राजा भोज और सत्य

Sooraj Krishna Shastri
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 राजा भोज और सत्य

 एक दिन राजा भोज गहरी निद्रा में सोये हुए थे उन्हें उनके स्वप्न में एक अत्यंत तेजस्वी वृद्ध पुरुष के दर्शन हुए, राजन ने उनसे पुछा- “महात्मन ! आप कौन हैं ?

वृद्ध ने कहा- “राजन मैं सत्य हूँ और तुझे तेरे कार्यों का वास्तविक रूप दिखाने आया हूँ मेरे पीछे-पीछे चल आ और अपने कार्यों की वास्तविकता को देख 

  राजा भोज उस वृद्ध के पीछे-पीछे चल दिए राजा भोज बहुत दान, पुण्य, यज्ञ, व्रत, तीर्थ, कथा-कीर्तन करते थे, उन्होंने अनेक तालाब, मंदिर, कुँए, बगीचे आदि भी बनवाए थे राजा के मन में इन कार्यों के कारण अभिमान आ गया था वृद्ध पुरुष के रूप में आये सत्य ने राजा भोज को अपने साथ उनकी कृतियों के पास ले गए वहाँ जैसे ही सत्य ने पेड़ों को छुआ, सब एक-एक करके सूख गए, बागीचे बंज़र भूमि में बदल गए राजा इतना देखते ही आश्चर्यचकित रह गया, फिर सत्य राजा को मंदिर ले गया सत्य ने जैसे ही मंदिर को छुआ, वह खँडहर में बदल गया वृद्ध पुरुष ने राजा के यज्ञ, तीर्थ, कथा, पूजन, दान आदि के लिए बने स्थानों, व्यक्तियों, आदि चीजों को ज्यों ही छुआ, वे सब राख हो गए, राजा यह सब देखकर विक्षिप्त-सा हो गया 

   सत्य ने कहा- “राजन ! यश की इच्छा के लिए जो कार्य किये जाते हैं, उनसे केवल अहंकार की पुष्टि होती है, धर्म का निर्वहन नहीं सच्ची सदभावना से निस्वार्थ होकर कर्तव्यभाव से जो कार्य किये जाते हैं, उन्हीं का फल पुण्य के रूप मिलता है और यह पुण्य फल का रहस्य है इतना कहकर सत्य अंतर्धान हो गए राजा ने निद्रा टूटने पर गहरा विचार किया और सच्ची भावना से कर्म करना प्रारंभ किया जिसके बल पर उन्हें ना सिर्फ यश- कीर्ति की प्राप्ति हुए बल्कि उन्होंने बहुत पुण्य भी कमाया 

शिक्षा:- 

  सच ही तो है सिर्फ प्रसिद्धि और आदर पाने के नज़रिये से किया गया काम पुण्य नहीं देता हमने देखा है कई बार लोग सिर्फ अखबारों और न्यूज़ चैनल्स पर आने के लिए झाड़ू उठा लेते हैं या किसी गरीब बस्ती का दौरा कर लेते हैं ऐसा करना पुण्य नहीं दे सकता, असली पुण्य तो हृदय से की गयी सेवा से ही उपजता है फिर वो चाहे हज़ारों लोगों की की गयी हो, या बस किसी एक व्यक्ति की 

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