संस्कृत श्लोक: "यस्तु पक्वम् उपादत्ते काले परिणतं फलम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "यस्तु पक्वम् उपादत्ते काले परिणतं फलम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

🌸 जय श्रीराम 🌸
🙏 सुप्रभातम् 🙏
 प्रस्तुत श्लोक न केवल काव्यात्मक है, अपितु उसमें जीवन का गूढ़, व्यावहारिक एवं समयबद्ध दर्शन भी समाहित है। आइए अब इसे विस्तारपूर्वक और व्यवस्थित ढंग से समझते हैं —
संस्कृत श्लोक: "यस्तु पक्वम् उपादत्ते काले परिणतं फलम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "यस्तु पक्वम् उपादत्ते काले परिणतं फलम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद



🪔 मूल श्लोक:

यस्तु पक्वम् उपादत्ते काले परिणतं फलम् ।
फलाद्रसं स भजते बीजाच्चैव पुनः फलम् ॥


📚 शब्दार्थ:

संस्कृत शब्द हिन्दी अर्थ
यः (yaha) जो व्यक्ति
पक्वम् (pakvam) पक चुका / परिपक्व
उपादत्ते (upādatte) ग्रहण करता है
काले (kāle) उचित समय में
परिणतम् (pariṇatam) पूर्ण रूप से परिपक्व
फलम् (phalam) फल
फलात् (phalāt) फल से
रसम् (rasam) रस
भजते (bhajate) प्राप्त करता है, उपभोग करता है
बीजात् (bījāt) बीज से
पुनः (punaḥ) फिर, दोबारा
फलम् (phalam) फल

🧠 सरल भावार्थ:

जो व्यक्ति किसी फल को उसके परिपक्व होने पर, उचित समय में ग्रहण करता है, वह उस फल से रस प्राप्त करता है, और उस बीज से पुनः दूसरा फल भी प्राप्त कर लेता है।


व्याकरणात्मक विश्लेषण 


📘 १. पदविच्छेद (शब्दों का विग्रह):

यः तु पक्वम् उपादत्ते काले परिणतम् फलम् ।
फलात् रसम् सः भजते बीजात् च एव पुनः फलम् ॥


📘 २. शब्द-रूप, कारक, लिंग, वचन, विभक्ति:

पद रूप/विभक्ति अर्थ
यः सर्वनाम, पुं.लि., प्रथमा एकव. जो (कर्ता)
तु निपात "तो", "अर्थात्", "अब" (वाक्य-संयोग)
पक्वम् विशेषण, नपुंसक लि., द्वितीया एकव. पका हुआ (फल के लिए)
उपादत्ते धातु: √दा (उप+आ+दा), लट् लकार, आत्मनेपदी, प्रथम पुरुष, एकवचन ग्रहण करता है
काले संज्ञा, पुं.लि., सप्तमी एकवचन समय में / उचित समय पर
परिणतम् विशेषण, नपुंसक लि., द्वितीया एकवचन परिपक्व / विकसित
फलम् संज्ञा, नपुंसक लिंग, द्वितीया एकवचन फल
फलात् संज्ञा, नपुंसक लिंग, पञ्चमी एकव. फल से
रसम् संज्ञा, पुं.लिंग, द्वितीया एकव. रस
सः सर्वनाम, पुं.लि., प्रथमा एकव. वह (कर्ता)
भजते धातु √भज्, लट् लकार, आत्मनेपदी, प्रथम पुरुष, एकव. प्राप्त करता है / उपभोग करता है
बीजात् संज्ञा, नपुंसक लिंग, पञ्चमी एकव. बीज से
च एव निपात और भी
पुनः क्रिया विशेषण फिर, दोबारा
फलम् संज्ञा, नपुंसक लिंग, द्वितीया एकव. फल

📚 ३. वाक्य-विन्यास (Syntax / Sentence Construction)

  • यह श्लोक दो मुख्य वाक्यांशों में विभाजित है:
    1. यस्तु पक्वम्…फलम् उपादत्ते
      – कर्ता: यः
      – क्रिया: उपादत्ते
      – कर्म: पक्वं परिणतं फलम्
      – करण / काल-प्रसंग: काले

    2. फलात् रसं…बीजात् पुनः फलम् भजते
      – कर्ता: सः (पिछले वाक्य का अनुवर्ती)
      – क्रिया: भजते
      – करण: फलात्
      – कर्म: रसं, फलम्
      – समवेत करण: बीजात् च एव


🔍 ४. क्रियाओं का व्याकरणिक विवेचन:

क्रिया मूल धातु प्रयोग लकार पुरुष वचन वाच्य अर्थ
उपादत्ते उप+आ+दा (to take) आत्मनेपदी लट् प्रथम एकवचन कर्तरि ग्रहण करता है
भजते √भज् (to enjoy/receive) आत्मनेपदी लट् प्रथम एकवचन कर्तरि प्राप्त करता है / भोग करता है

🧠 ५. वाच्य (Voice):

  • दोनों क्रियाएं कर्तरि वाच्य में हैं — कर्ता स्वयं क्रिया को करता है:
    • "उपादत्ते" — वह फल ग्रहण करता है।
    • "भजते" — वह रस प्राप्त करता है।

🪔 ६. लिंग एवं वचन साम्य:

  • "फलम्", "पक्वम्", "परिणतम्", "रसम्", "बीजम्" — सभी नपुंसक लिंग में द्वितीया एकवचन हैं।
  • यह सामंजस्य श्लोक की सरसता को व्याकरणिक दृष्टि से भी सुंदर बनाता है।

📖 ७. विशेषण और विशेष्य संबंध:

  • पक्वम्, परिणतम् → विशेषण हैं जो "फलम्" को विशेषित करते हैं।
  • विशेषण और विशेष्य में लिंग, वचन, विभक्ति की पूर्ण साम्यता है — यही संस्कृत की शुद्धता और सौंदर्य है।

📜 संवादात्मक नीति-कथा

शीर्षक: "समय पर फल"

पात्र:

  • 👴 आचार्य वरद – एक वृद्ध तपस्वी, ज्ञान और अनुभव का भंडार
  • 👦 शिष्य अनुराग – युवा, जिज्ञासु किंतु अधीर
  • 🌳 आम्रवृक्ष – प्रतीकात्मक पात्र (मौन साक्षी)

🕉️ प्रारंभ

(गुरुकुल के बगीचे में एक आम का पेड़ है। गुरु–शिष्य वहीं बैठे हैं। वृक्ष पर कच्चे आम लटक रहे हैं।)

👦 अनुराग (उत्सुकता से):
गुरुदेव! यह आम कब पकेगा? मैं इसे तोड़कर खा लेना चाहता हूँ। बहुत रस भरे लगते हैं।

👴 आचार्य वरद (मुस्कराते हुए):
अनुराग, क्या तुमने कभी देखा है कि कोई कच्चा फल तोड़कर रस पाया हो?

👦 अनुराग:
नहीं गुरुदेव, परंतु प्रतीक्षा करना भी कठिन है।

👴 आचार्य:
यही तो जीवन की पहली शिक्षा है — प्रतीक्षा की परिपक्वता।
(थोड़ा मौन होकर)
"यस्तु पक्वम् उपादत्ते काले परिणतं फलम्..." — क्या तुम जानते हो इसका क्या अर्थ है?

👦 अनुराग (झिझकते हुए):
नहीं, गुरुदेव। कृपया समझाइए।

👴 आचार्य:
जो व्यक्ति समय पर पके हुए फल को ग्रहण करता है, वही उससे रस पाता है। और केवल इतना ही नहीं — उस बीज से भविष्य में फिर फल भी प्राप्त करता है।

👦 अनुराग (चौंकते हुए):
अर्थात् यदि मैं धैर्य रखूँ, तो न केवल स्वाद मिलेगा, बल्कि अगली पीढ़ी के लिए बीज भी?

👴 आचार्य:
बिलकुल। और यही जीवन की नीति है

  • समय से पहले लिए गए निर्णय — कच्चे फल की भाँति कड़वे होते हैं।
  • समय पर लिए गए निर्णय — मीठे और पुनः फलदायी होते हैं।

👦 अनुराग (सिर झुकाते हुए):
गुरुदेव, तो यह नीति केवल आम के लिए नहीं, जीवन के हर क्षेत्र में लागू होती है?

👴 आचार्य (गंभीर स्वर में):
बिलकुल।

  • शिक्षा, यदि उचित समय पर ग्रहण की जाए तो जीवन भर लाभ देती है।
  • विवाह, यदि परिपक्वता से किया जाए तो परिवार सुखी होता है।
  • धन, यदि संयम से अर्जित किया जाए, तो पीढ़ियों तक फलता है।
  • और संवाद, यदि सही समय पर किया जाए, तो रिश्ते मधुर होते हैं।

👦 अनुराग:
गुरुदेव! मैं प्रतीक्षा करूँगा। जब यह आम स्वयं झुककर कहेगा — “अब मैं तैयार हूँ”, तभी उसे ग्रहण करूँगा।

👴 आचार्य (हँसते हुए):
अब तू पका... मेरे शिष्य।
जिसने प्रतीक्षा का अर्थ समझ लिया, वही जीवन का रस भी पाएगा और भविष्य का बीज भी बोएगा।

(वृक्ष की एक टहनी हवा में लहराई — मानो वह भी सहमति दे रहा हो।)


📚 नीति-सार:

“धैर्यवान व्यक्ति ही सच्चे रस और दीर्घकालिक फल का अधिकारी बनता है।”

समय से पहले किसी भी वस्तु को ग्रहण करना — न फल देता है, न बीज।


🌿 व्यापक व्याख्या:

यह श्लोक केवल बागवानी या फल खाने की बात नहीं करता, बल्कि एक गंभीर जीवन-दर्शन की ओर इशारा करता है।

🌟 १. समय की प्रतीक्षा और धैर्य का महत्व:

  • कोई भी कार्य, वस्तु या संबंध यदि अपने सही समय पर अपनाए जाएं, तो वह हमें पूर्ण रस (लाभ, सुख, ज्ञान) प्रदान करते हैं।
  • यदि फल कच्चा हो तो उसमें न रस होता है, न ही बीज पनपता है। इसलिए सही समय का सचेत चयन आवश्यक है।

🌟 २. दीर्घकालिक दृष्टिकोण (Long-Term Vision):

  • व्यक्ति यदि किसी अनुभव से केवल तात्कालिक लाभ न लेकर उसमें छिपे बीज को भी पहचान ले, तो वह भविष्य में भी फल प्राप्त कर सकता है।
  • यह दूरदर्शिता की शिक्षा है — केवल वर्तमान की मिठास नहीं, भविष्य की तैयारी भी।

🌟 ३. शिक्षा और ज्ञान का दृष्टांत:

  • यदि विद्यार्थी उचित आयु में अध्ययन करता है (समय पर फल ग्रहण करता है), तो उसे ज्ञान का रस भी मिलता है (परीक्षा, समझ, चरित्र) और यह ज्ञान ही आगे जीवन में उसे फल देता है (रोजगार, प्रतिष्ठा, विवेक)।

🌟 ४. संबंधों और कर्मों का बोध:

  • एक सुदृढ़ संबंध या किया गया पुण्यकर्म यदि समयानुकूल हो, तो वह तत्काल आनंद (रस) देता है और बीज रूप में आगे भी फलदायक होता है (विश्वास, पुण्यफल)।

🪷 प्रेरणादायी जीवनसूत्र (Life Principle):

"जो समय पर सोचकर, समझकर, निर्णय करता है — वह तत्काल भी सफल होता है और भविष्य भी संवार लेता है।"

या यूँ कहें —

"सही समय पर सही निर्णय ही जीवन को सार्थक बनाता है।"


✍️ दोहा-रूप सार:

काले फल जो ले सके, पाय रस सँग बीज।
पुनः उगे नव-जीवनम्, बने कर्म का सेज।।

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