Garud Puran Story: सीता माता द्वारा दिया गया पितरों को श्राद्ध भोज
यह कथा गरुड़ पुराण में वर्णित है और इसे हम व्यवस्थित, क्रमबद्ध एवं भावपूर्ण शैली में प्रस्तुत कर रहे हैं जोकि इस प्रकार है—
सीता माता द्वारा दिया गया श्राद्ध भोज
(गरुड़ पुराण के अनुसार)
1. गरुड़ का प्रश्न
एक बार पक्षीराज गरुड़ ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रश्न किया—
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Garud Puran Story: सीता माता द्वारा दिया गया पितरों को श्राद्ध भोज |
"हे प्रभु! पृथ्वी पर लोग अपने मृत पितरों का श्राद्ध करते हैं और उनकी रुचि का भोजन ब्राह्मणों, ऋषियों तथा अतिथियों को कराते हैं। किंतु क्या वास्तव में पितृ लोक से पितर पृथ्वी पर आकर श्राद्ध में उपस्थित होते हैं? क्या किसी ने उन्हें साक्षात देखा है?"
2. श्रीकृष्ण का उत्तर – सीता माता की कथा
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा—
"हे गरुड़! तुम्हारी शंका का समाधान मैं एक अद्भुत घटना से करूंगा, जो माता सीता के साथ घटी थी। उन्होंने स्वयं अपने पितरों—विशेषकर अपने ससुर, महाराज दशरथ—को श्राद्ध के अवसर पर साक्षात देखा था। यह घटना पुष्कर तीर्थ में घटी।"
3. वनवास और पिता का देहावसान
वनवास के समय श्रीराम को यह समाचार मिला था कि उनके पिता महाराज दशरथ, पुत्र-वियोग सह न पाने के कारण देह त्याग चुके हैं। उस समय श्रीराम, माता सीता सहित वन-वन विचरण करते हुए पुष्कर तीर्थ पहुँचे। संयोगवश, वह समय पितृपक्ष का था और श्रीराम ने निश्चय किया कि "पिता का श्राद्ध पुष्कर तीर्थ में करना सर्वोत्तम होगा।"
4. श्राद्ध की तैयारी
- श्रीराम ने स्वयं विभिन्न शाक, फल और उपयुक्त खाद्य सामग्री एकत्र की।
- माता सीता ने अत्यंत श्रद्धा और भक्ति से भोजन तैयार किया।
- एक पका हुआ उत्तम फल विशेष रूप से सिद्ध कर श्रीराम को अर्पित किया गया।
- श्रीराम ने क्षेत्र के ऋषियों और ब्राह्मणों को आदर सहित श्राद्ध भोज के लिए आमंत्रित किया।
5. कुतुप मुहूर्त में भोजन का आरंभ
6. सीता का अचानक प्रस्थान
"शायद लज्जा के कारण सीता ब्राह्मणों के समीप नहीं बैठना चाहतीं।"फिर वे स्वयं भोजन परोसने लगे और श्राद्ध का कर्म पूर्ण किया।
7. भोजन के बाद संवाद
जब सभी ब्राह्मण और ऋषि भोजन कर विदा हो गए, तब श्रीराम ने सीता से पूछा—
"हे प्रिये! श्राद्ध के बीच तुम अचानक क्यों चली गईं? यह उचित नहीं लगा, क्योंकि इससे भोजन में व्यवधान आ सकता था।"
8. सीता का उत्तर – अद्भुत दर्शन
सीता ने विनम्रता और आँसुओं के साथ उत्तर दिया—
"नाथ! मैंने आज एक अद्भुत दृश्य देखा।ब्राह्मणों की अगली पंक्ति में दो ऐसे महापुरुष बैठे थे जो राजसी स्वरूप से दीप्तिमान थे—मुकुटधारी, आभूषणों से विभूषित।उनके बीच मुझे आपके पिता, महाराज दशरथ, साक्षात दिखाई दिए—राजसी वस्त्र और आभूषणों से अलंकृत, तेज से पूर्ण।उन्हें देखकर मुझे गहन लज्जा का अनुभव हुआ।"
9. लज्जा का कारण
सीता ने आगे कहा—
"मैं पहले राजमहलों में रहती थी, दिव्य वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित। आपके पिताश्री मुझे उसी रूप में देख चुके थे।अब वनवासी जीवन में, वृक्षों की छाल और मृगचर्म पहने, साधारण पत्तल और मिट्टी के पात्र में अन्न परोसते हुए उनके सामने कैसे जाती?इससे उनके मन को भी दुख पहुँचता और मुझे भी।इसीलिए मैं लज्जावश तुरंत वहाँ से चली गई और छिप गई, ताकि उनकी दृष्टि मुझ पर न पड़े।"
10. गरुड़ का संशय समाधान
गरुड़ ने यह कथा सुनकर कहा—
"हे प्रभु! अब मेरी शंका दूर हो गई। यह स्पष्ट है कि पितृगण श्राद्ध में साक्षात उपस्थित होते हैं और ब्राह्मणों के रूप में श्राद्ध का भोजन स्वीकार करते हैं।"
भावार्थ
यह प्रसंग हमें यह संदेश देता है कि—
- श्राद्ध केवल एक कर्मकांड नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक एवं अदृश्य जगत से सीधा संबंध स्थापित करने का अवसर है।
- श्रद्धा और भाव से किया गया श्राद्ध पितरों तक अवश्य पहुँचता है, चाहे हम उन्हें देख पाएं या न देख पाएं।
- ब्राह्मण, ऋषि और अतिथि, श्राद्ध में पितरों के प्रतीक होते हैं।