Bhagavat Purana reveals 5 powerful predictions about Kali Yuga—money, justice, marriage, religion & nature—that are clearly visible in modern society today.
Discover how Bhagavat Purana accurately predicted the moral, social and environmental decline of Kali Yuga over 5000 years ago. This detailed article explains five powerful prophecies related to money, justice, marriage, religion and nature — and why they perfectly match today’s world, along with the spiritual solution given by the Purana itself.
भागवत पुराण की 5 भविष्यवाणियाँ जो कलियुग, समाज, धन, न्याय, विवाह और प्रकृति के पतन को 5000 साल पहले ही उजागर कर देती हैं।
Bhagavat Purana Predictions: भागवत पुराण की 5 भविष्यवाणियाँ जो 5000 साल बाद आज सच हो रही हैं
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| Those 5 prophecies of Bhagavata Purana, which are coming true today after 5000 years |
भागवत पुराण की 5 भविष्यवाणियाँ: 5000 वर्ष बाद आज का यथार्थ
नीचे इन पाँच भविष्यवाणियों को क्रमशः श्लोक, भाव और आधुनिक संदर्भ के साथ विस्तार से प्रस्तुत किया जा रहा है।
1. जब धन ही मनुष्य की पहचान बन जाए
भागवत कहती है कि कलियुग में मनुष्य की पहचान उसके चरित्र, ज्ञान, कुल या संस्कार से नहीं, बल्कि केवल धन से होगी।
श्लोक (12.2.1)
वित्तमेव कलौ नृणां जन्माचारगुणोदयः।
इसका तात्पर्य यह है कि जिस समाज में धन सर्वोच्च मूल्य बन जाता है, वहाँ नैतिकता स्वतः गौण हो जाती है। ऐसे समय में ईमानदारी, त्याग और विद्या सम्मान नहीं दिलाते, बल्कि केवल आर्थिक सामर्थ्य व्यक्ति को “योग्य” सिद्ध करती है।
आज हम स्पष्ट देखते हैं कि निर्धन होते हुए भी सदाचारी व्यक्ति उपेक्षित है, जबकि धनवान होते हुए भी अनैतिक व्यक्ति प्रभावशाली माना जाता है। यह भविष्यवाणी आज के सामाजिक ढाँचे की नींव को उजागर करती है।
2. न्याय व्यवस्था में सत्य नहीं, शक्ति का बोलबाला
भागवत आगे बताती है कि कलियुग में न्याय और अधिकार का निर्णय सत्य के आधार पर नहीं, बल्कि शक्ति के आधार पर होगा।
श्लोक (12.2.2)
धर्मन्यायव्यवस्थायां कारणं बलमेव हि।
यह श्लोक हमें चेतावनी देता है कि जब न्याय शक्ति-आधारित हो जाए, तो समाज में असंतुलन और असंतोष अनिवार्य हो जाता है।
3. विवाह और रिश्तों का आध्यात्मिक पतन
वेदों में विवाह को एक पवित्र संस्कार माना गया है, जिसमें धर्म, कर्तव्य और परस्पर उत्तरदायित्व निहित है। भागवत बताती है कि कलियुग में यह भाव समाप्त हो जाएगा।
श्लोक (12.2.3)
दाम्पत्येऽभिरुचिर्हेतुर्मायैव व्यवहारिक।
4. धर्म का आंतरिक स्वरूप लुप्त होना
भागवत स्पष्ट कहती है कि कलियुग में धर्म आचरण नहीं, बल्कि प्रदर्शन बन जाएगा।
श्लोक (12.2.4)
लिङ्गमेवाश्रमख्यातौ अन्योन्यापत्ति कारणम्।
आज धर्म अक्सर आचरण की बजाय पहचान बन गया है। यह स्थिति समाज में वैचारिक टकराव और पाखंड को जन्म देती है, जिसकी ओर भागवत बहुत पहले संकेत कर चुकी थी।
5. प्रकृति का असंतुलन और मानव संकट
भागवत की सबसे गहन भविष्यवाणी प्रकृति और मानव संबंध को लेकर है।
श्लोक (12.2.9)
अनावृष्ट्या विनङ्क्ष्यन्ति दुर्भिक्षकरपीडिताः।
समाधान भी भागवत में ही है
भागवत पुराण केवल भय नहीं दिखाती, बल्कि आशा का मार्ग भी प्रदान करती है।
श्लोक (12.3.51)
कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान् गुणः।कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत्॥
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