पितृ दिवस पर विशिष्ट श्लोक और कविता
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पितृ दिवस पर विशिष्ट श्लोक और कविता |
पिता धर्म: पिता स्वर्ग: पिता हि परमं तप:।
पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवता:।।
पितरौ यस्य तृप्यन्ति सेवया च गुणेन च।
तस्य भागीरथीस्नानमहन्यहनि वर्तते।।
सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमय: पिता।
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्।।
मातरं पितरंश्चैव यस्तु कुर्यात् प्रदक्षिणम्।
प्रदक्षिणीकृता तेन सप्तद्वीपा वसुंधरा।।
- पद्मपुराण
पद्मपुराण में कहा गया है कि पिता धर्म है, पिता स्वर्ग है और पिता ही सबसे श्रेष्ठ तप है। पिता के प्रसन्न हो जाने पर सम्पूर्ण देवता प्रसन्न हो जाते हैं। जिसकी सेवा और सद्गुणों से पिता माता सन्तुष्ट रहते हैं उस पुत्र को प्रतिदिन गंगा स्नान का पुण्य मिलता है। माता सर्वतीर्थमयी है और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप है। इसलिए सब प्रकार से माता पिता का पूजन करना चाहिए। माता पिता की परिक्रमा करने से सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है। (पद्मपुराण)
जनिता चोपनेता च यश्च विद्यां प्रयच्छति।
अन्नदाता भयत्राता पंचैते पितर: स्मृता:।।
- चाणक्य
जन्मदाता, पालक, विद्यादाता(गुरु), अन्नदाता और भयत्राता (भय से रक्षा करने वाला) , ये पांचों पिता कहे गए हैं।
एक पिता को परिस्थितियों और
दायित्वों का बोझ दबाता है,
परिवार को आगे बढ़ाने में
स्वयं पीछे छूट जाता है।
परिजनों के हित साधन में
निरंतर रत रहता है,
असमय पिता यूँ ही रोगी और
बूढ़ा नहीं हो जाता है।।
संतान की इच्छा पूर्ति में स्वयं
अनिच्छा का शिकार हो जाता है,
फिर भी संतति का असंतोष
चिन्ता को बढ़ा जाता है।
अशिष्ट व्यवहार का आघात
भीतर तक पहुँच जाता है,
असमय पिता यूँ ही रोगी और
बूढ़ा नहीं हो जाता है।।
बच्चों को भविष्य निर्माण हेतु
दिन रात प्रेरित करता है,
अपनी समस्याएँ छिपाकर वह
उन्हें सुविधाएँ प्रदान करता है।
फिर भी बच्चे की उदासीनता
भीतर तक रुला जाता है,
असमय पिता यूँ ही रोगी और
बूढ़ा नहीं हो जाता है।।
सुरसा सदृश परिजनों की
इच्छापूर्ति में पिता पिसता है,
लेकिन सुंदर भविष्य के सपने में
सब कुछ सहन कर जाता है।
फिर भी अपने प्रति अपमान से
पिता भीतर तक टूट जाता है,
असमय पिता यूँ ही रोगी और
बूढ़ा नहीं हो जाता है।।
खून के रिश्ते को खून से ही
सींचने का प्रयास करता है,
सपनों के आहत होने के भय से
खून भी बिदक जाता है।
इस संताप से रक्त का चाप भी
असंतुलन में आ जाता है,
असमय पिता यूँ ही रोगी और
बूढ़ा नहीं हो जाता है।।
परिवार की मधुरता के लिए
पिता दिन रात लगाता है,
अपने प्रति मधुर व्यवहार की
आशा भी त्याग देता है।
इस अपनत्व के तनाव में वह
मधुमेह का शिकार हो जाता है,
असमय पिता यूँ ही रोगी और
बूढ़ा नहीं हो जाता है।।
परिजनों की संवेदना पिता
नित हृदय में बसाता है,
हृदय उनके आचरण से ही
स्पंदन भी कराता है।
अप्रत्याशित हृदयहीनता से
हृदय रोग भी हो जाता है,
असमय पिता यूँ ही रोगी और
बूढ़ा नहीं हो जाता है।।
धीरे धीरे पिता कई तरह के
रोगों से घिर जाता है,
तरह-तरह की दवाओं के
घनचक्कर में पिस जाता है।
और एक दिन अचानक ही
काल कवलित हो जाता है,
असमय पिता यूँ ही रोगी और
बूढ़ा नहीं हो जाता है।।
परिजनों की अनुकूलता ही
पिता के लिए संबल होता है,
शिष्ट व्यवहार का उपचार ही
पिता के लिए पथ्य होता है।
सबकी सहज सकारात्मकता
लंबी उम्र व प्रसन्नता देता है,
असमय पिता यूँ ही रोगी और
बूढ़ा नहीं हो जाता है।।
-- डॉ निशा कान्त द्विवेदी
आइए पिता को समझें। उनके प्रति अपने दायित्वों का सम्यक् निर्वहन करें। पिता का स्वास्थ्य बहुत कुछ परिजनों के हाथ में होता है। सभी को पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ।