राशियों का उदय तथा होरा शब्द का अर्थ
आपका प्रस्तुति प्रारम्भिक श्लोकों सहित "बृहत्पाराशर होराशास्त्र" के होराशास्त्र (जातक भाग) की भूमिका से लिया गया अत्यंत गूढ़ व महत्त्वपूर्ण अंश है। अब आइए इसे श्लोक, व्याख्या और भावार्थ के साथ एक व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करें—
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राशियों का उदय तथा होरा शब्द का अर्थ |
📜 श्लोक 1:
पराशर उवाच—यदव्यक्तात्मको विष्णुः कालरूपो जनार्दनः।तस्याङ्गानि निबोध त्वं क्रमान्मेषादिराशयः॥
🔍 शब्दार्थ:
- अव्यक्तात्मकः – जो अप्रकट आत्मा है (सगुण रूप से परे)
- विष्णुः – परमात्मा, जो सर्वव्यापक हैं
- कालरूपः – समय के स्वरूप में
- जनार्दनः – लोकपालक भगवान
- तस्य अङ्गानि – उनके अंग
- निबोध – जानो / समझो
- क्रमान्मेषादिराशयः – मेष से मीन तक की राशियाँ क्रमशः
📖 भावार्थ:
भगवान पराशर कहते हैं –
वह विष्णु जो स्वयं कालस्वरूप, जनार्दन तथा अव्यक्त तत्व के अधिष्ठाता हैं, वही अपने विराट स्वरूप में मेष से लेकर मीन तक की राशियों के रूप में प्रकट होते हैं। ये बारह राशियाँ उनके शरीर के विभिन्न अंग हैं। अतः, इन्हें गहराई से समझना चाहिए।
📜 श्लोक 2:
अहोरात्रस्य पूर्वान्त्यलोपाद होरेति प्रोच्यते।तस्य विज्ञानमात्रेण जातकर्मफलं वदेत्॥
🔍 शब्दार्थ:
- अहोरात्रस्य – दिन और रात का
- पूर्वान्त्य लोपात् – पहले और अंतिम अक्षर के हटाने से
- होरा – ‘अहो’ और ‘रात्रि’ से 'होरा' शब्द
- प्रोच्यते – कहा जाता है
- तस्य विज्ञानमात्रेण – उसके केवल ज्ञान से
- जातक कर्म फलम् वदेत् – जातक का सम्पूर्ण फल बतलाया जा सकता है
📖 भावार्थ:
‘अहोरात्र’ (दिन-रात) शब्द से पहले (अ) और अंतिम (त्रि) अक्षर को हटा देने पर जो ‘होरा’ शब्द बनता है, वही समय की आधारभूत इकाई बनती है। इसी होरा या लग्न का विशेष ज्ञान हो तो जन्मकुंडली के आधार पर समस्त फलों का कथन संभव हो जाता है।
🧭 व्यापक तात्पर्य व टिप्पणी:
- यह शास्त्र समय के सूक्ष्मतम विभाजन पर आधारित है।
- ‘होरा’ का शाब्दिक उद्गम ही समय-ज्ञान से है, न कि केवल खगोलशास्त्र से।
- लग्न, ग्रह, भाव, होरा – ये सब ‘काल-पुरुष’ के अंग हैं, जो परमात्मा के विराट रूप की भांति माने गए हैं।
- फलित ज्योतिष में इसीलिए ‘होरा’, ‘लग्न’, तथा ‘उदय राशि’ को अत्यंत महत्त्व दिया जाता है।