सीता राम चरन रति मोरें। अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरें॥
स्वयं श्री रामचंद्रजी भी भले ही मुझे कुटिल समझें और लोग मुझे गुरुद्रोही तथा स्वामी द्रोही भले ही कहें, पर श्री सीता-रामजी के चरणों में मेरा प्रेम आपकी कृपा से दिन-दिन बढ़ता ही रहे॥
एक बात हमेशा ध्यान रहे कि प्रभु से कभी कुछ मांगना नहीं चाहिए यदि मांगना ही है तो प्रभु के चरणों में प्रेम मांगों।
जेहि बिधि नाथ होइ हित मोरा।
करहु सो बेगि दास मैं तोरा॥
हे नाथ! जिस तरह मेरा हित हो, आप वही शीघ्र कीजिए। मैं आपका दास हूँ।
अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँति।
सब तजि भजनु करौं दिन राती।।
शक्ति (सीता) और ब्रम्ह (राम) के प्रति मेरा पूर्ण समर्पण हो और हे प्रभु यह हर पल, हर दिन निरंतर बढ़ता रहे जिससे सांसारिक माया और बन्धनों से मुक्ति मिलती रहे जबतक यह बंधन होगा हर भक्ति (नवधा) मैं शर्त होगी जबकि भक्ति में शर्त नहीं समर्पण होना चाहिए!
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।
जिसका अर्थ है कि आपको अपने निर्धारित कर्तव्यों को निभाने का अधिकार है, लेकिन आप अपने कार्यों के फल के हकदार नहीं हैं। कभी भी अपने आप को अपनी गतिविधियों के परिणामों का कारण न समझें, न ही निष्क्रियता से जुड़े रहें।
हमारे आस-पास दो तरह की ऊर्जा होती है, एक सकारात्मक और दूसरी नकारात्मक। अगर इस ऊर्जा के विभेद को समझ लिया गया तो ईश्वर के अस्तित्व को लेकर उपजे भ्रमों को समाप्त किया जा सकता है। ईश्वर सिर्फ सकारात्मक ऊर्जा का अथाह भंडार है। यजुर्वेद का सार है
"अहम् ब्रह्मास्मि" अर्थात् मैं ब्रह्म हूं या आत्मा ही ब्रह्म है यानी जीव ही ब्रह्म (भगवान या ईश्वर) है। साथ ही सामवेद का कथन है "तत्वमसि" अर्थात वह तुम हो।
मनुष्य का परम धर्म भगवान के चरणों में है। सभी लोगों को भगवान को सच्चे मन से याद करना चाहिए। वर्तमान में अधिकांश लोग स्वार्थ के लिए भगवान को पूजने लगे हैं। सच्चे मन से लोग प्रभु की भक्ति नहीं कर रहे हैं। जब उनका कोई काम पूरा नहीं हो रहा है या वह किसी समस्या में फंसे हुए हैं तो वे भगवान को याद कर रहे हैं, उन्हें फूल, माला अगरबत्ती दिखा रहे हैं। काम पूरा हो जाने या समस्या दूर हो जाने की प्रार्थना करते हैं। यह सच्ची भक्ति नहीं है।
भगवान को रिश्वत की जरूरत नहीं है।
सच्ची भक्ति तो प्रभु से प्रेम करने में है। श्रेष्ठ भक्त वही है जो प्रभु से प्रेम करता है, स्वार्थ के लिए मांगता नहीं है।
जो भगवान से मांगता है वह मनुष्य गलती करता है। भगवान कभी किसी का बुरा नहीं चाहते हैं। जब आप कुछ मांगोगे तो यह जरूरी नहीं कि उसके मिलने से आपका कष्ट दूर हो जायेगा, जबकि बिना मांगे भगवान देंगे तो वे सारी बाधाएं दूर कर देंगे। किसी प्रकार का कष्ट नहीं रह जाएगा।
जब कोई छोटा बच्चा कुछ भी देखता है तो उसे मांगने लगता है, लेकिन उसे यह नहीं पता होता है कि वह उसके लिए अच्छा है या बुरा, लेकिन उसके माता-पिता जब भी उसे कुछ देते हैं तो वह वही देते हैं जो उसके लिए लाभदायक हो। इसी तरह प्रभु जब भी अपने भक्त को देते हैं तो वे उसकी सारी बाधाएं हर लेते हैं।
एक बार एक व्यक्ति प्रभु से मिलता है तो वह प्रभु से ऐसा वरदान मांगता है कि वह जिसे भी छुए वह सोना हो जाए। वह यह वरदान इसलिए मांगता है कि वह यही जानता था कि सोना बहुत ही कीमती है। उसे वह वरदान मिल जाता है। जब वह खाना खाने जाता है तो वह जैसे ही भोजन व पानी को छूता तो वह सोना बन जाता था। इससे वह भूखा रहने लगा। अंत में वह भगवान से वरदान वापस लेने की विनती करता है।
पूरी जिंदगी आपसे कुछ न मांगू ऐसा वर दो
भगवान के सच्चे भक्त प्रहलाद थे, जिन्होंने तमाम कठिनाइयों के बावजूद भगवान के प्रति प्रेम को कम नहीं होने दिया। इससे खुश होकर भगवान ने प्रहलाद से कहा कि आज जो मांगना है मांगो, मैं सब कुछ देने को तैयार हूं। प्रहलाद ने प्रभु से वरदान मांगा कि हे प्रभु मेरी आपसे पूरी जिंदगी कुछ भी मांगने की इच्छा न हो, ऐसा वर दे दो।
सबसे बड़े दु:ख की बात तो तब है जब ईश्वर को प्रसाद चढ़ाने के बदले में भक्त लोग बहुत कुछ मांग लेते हैं। मात्र ₹ 11 या ₹ 101 के प्रसाद में नौकरी अथवा बेटी की शादी करवाने तक का भगवान से सौदा तय कर लेते हैं। यह स्वस्थ परम्परा नहीं है। निष्काम पूजा और भक्ति ही सफल होती है। ईश्वर पर श्रद्धा और विश्वास होना चाहिए। वह आपको देख रहा होता है और आपके बारे में सब कुछ जानता है।
ईश्वर को चापलूसी पसंद नहीं है, इसलिए उससे कुछ मांगने की आवश्यकता भी नहीं है।
हे मेरे प्रभु - मेरी इच्छा कभी पूर्ण न हो , सदैव आपकी ही इच्छा पूर्ण हो , क्योंकि मेरे लिए क्या सही है , ये मुझसे बेहतर आप जानते हैं ।
जो भगवान से मांगता है वह मनुष्य गलती करता है। भगवान कभी किसी का बुरा नहीं चाहते हैं। जब आप कुछ मांगोगे तो यह जरूरी नहीं कि उसके मिलने से आपका कष्ट दूर हो जायेगा, जबकि बिना मांगे भगवान देंगे तो वे सारी बाधाएं दूर कर देंगे। किसी प्रकार का कष्ट नहीं रह जाएगा।
किसी ने कहा है कि -
इश्क एक तरफा में यूं मसरूर हो जाऊँगा मैं
राम तुम होगे शमा काफूर हो जाऊँगा मैं
मैं तुम्हे देखूं तो देखूं, तुम न मुझको देखना
तुने गर देखा मुझे, मशहूर हो जाऊँगा मैं
मैं तुम्हे चाहूँ तो चाहूँ, तुम न मुझको चाहना
तुने गर चाहा मुझे, मगरूर हो जाऊँगा मैं
मैं अगर मांगू कभी तो, कुछ न देना तुम मुझे
वरना फिर प्रेमी नहीं मजदूर हो जाऊँगा मैं