श्रीकृष्ण के अवतरण का अंतिम अध्याय: यदुवंश का संहार, बलरामजी का शेषनाग रूप, और श्रीकृष्ण का परमधाम गमन

Sooraj Krishna Shastri
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🔱श्रीकृष्ण के अवतरण का अंतिम अध्याय: यदुवंश का संहार, बलरामजी का शेषनाग रूप, और श्रीकृष्ण का परमधाम गमन 🔱

(महाभारत के उपांत समय का मार्मिक वर्णन – विस्तारपूर्वक, क्रमबद्ध एवं भावपूर्ण)
श्रीकृष्ण के अवतरण का अंतिम अध्याय: यदुवंश का संहार, बलरामजी का शेषनाग रूप, और श्रीकृष्ण का परमधाम गमन
श्रीकृष्ण के अवतरण का अंतिम अध्याय: यदुवंश का संहार, बलरामजी का शेषनाग रूप, और श्रीकृष्ण का परमधाम गमन 



🔸 गांधारी के श्राप का प्रभाव और श्रीकृष्ण की पूर्वतैयारी

महाभारत युद्ध के पश्चात गांधारी ने जब श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि – “जैसे मेरे कुल का विनाश हुआ, वैसे ही एक दिन तुम्हारा यदुवंश भी आपसी कलह में समाप्त हो जाएगा,” तब श्रीकृष्ण ने शांत भाव से इसे स्वीकार किया और उत्तर दिया – "तथास्तु, ऐसा ही होगा।"

36 वर्षों तक द्वारका में शांत जीवन बिताने के बाद जब समय पूर्ण हुआ, तब ब्रह्मांडीय विधान के अनुसार घटनाएं घटने लगीं।


🔸 ऋषियों का श्राप और लोहे का मूसल

एक दिन महर्षि विश्वामित्र, कण्व और नारद आदि द्वारका पधारे। श्रीकृष्ण के पुत्र सांब और कुछ नवयुवकों ने उन्हें हँसी में ले लिया और स्त्री-वेष में सांब को उनके पास ले जाकर पूछा – “यह स्त्री गर्भवती है, बताइए इसके गर्भ से क्या जन्म लेगा?”

ऋषियों ने यह सुनकर क्रोधित होकर कहा –
"इसके गर्भ से लोहे का मूसल जन्म लेगा, जो पूरे यदुवंश का सर्वनाश करेगा।"

अगले ही दिन सांब के गर्भ से सचमुच एक लोहे का मूसल उत्पन्न हुआ। राजा उग्रसेन ने उसे समुद्र में फिंकवा दिया। परंतु समुद्र के किनारे वह रेत में फंस गया और धीरे-धीरे मूसल का चूर्ण समुद्रतट की एरका घास में मिल गया।


🔸 द्वारका में अशुभ लक्षण और अपशकुन

  • द्वारका में अजीब घटनाएं घटने लगीं:

    • सारस, उल्लुओं की तरह बोलने लगे।

    • गायों से गधों का जन्म होने लगा।

    • चूहे इतने बढ़ गए कि मनुष्यों की अंगुलियां व बाल कुतरने लगे।

    • पापाचार, मदिरापान और क्रूरता बढ़ गई।

श्रीकृष्ण ने यह सब देखकर समझ लिया कि गांधारी का श्राप पूर्ण होने का समय आ गया है।


🔸 प्रभास क्षेत्र में तीर्थयात्रा और यदुवंशियों का अंत

श्रीकृष्ण ने सबको प्रभास तीर्थ की यात्रा के लिए प्रोत्साहित किया। वहाँ एक दिन वृष्णि, अंधक और भोज कुल के वीरों में विवाद छिड़ गया।

  • सात्यकि ने क्रोधवश कृतवर्मा की हत्या कर दी।

  • अंधक वंशी योद्धाओं ने सात्यकि को घेर लिया।

  • श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न ने सात्यकि की सहायता की, किंतु वे भी मारे गए।

  • श्रीकृष्ण ने घास का एक तिनका उठाया, जो मूसल में बदल गया।

  • जैसे ही योद्धा घास उठाते, वह घातक मूसल बन जाती।

यदुवंश के सभी वीर – सांब, गद, अनिरुद्ध, चारुदेष्ण – आपस में लड़कर मारे गए। श्रीकृष्ण ने स्वयं शेष बचे योद्धाओं का संहार कर दिया।


🔸 बलरामजी का देहत्याग और शेषनाग स्वरूप में प्रस्थान

श्रीकृष्ण बलराम से मिलने वन में गए। बलराम जी समाधि में लीन थे। ध्यानस्थ अवस्था में उनके मुख से एक विशाल श्वेत नाग निकला, जिसके हजारों फन थे।

वह समुद्र की ओर चला गया, जहाँ समुद्रदेव ने शेषनाग स्वरूप बलरामजी का सम्मानपूर्वक स्वागत किया।


🔸 श्रीकृष्ण का अंतिम चिंतन और देहत्याग

वन में एक वृक्ष के नीचे श्रीकृष्ण विचारमग्न होकर बैठ गए। उन्होंने योग में मन लगाकर ध्यानस्थ हो गए। तभी एक शिकारी ‘जरा’ ने दूर से हिरण समझकर उन पर बाण चला दिया।

बाण श्रीकृष्ण के पाँव में लगा। शिकारी जब पास आया, तब श्रीकृष्ण को देखकर रो पड़ा। श्रीकृष्ण ने उसे सांत्वना दी और कहा –
"जरा, तुमने जो किया, वह संयोग था। मुझे किसी प्रकार का क्लेश नहीं। तुम निश्चिन्त हो जाओ।"

इतना कहकर श्रीकृष्ण अपने परमधाम वैकुण्ठ को प्रस्थान कर गए। स्वर्ग में इंद्र, देवता, ऋषि, अश्विनीकुमार आदि ने उनका भव्य स्वागत किया।


🔸 दारुक का संदेश और अर्जुन का आगमन

दारुक श्रीकृष्ण की आज्ञा लेकर हस्तिनापुर गए और अर्जुन को सब बताया। अर्जुन तुरंत द्वारका आए।
यहाँ श्रीकृष्ण की रानियाँ, नगरवासी और मंत्री अत्यंत विलाप कर रहे थे। अर्जुन ने उन्हें इंद्रप्रस्थ ले जाने का निर्णय लिया।


🔸 वसुदेव का प्रस्थान और स्त्रियों का सतीत्व

श्रीकृष्ण के पिता वसुदेवजी ने श्रीकृष्ण का वियोग सह न सके और उन्होंने प्राण त्याग दिए।
उनके साथ देवकी, रोहिणी, भद्रा आदि रानियाँ भी सती हो गईं।

अर्जुन ने विधिपूर्वक उनका अंतिम संस्कार किया।


🔸 द्वारका का समुद्र में विलय

सातवें दिन अर्जुन श्रीकृष्ण के परिजनों और द्वारकावासियों को लेकर जैसे ही नगर से निकले –
द्वारका नगरी भयंकर गर्जना के साथ समुद्र में डूब गई।
सभी इस अद्भुत दृश्य को देखकर स्तब्ध रह गए।


🔚 उपसंहार: लीला का समापन और धर्म का संदेश

  • श्रीकृष्ण की इस सम्पूर्ण लीला का अंतिम भाग यह दर्शाता है कि

    • धर्म का संस्थापन हो चुका था।

    • अधर्म का नाश हो चुका था।

    • यदुकुल भी समय आने पर कालचक्र के अधीन हो गया।

श्रीकृष्ण, बलराम और यदुवंश का यह अंत कोई सामान्य विनाश नहीं था, बल्कि काल की पूर्णता, श्राप की सिद्धि और दिव्य लीला की समाप्ति थी।


🔸 यह कथा केवल इतिहास नहीं, एक चेतना है – कि जब अहंकार, मद, और पाप बढ़ते हैं, तब स्वयं ईश्वर भी अपने प्रियतमों को कालचक्र के नियमों से परे नहीं रखते। 🔸

🙏 हरि: सर्वं हरति 🙏

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