तर्पण विधि पूर्ण विवरण | Manushya, Pitru, Yam & Sarva Pitru Tarpan Vidhi Step by Step
🔹 तर्पण की शाखानुसार व्यवस्था
ऋग्वेदियों को एक हाथ से ही तर्पण करना चाहिए। अन्य शाखा वालों को दोनों हाथों से तर्पण करना चाहिए तथा –
स्वधानमस्तर्पयामि ऐसा बोलकर तर्पण करना चाहिए–
![]() |
तर्पण विधि पूर्ण विवरण | Manushya, Pitru, Yam & Sarva Pitru Tarpan Vidhi Step by Step |
अन्य शाखा वालों के लिए तर्पण ब्रह्मयज्ञाङ्ग है–
🔹 तर्पणविधि (देव, ऋषि और पितृ सम्पूर्ण तर्पण विधि)
- पूर्वाभिमुख होकर – दाहिना घुटना जमीन पर लगाएँ, सव्य होकर (जनेऊ व अंगोछे को बाएँ कंधे पर रखें)।
- गायत्री मंत्र से शिखा बांधें, तिलक लगाएँ, और दोनों हाथों की अनामिका अँगुली में कुशों का पवित्री (पैंती) धारण करें।
- हाथ में त्रिकुशा, जौ, अक्षत और जल लेकर संकल्प पढ़ें—
विष्णवे नम: ३
हरि: ॐ तत्सदद्यैतस्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे अमुकसंवत्सरे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रोत्पन्न: अमुकशर्मा (वर्मा, गुप्तो) ऽहं श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणं करिष्ये।*
- तीन कुशा को ग्रहण कर निम्न मंत्र को तीन बार कहें—
-
एक ताँबे अथवा चाँदी के पात्र में –
- श्वेत चन्दन,
- जौ,
- तिल,
- चावल,
- सुगन्धित पुष्प,
- तुलसीदल रखें।
फिर उसमें तर्पण के लिए जल भर दें।
-
उसमें रखे हुए त्रिकुशों को तुलसी सहित सम्पुटाकार दायें हाथ में लेकर, बायें हाथ से उसे ढँकें और देवताओं का आवाहन करें।
🔹 आवाहनमंत्र
विश्वेदेवास ऽआगत श्रृणुता म ऽइम@ हवम्। एदं वर्हिर्निषीदत॥
🔹 देवतर्पण
त्रिकुशा द्वारा दायें हाथ की समस्त अँगुलियों के अग्रभाग (देवतीर्थ) से चावल-मिश्रित जल लेकर दूसरे पात्र में गिराएँ और निम्न देवताओं के नाम मंत्र पढ़ते हुए तर्पण करें–
- ब्रह्मास्तृप्यताम् ।
- विष्णुस्तृप्यताम् ।
- रुद्रस्तृप्यताम् ।
- प्रजापतिस्तृप्यताम् ।
- देवास्तृप्यन्ताम् ।
- छन्दांसि तृप्यन्ताम् ।
- वेदास्तृप्यन्ताम् ।
- ऋषयस्तृप्यन्ताम् ।
- पुराणाचार्यास्तृप्यन्ताम् ।
- गन्धर्वास्तृप्यन्ताम् ।
- इतराचार्यास्तृप्यन्ताम् ।
- संवत्सरसावयवस्तृप्यताम् ।
- देव्यस्तृप्यन्ताम् ।
- अप्सरसस्तृप्यन्ताम् ।
- देवानुगास्तृप्यन्ताम् ।
- नागास्तृप्यन्ताम् ।
- सागरास्तृप्यन्ताम् ।
- पर्वतास्तृप्यन्ताम् ।
- सरितस्तृप्यन्ताम् ।
- मनुष्यास्तृप्यन्ताम् ।
- यक्षास्तृप्यन्ताम् ।
- रक्षांसि तृप्यन्ताम् ।
- पिशाचास्तृप्यन्ताम् ।
- सुपर्णास्तृप्यन्ताम् ।
- भूतानि तृप्यन्ताम् ।
- पशवस्तृप्यन्ताम् ।
- वनस्पतयस्तृप्यन्ताम् ।
- ओषधयस्तृप्यन्ताम् ।
- भूतग्रामश्चतुर्विधस्तृप्यताम् ।
🔹 ऋषितर्पण
देवतर्पण की ही भाँति निम्न मंत्रों से ऋषियों को अर्पण करें–
- मरीचिस्तृप्यताम् ।
- अत्रिस्तृप्यताम् ।
- अङ्गिरास्तृप्यताम् ।
- पुलस्त्यस्तृप्यताम् ।
- पुलहस्तृप्यताम् ।
- क्रतुस्तृप्यताम् ।
- वसिष्ठस्तृप्यताम् ।
- प्रचेतास्तृप्यताम् ।
- भृगुस्तृप्यताम् ।
- नारदस्तृप्यताम् ॥
3. मनुष्यतर्पण
उत्तर दिशा की ओर मुँह कर, जनेऊ व गमछे को माला की भाँति गले में धारण कर, सीधे बैठकर निम्न मन्त्रों को दो-दो बार पढ़ते हुए दिव्य मनुष्यों के लिये प्रत्येक को दो-दो अञ्जलि जौ सहित जल प्राजापत्यतीर्थ (कनिष्ठिका के मूल भाग) से अर्पण करें–
- सनकस्तृप्यताम् – 2
- सनन्दनस्तृप्यताम् – 2
- सनातनस्तृप्यताम् – 2
- कपिलस्तृप्यताम् – 2
- आसुरिस्तृप्यताम् – 2
- वोढुस्तृप्यताम् – 2
- पञ्चशिखस्तृप्यताम् – 2
4. पितृतर्पण
कुशों के मूल और अग्रभाग को दक्षिण की ओर करके, अंगूठे और तर्जनी के बीच में रखें। स्वयं दक्षिण की ओर मुँह करें, बायाँ घुटना भूमि पर लगाएँ, अपसव्यभाव (जनेऊ को दाएँ कंधे पर रखकर बाँये हाथ के नीचे ले जाएँ)।
पात्रस्थ जल में काला तिल मिलाकर पितृतीर्थ (अंगूठा और तर्जनी के मध्य भाग) से दिव्य पितरों के लिये निम्न मन्त्र पढ़ते हुए तीन-तीन अञ्जलि जल दें–
- कव्यवाडनलस्तृप्यताम् … स्वधा नमः – 3
- सोमस्तृप्यताम् … स्वधा नमः – 3
- यमस्तृप्यताम् … स्वधा नमः – 3
- अर्यमा तृप्यताम् … स्वधा नमः – 3
- अग्निष्वात्ता: पितरस्तृप्यन्ताम् … स्वधा नमः – 3
- सोमपा: पितरस्तृप्यन्ताम् … स्वधा नमः – 3
- बर्हिषद: पितरस्तृप्यन्ताम् … स्वधा नमः – 3
5. यमतर्पण
इसी प्रकार निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए चौदह यमों के लिये पितृतीर्थ से तीन-तीन अञ्जलि तिल सहित जल दें–
- यमाय नमः – 3
- धर्मराजाय नमः – 3
- मृत्यवे नमः – 3
- अन्तकाय नमः – 3
- वैवस्वताय नमः – 3
- कालाय नमः – 3
- सर्वभूतक्षयाय नमः – 3
- औदुम्बराय नमः – 3
- दध्नाय नमः – 3
- नीलाय नमः – 3
- परमेष्ठिने नमः – 3
- वृकोदराय नमः – 3
- चित्राय नमः – 3
- चित्रगुप्ताय नमः – 3
विशेष
- जिनके पिता जीवित हों, वे यहाँ तक ही तर्पण करें, आगे का न करें।
- जिनके पिता नहीं हैं, वे आगे का भी तर्पण करें। माता जीवित हो तो उन्हें छोड़कर अन्य का करें।
6. मनुष्यपितृतर्पण
फिर पितृगण का नाम-गोत्र लेकर प्रत्येक के लिये तीन-तीन अञ्जलि तिल-सहित जल दें–
- अस्मत्पिता … वसुरूपस्तृप्यताम् … स्वधा नमः – 3
- अस्मत्पितामह: … रुद्ररूपस्तृप्यताम् … स्वधा नमः – 3
- अस्मत्प्रपितामह: … आदित्यरूपस्तृप्यताम् … स्वधा नमः – 3
- अस्मन्माता … वसुरूपा तृप्यताम् … स्वधा नमः – 3
- अस्मत्पितामही … रुद्ररूपा तृप्यताम् … स्वधा नमः – 3
- अस्मत्प्रपितामही … आदित्यरूपा तृप्यताम् … स्वधा नमः – 3
फिर द्वितीय गोत्र तर्पण, एकोद्दिष्टगण का तर्पण और अन्य सम्बन्धियों के लिये भी तर्पण करें।
7. भीष्मतर्पण
अर्घ्यदान
शुद्ध जल से आचमन, प्राणायाम कर शुद्ध जल पात्र में चन्दन, अक्षत, पुष्प, तुलसीदल डालकर ब्रह्मादि देवताओं का अर्घ्य दें।
- ॐ ब्रह्मणे नमः
- विष्णवे नमः
- रुद्राय नमः
- सवित्रे नमः
- मित्राय नमः
- वरुणाय नमः
सूर्यार्घ
फिर उपस्थान मन्त्र, सूर्य की 7 प्रदक्षिणा, दसों दिशाओं एवं दिग्पालों को नमस्कार।
देवतर्पण
इसके बाद देवतीर्थ से तर्पण–
ॐ ब्रह्मणै नमः। ॐ अग्नयै नमः। ॐ पृथिव्यै नमः। ॐ औषधिभ्यो नमः। ॐ वाचे नमः। ॐ वाचस्पतये नमः। ॐ महद्भ्यो नमः। ॐ विष्णवे नमः। ॐ अद्भ्यो नमः। ॐ अपांपतये नमः। ॐ वरुणाय नमः।
फिर जल मुख पर लगाकर तीन बार ॐ अच्युताय नमः जप करें।