Sa Suhrud Vyasane Yah Syat: Shloka Meaning in Hindi & English | सच्चे रिश्तों की पहचान

Sooraj Krishna Shastri
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True Relations Shloka
स सुहृद्व्यसने यः स्यात्स पुत्रो यस्तु भक्तिमान्।
स भृत्यो यो विधेयज्ञः सा भार्या यत्र निर्वृतिः॥
Sa suhṛdvyasane yaḥ syātsa putro yastu bhaktimān |
Sa bhṛtyo yo vidheyajñaḥ sā bhāryā yatra nirvṛtiḥ ||
📝 अनुवाद (Translation)
हिन्दी: संकट (व्यसन) के समय जो साथ दे, वही सच्चा मित्र है। जो माता-पिता के प्रति भक्तिभाव रखे, वही सच्चा पुत्र है। जो अपने कार्य और स्वामी की आज्ञा को अच्छी तरह जानता हो, वही सच्चा सेवक है। और जिससे मन को शांति (राहत) मिले, वही सच्ची पत्नी है।
English: He is a true friend who stands by you in difficulties. He is a true son who is devoted. He is a true servant who knows his duty well. She is a true wife who brings peace and comfort to the mind.
🔍 शब्दार्थ (Word Analysis)
शब्द (Sanskrit) अर्थ (Hindi) English Meaning
सुहृत् (सुहृद) सच्चा मित्र True Friend
व्यसने संकट/विपत्ति में In calamity/difficulty
भक्तिमान् भक्ति करने वाला/आज्ञाकारी Devoted
विधेयज्ञः कर्तव्य जानने वाला Knower of duty/Obedient
निर्वृतिः परम शांति/सुख Bliss/Deep satisfaction
📚 व्याकरण (Grammar Analysis)
1. सुहृद्व्यसने (संधि): सुहृत् + व्यसने = सुहृद्व्यसने (जश्त्व संधि)। 'त्' का 'द्' हो गया।
2. विधेयज्ञः (समास): 'विधेयं जानाति इति विधेयज्ञः' (उपपद तत्पुरुष)। जो आज्ञा या कर्तव्य को जानता है।
3. लिंग भेद: 'स' (पुल्लिंग - वह) का प्रयोग मित्र, पुत्र और भृत्य के लिए हुआ है। 'सा' (स्त्रीलिंग - वह) का प्रयोग भार्या (पत्नी) के लिए हुआ है।
🌍 आधुनिक संदर्भ (Modern Perspective)
  • मित्र (Friend): सोशल मीडिया पर हजारों दोस्त हो सकते हैं, लेकिन सच्चा मित्र वही है जो आपकी नौकरी जाने पर या बीमारी में अस्पताल में खड़ा रहे।
  • कर्मचारी (Employee/Servant): आज के कॉर्पोरेट जगत में वही एम्प्लॉई श्रेष्ठ है जिसे बार-बार बताना न पड़े कि उसे क्या करना है (Self-starter)।
  • जीवनसाथी (Partner): सुंदरता या धन से ज्यादा महत्वपूर्ण 'Mental Peace' (मानसिक शांति) है। जिस रिश्ते में घर लौटने पर सुकून मिले, वही सफल है।
🗣️ संवादात्मक नीति कथा (Short Story)
परीक्षा का समय (The Time of Test)

एक धनी व्यापारी था, जिसके कई मित्र और नौकर थे। एक दिन उसने अपनी पत्नी और पुत्र से कहा, "मेरा व्यापार डूब गया है, हम कंगाल हो गए हैं।"

यह सुनते ही:

  • उसके पार्टी करने वाले मित्र बहाना बनाकर चले गए।
  • आलसी नौकर तनख्वाह न मिलने के डर से भाग गए, केवल एक पुराना वफादार सेवक रुका रहा क्योंकि वह अपना कर्तव्य (विधेयज्ञ) जानता था।
  • उसका पुत्र घबराया नहीं, बल्कि बोला- "पिताजी, मैं मेहनत करूँगा, आप चिंता न करें।" (भक्तिमान्)।
  • उसकी पत्नी ने मुस्कुराकर कहा- "धन आता-जाता है, हम साथ हैं यही काफी है।" उसकी बातों ने व्यापारी को चिंता से मुक्त (निर्वृति) कर दिया।

व्यापारी समझ गया कि उसकी असली संपत्ति उसके बैंक में नहीं, बल्कि उसके इन रिश्तों में है।

💡 निष्कर्ष (Conclusion)

रिश्तों की पहचान 'सुख' में नहीं, 'संकट' में होती है। हमें ऐसे ही लोगों का संग करना चाहिए और स्वयं भी दूसरों के लिए ऐसा ही बनना चाहिए।

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