🌿 सोमरस : देवताओं का प्रिय मादक पदार्थ !

Sooraj Krishna Shastri
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🌿 सोमरस : देवताओं का प्रिय मादक पदार्थ !

 प्रस्तुत विवरण “सोमरस” के विषय में एक अत्यंत उपयुक्त, गूढ़ और पौराणिक सन्दर्भों से युक्त विवरण है। अब आइए इसे व्यवस्थित, संदर्भित एवं स्पष्ट रूप में बिंदुवार रूप से प्रस्तुत करें ताकि किसी प्रकार का भ्रम न रहे और सामान्य जन भी इसके मूल तत्व को भलीभांति समझ सकें—

🌿 सोमरस : देवताओं का प्रिय मादक पदार्थ !
🌿 सोमरस : देवताओं का प्रिय मादक पदार्थ !



🌿 सोमरस : देवताओं का प्रिय अमृत, कोई मादक पदार्थ नहीं


🔹 1. सोमरस की प्राचीनता और वेदों में उल्लेख

  • ऋग्वेद, यजुर्वेद, और अथर्ववेद में सोमरस का वर्णन अनेक स्थानों पर आता है।

  • यह न केवल देवताओं के आह्लाद का साधन माना गया है, बल्कि यज्ञीय आहुति, औषधीय सेवन और बौद्धिक बलवर्द्धन का भी माध्यम था।

  • ऋग्वेद में केवल सोम को समर्पित 114 सूक्त हैं – इससे इसके महत्व का सहज अनुमान लगाया जा सकता है।


🔹 2. सोमरस और मदिरा (सुरा) में अंतर

विषय सोमरस सुरा / मदिरा
उत्पत्ति सोम नामक दिव्य जड़ी-बूटी से किण्वित पदार्थों (फलों/अनाज) से
प्रयोजन यज्ञ, औषधि, मानसिक शुद्धि इन्द्रिय तृप्ति, व्यसन
देवताओं का पेय हाँ (देवगण सोमपान करते थे) नहीं (असुर सुरा पान करते थे)
वेदों में दृष्टिकोण पवित्र, यज्ञ में प्रयुक्त त्याज्य, तामसिक व निषिद्ध
आधुनिक भ्रांति शराब समझा जाता है यथार्थ में यह गलत तुलना है

🔹 3. सोमरस की संरचना और सेवन विधि (वेदों के अनुसार)

  • सोमरस केवल कोई पेय नहीं, वह एक संस्कारित औषधीय पेय था।

  • इसे सोम लता को कूट-पीसकर, छानकर, उसमें दूध, दही, शहद, घी मिलाकर तैयार किया जाता था।

  • यज्ञों में यह सर्वप्रथम अग्नि देव को अर्पित किया जाता था।

  • इसके बाद इंद्र, वरुण, अश्विनीकुमार, आदि देवों को आह्वान कर उनकी कृपा प्राप्त की जाती थी।


🔹 4. सोम का पौधा क्या था? कहाँ पाया जाता है?

  • वैदिक काल के ऋषि इसे पहाड़ों की दुर्लभ वनस्पति मानते थे।

  • हिमालय, विंध्याचल, मलयाचल, अर्बुद (माउंट आबू) आदि पर्वतीय क्षेत्रों में इसके अस्तित्व की चर्चा मिलती है।

  • कुछ विद्वान इसे आज की दृष्टि से एपेड्रा (Ephedra), सरकोस्टेमा एसिडम (Sarcostemma acidum) जैसी वनस्पतियों से जोड़ते हैं।

  • परंतु इसके वास्तविक स्वरूप पर आज भी शोध और विवाद बना हुआ है।


🔹 5. सोमरस से जुड़ी भ्रांतियाँ और उनका खंडन

  • कई टीवी धारावाहिकों और जनश्रुतियों में इंद्र आदि देवताओं को सोमरस पीते हुए शराबी की तरह चित्रित किया जाता है, जो पूर्णतः गलत है।

  • ऐसे चित्रण वेद-विरुद्ध, अपमानजनक और देवसंस्कृति की छवि को धूमिल करने वाले हैं।

  • वेदों में सोमपान एक आध्यात्मिक क्रिया है, न कि इन्द्रियजन्य व्यसन।


🔹 6. आधुनिक युग में सोमरस की तर्ज पर निर्मित पंचामृत

  • आज के यज्ञों, पूजा-पाठ में जो पंचामृत या चरणामृत दिया जाता है (दूध, दही, घी, शहद, शकर), वह सोमरस की स्मृति स्वरूप है।

  • इसमें अब “सोम लता” अनुपलब्ध है, पर इसका शुद्धता और पवित्रता का भाव यथावत है।


🔹 7. ऋषियों और यज्ञों में सोम का स्थान

  • यज्ञों में सोमरस की महत्ता इतनी थी कि कई बार सोमयाग (Somayag) केवल सोमपान के लिए ही आयोजित होता था।

  • ऋषियों, मुनियों और देवताओं का योग, तप, बल और दिव्यता इसी सोम सेवन से पुष्ट होती थी।


🔹 8. निष्कर्ष : सोमरस का वास्तविक अर्थ और सम्मान

  • सोमरस कोई मादक शराब नहीं थी, बल्कि एक दिव्य औषधीय पेय था।

  • वेदों में इसे अमृत तुल्य, बुद्धिवर्धक, बलप्रदायक और दैवीय बताया गया है।

  • आधुनिक मानसिकता में इसका शराब से तुलना करना अज्ञानतापूर्ण और अपमानजनक है।


📌 मन में गांठ बाँध लीजिए –

"शराब, सोमरस नहीं है।
सोमरस – देवताओं की अमृतधारा थी, नशे की नहीं।
उसे 'पेय' नहीं, 'संस्कार' समझा जाता था।"

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