Marakesh Grah in Astrology (मारकेश ग्रह) – How to Identify Death Inflicting Planets in Horoscope
"जानिए ज्योतिष में मारकेश ग्रह (Maraka Planets) कौन से होते हैं। द्वितीयेश, सप्तमेश, पापग्रह और अन्य ग्रहों के मारक प्रभाव, उनकी महादशा-अन्तर्दशा तथा मृत्यु-निर्णय में उनकी भूमिका को विस्तार से समझें।"
मारकेश ग्रह (Mārakeśa Graha) का निर्णय
ज्योतिष शास्त्र में मारकेश वह ग्रह कहलाता है, जिसकी दशा-अन्तर्दशा में जातक की आयु समाप्त होती है अथवा मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है। यह नियम विशेष रूप से आयु-निर्णय और मृत्यु-काल की गणना में उपयोगी है। आचार्यों ने इसके निर्णय हेतु एक स्पष्ट वरीयता क्रम (priority order) निर्धारित किया है।
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| Marakesh Grah in Astrology (मारकेश ग्रह) – How to Identify Death Inflicting Planets in Horoscope |
१. मारकेश ग्रह का वरीयता क्रम
आचार्यों के अनुसार निम्न क्रम से यह निर्णय करना चाहिए कि कौन-सा ग्रह मारकेश कहलाएगा—
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द्वितीय भाव का स्वामी (Dvitīya Bhāva Svāmī)
- द्वितीय भाव मरणस्थान माना गया है। इसका स्वामी प्रमुख मारकेश होता है।
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सप्तम भाव का स्वामी (Saptama Bhāva Svāmī)
- सप्तम भाव मारकस्थान कहा गया है। इसलिए इसका स्वामी भी मुख्य मारकेश माना जाता है।
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द्वितीय भाव में स्थित पापग्रह (Pāpaghraha in 2nd House)
- यदि कोई पापग्रह (शनि, मंगल, राहु, केतु, सूर्य) द्वितीय भाव में स्थित हो तो वह भी मारकेश की भूमिका निभाता है।
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सप्तम भाव में स्थित पापग्रह (Pāpaghraha in 7th House)
- सप्तम भाव में बैठे पापग्रह भी मृत्यु का कारण बन सकते हैं।
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द्वितीयेश से युत पापग्रह (Conjunction with 2nd Lord)
- यदि कोई पापग्रह द्वितीय भाव के स्वामी के साथ स्थित हो तो वह भी मारकेश कहलाता है।
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सप्तमेश से युत पापग्रह (Conjunction with 7th Lord)
- सप्तम भाव के स्वामी के साथ जुड़ा पापग्रह भी मारकेश हो जाता है।
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व्ययेश से सम्बन्ध रखने वाला पापग्रह (Relation with 12th Lord)
- व्यय भाव (१२वाँ) हानि और मृत्यु से जुड़ा है। उसका स्वामी या उससे सम्बन्ध रखने वाला पापग्रह भी मारक प्रभाव देता है।
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अष्टमेश (8th Lord)
- अष्टम भाव आयुस्थान है। उसका स्वामी यदि निर्बल या पापग्रही प्रभाव में हो तो मृत्यु का कारण बनता है।
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मारकेश ग्रहों के साथ बैठा शनि (Saturn with Maraka Grahas)
- शनि, विशेषतः मारक भाव में अथवा मारकेश ग्रह के साथ स्थित होकर उसकी शक्ति बढ़ा देता है।
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षष्ठेश (6th Lord)
- षष्ठ भाव शत्रु और रोग का भाव है। उसका स्वामी भी कई बार मारक ग्रह के रूप में कार्य करता है।
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कुण्डली का निर्बल ग्रह (Weakest Planet)
- जो ग्रह अत्यधिक निर्बल हो, वह भी मृत्यु का कारण बन सकता है।
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शुभ ग्रह (Benefics)
- अंततः यदि उपरोक्त ग्रह प्रभावी न हों, तो शुभ ग्रह भी मारक प्रभाव दे सकते हैं, विशेषतः यदि वे मारक स्थानों से सम्बद्ध हों।
२. मारकेश ग्रह का कार्य
- जिस ग्रह को ऊपर दिए गए क्रम में मारकेश माना गया है, उसी की महादशा (Mahādaśā) में मृत्यु की संभावना अधिक रहती है।
- यदि उसी महादशा में उसका संबंधित या सधर्मी ग्रह (same natured or associated planet) की अन्तर्दशा (Antardaśā) आ जाए, तो मृत्यु की आशंका और भी प्रबल हो जाती है।
३. विशेष बिंदु
- मारकेश ग्रह सदैव मृत्यु का कारण बने, यह आवश्यक नहीं है। उसकी दशा में कभी-कभी केवल भारी कष्ट, रोग या विपत्ति भी हो सकती है।
- यदि जातक की आयु शेष हो तो मारकेश केवल कष्ट देगा, किन्तु यदि आयु समाप्त हो चुकी हो तो वही ग्रह मृत्यु का कारण बनेगा।
- आयु का निर्णय पहले कर लेना आवश्यक है, तभी मारकेश की दशा को निश्चित रूप से समझा जा सकता है।
मारकेश ग्रह का वरीयता क्रम (Table Form)
| क्रमांक | मारकेश ग्रह का प्रकार | विवरण / भूमिका |
|---|---|---|
| 1 | द्वितीय भाव का स्वामी | द्वितीय भाव मरणस्थान कहलाता है, इसका स्वामी प्रमुख मारकेश होता है। |
| 2 | सप्तम भाव का स्वामी | सप्तम भाव मारकस्थान है, उसका स्वामी भी मृत्यु हेतु उत्तरदायी हो सकता है। |
| 3 | द्वितीय भाव में स्थित पापग्रह | यदि कोई पापग्रह (शनि, मंगल, राहु, केतु, सूर्य) द्वितीय भाव में स्थित हो तो मारक प्रभाव देता है। |
| 4 | सप्तम भाव में स्थित पापग्रह | सप्तम भाव में पापग्रह बैठने से भी मृत्यु का कारण बनता है। |
| 5 | द्वितीयेश से युत पापग्रह | द्वितीय भाव के स्वामी के साथ स्थित पापग्रह भी मारकेश कहलाता है। |
| 6 | सप्तमेश से युत पापग्रह | सप्तम भाव के स्वामी के साथ जुड़ा पापग्रह भी मारक हो जाता है। |
| 7 | व्ययेश से सम्बन्ध रखने वाला पापग्रह | 12वें भाव (हानि, व्यय, मृत्यु) के स्वामी से सम्बन्ध रखने वाला पापग्रह मृत्यु का कारण हो सकता है। |
| 8 | अष्टमेश | अष्टम भाव आयुस्थान है। इसका स्वामी निर्बल हो तो मृत्यु देता है। |
| 9 | मारकेश ग्रहों के साथ बैठा शनि | शनि जब मारक ग्रहों के साथ बैठता है, तो उनकी मारक शक्ति को और बढ़ा देता है। |
| 10 | षष्ठेश | 6वें भाव का स्वामी (रोग-शत्रु भाव) भी मृत्यु का कारण बन सकता है। |
| 11 | निर्बल ग्रह | जो ग्रह अत्यधिक निर्बल हो, वह भी मारक प्रभाव दे सकता है। |
| 12 | शुभ ग्रह | अंततः यदि कोई अन्य ग्रह प्रभावी न हो, तो शुभ ग्रह भी मारकेश बन सकता है। |
कार्यप्रणाली
- जब आयु-निर्णय के अनुसार व्यक्ति की आयु समाप्ति के निकट हो, तब ऊपर दिए गए क्रम से जो ग्रह की महादशा चले, वही मारकेश कहलाता है।
- उसकी अन्तर्दशा में सम्बद्ध ग्रह (संबंधी या सधर्मी) मृत्यु या भारी संकट उत्पन्न करते हैं।
निष्कर्ष
ज्योतिष शास्त्र में मृत्यु-काल का निर्णय अत्यंत सूक्ष्म एवं गूढ़ विषय है। इसमें आयु-निर्णय और मारकेश ग्रह की दशा-अन्तर्दशा दोनों को देखकर ही परिणाम कहा जाता है। इस प्रकार मारकेश का महत्व केवल मृत्यु-काल निर्धारण तक ही नहीं, बल्कि जीवन में आने वाले संकट और रोगों के समय को समझने में भी होता है।

