सक्रिय बनाए रखना है।
🌿 प्रेरणादायक दृष्टांत: “मुनि और मिताहार” 🌿
एक बार एक शिष्य ने पूछा:
"गुरुदेव, आप तो केवल थोड़ा सा कंद-मूल खाते हैं — इतने कम भोजन में आप कैसे स्वस्थ रहते हैं?"
गुरु मुस्कुराए और बोले:
"वत्स, मैं भोजन का उपयोग करता हूँ, भोजन का उपासक नहीं हूँ।जैसे रथ की धुरी को तेल इसलिए दिया जाता है ताकि वह गाड़ी ढो सके —वैसे ही मैं शरीर को भोजन देता हूँ ताकि यह धर्म-गति चला सके।स्वाद या संग्रह का इसमें कोई स्थान नहीं।"
🌟 शिक्षा / प्रेरणा:
- भोजन उपभोग नहीं, साधन है।
- ज्ञानीजन कभी स्वाद के पीछे नहीं भागते, वे उद्देश्य के अनुसार खाते हैं।
- शरीर को ईश्वर ने धर्म-साधना के लिए दिया है, अतः उसका पोषण विवेकपूर्वक हो।
- मिताहार और युक्ताहार योग और ज्ञान की पहली सीढ़ी हैं।
🕯️ मनन योग्य वाक्य:
"भोजन शरीर के लिए है, शरीर भोजन के लिए नहीं।ध्यान रहे — स्वाद से परे धर्म है।"

