भारतीयों द्वारा शून्य (zero) का आविष्कार (Indian numerology): इतिहास की सबसे क्रांतिकारी देन

Sooraj Krishna Shastri
By -
0
भारतीयों द्वारा शून्य (zero) का आविष्कार (Indian numerology): इतिहास की सबसे क्रांतिकारी देन
भारतीयों द्वारा शून्य (zero) का आविष्कार (Indian numerology): इतिहास की सबसे क्रांतिकारी देन 


✦ भारतीयों द्वारा शून्य का आविष्कार: इतिहास की सबसे क्रांतिकारी देन

 यह "भारतीयों द्वारा शून्य के आविष्कार की क्रांतिकारी महत्ता" पर एक विस्तृत, संदर्भयुक्त लेख जो ऐतिहासिक, वैज्ञानिक, दार्शनिक और वैश्विक दृष्टिकोण से इस योगदान की व्याख्या करता है।


प्रस्तावना

"There has been no more revolutionary contribution than the one which the Hindus (Indians) made when they invented zero."
Lancelot Hogben, English mathematician

यह कथन केवल प्रशंसा नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक सत्य की उद्घोषणा है। शून्य (Zero) का आविष्कार भारतीय गणितज्ञों की दूरदर्शिता, तार्किकता और दार्शनिक गहराई का जीवंत प्रमाण है, जिसने विश्वगणित की दिशा और दशा ही बदल दी।


1. शून्य: केवल एक संख्या नहीं

शून्य की अवधारणा मात्र एक अंक की नहीं थी, बल्कि यह एक पूर्ण विचार (concept) था — शून्यता, रिक्तता और संभाव्यता का प्रतीक। यह एक ऐसा बिंदु है, जहाँ से सृष्टि की गणना आरंभ होती है और जहाँ पर वह लय होती है।

भारत में शून्य का प्राचीन उल्लेख:

  • बौद्ध दर्शन में "शून्यता" (śūnyatā) को आत्मा, ब्रह्म और जगत के स्वरूप का मूल तत्व माना गया।

  • उपनिषदों में "पूर्णमदः पूर्णमिदम्…" मंत्र में शून्य की दार्शनिक व्याख्या मिलती है।


2. ऐतिहासिक विकास: शून्य की यात्रा

(क) आर्यभट्ट (5वीं शताब्दी)

  • यद्यपि उन्होंने शून्य को स्पष्ट रूप में '०' के रूप में नहीं लिखा, परंतु उन्होंने स्थानिक मान प्रणाली (Place Value System) का उपयोग किया — जो शून्य की अवधारणा पर आधारित था।

(ख) ब्रह्मगुप्त (598–668 ई.)

  • ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त नामक ग्रंथ में पहली बार शून्य को स्वतंत्र संख्या के रूप में परिभाषित किया गया।

  • उन्होंने शून्य से जुड़ी गणनाओं (जैसे – a + 0 = a; a × 0 = 0) के नियम बताए।

  • उन्होंने यह भी कहा कि "शून्य, ऋण और धन संख्याओं के बीच का संतुलन बिंदु है।"

(ग) भास्कराचार्य (12वीं शताब्दी)

  • भास्कराचार्य ने शून्य पर और गहन गणितीय प्रयोग किए — जैसे शून्य से विभाजन को "अनंत" कहा।


3. शून्य के माध्यम से स्थानिक मान प्रणाली (Place Value System)

भारत की देन यह भी थी कि अंकों को दशमलव प्रणाली में इस प्रकार व्यवस्थित किया गया, जिसमें किसी संख्या में किसी अंक का मान उसकी स्थिति पर निर्भर करता है।

उदाहरण:
123 = 1×100 + 2×10 + 3×1
यह प्रणाली शून्य के बिना असंभव थी। "205" जैसा अंक केवल तभी समझ में आता है जब यह मान लिया जाए कि बीच का "0" एक खाली स्थान है।


4. शून्य की वैश्विक यात्रा

(क) अरबी विद्वानों द्वारा ग्रहण:

  • 8वीं शताब्दी में खलीफा अल-मंसूर के काल में भारतीय गणितीय ग्रंथों का अरबी में अनुवाद हुआ।

  • अल-ख्वारिज़्मी ने ब्रह्मगुप्त के सिद्धांतों को अपनाकर उन्हें अरब जगत में फैलाया।

(ख) यूरोप में प्रवेश:

  • यूरोप में 12वीं शताब्दी में शून्य और दशमलव प्रणाली आई।

  • पहले तो ईसाई जगत ने इसे "शैतानी चिन्ह" कहकर अस्वीकार किया, किंतु गणनात्मक शक्ति के सामने झुकना पड़ा।


5. शून्य का आधुनिक महत्व

(क) गणना और कंप्यूटिंग:

  • आज की डिजिटल क्रांति का मूल स्तंभ बाइनरी कोड (0 और 1) है। कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर, रोबोटिक्स — सबमें शून्य केंद्रीय भूमिका निभाता है।

(ख) वैज्ञानिक सिद्धांत:

  • भौतिकी के सिद्धांतों में, जैसे "बिग बैंग" से पहले की शून्यता, अथवा क्वांटम फिजिक्स की शून्य-बिंदु ऊर्जा — सबमें शून्य की अवधारणा अनिवार्य है।

(ग) वित्त और बैंकिंग:

  • लाखों करोड़ों की गणना, ऋण-ब्याज, मुद्रास्फीति आदि का आकलन शून्य के बिना असंभव है।


6. दार्शनिक दृष्टिकोण से शून्य

  • भारतीय विचारधारा में शून्य को नकारात्मकता नहीं, बल्कि संभावना का प्रतीक माना गया है।

  • यह उस स्थिति को दर्शाता है जहाँ से सृजन आरंभ होता है

  • शून्य के दर्शन ने अद्वैत वेदांत, बौद्ध मध्यम मार्ग, और जैन तत्त्वमीमांसा को दिशा दी।


7. भारतीय अंक प्रणाली की विशेषताएँ

भारतीय गणना-पद्धति में संख्याओं को स्थानिक मान (Place Value) और गुणनात्मक विस्तार के आधार पर पहचाना गया। इसमें प्रत्येक स्थान का एक विशिष्ट नाम और सांस्कृतिक अर्थ भी है।

भारतीय गणितज्ञों ने न केवल 1 से 9 तक के अंकों को स्पष्ट किया, बल्कि 'शून्य' को भी संख्या के रूप में परिभाषित किया — जो गणना की सभी आधुनिक प्रणालियों की रीढ़ है।


8. भारतीय संख्यात्मक नामकरण प्रणाली (Place Names in Sanskrit Numerals)

संस्कृत नाम आधुनिक मान अंग्रेज़ी तुल्य नाम
एकिं 1 One
दिं 10 Ten
तिं 100 Hundred
शत/सहस्र 1,000 Thousand
अयुतिं 10,000 Ten Thousand
लक्ष/तन्ुतिं 1,00,000 Lakh (Hundred Thousand)
कुटिं 10,00,000 Million
अर्बुदिं 1,00,00,000 Ten Million
न्यार्बुदिं 1,00,00,00,000 Hundred Million
खर्विं 1,00,00,00,000 Billion
निखर्विं 1,00,00,00,00,000 Ten Billion
पद्म 1,00,00,00,00,00,000 Trillion
शंख 1,00,00,00,00,00,00,000 Quadrillion
महाशंख 1,00,00,00,00,00,00,00,000 Quintillion
जलधि, समुद्र और भी ऊँचे क्रम के मान (Sextillion, Septillion, आदि)

9. यजुर्वेद में संख्यात्मक वर्णन

यजुर्वेद 17.2 में संख्याओं के क्रम को मंत्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है:

एकं च दशं च दशं च शतं च सहस्रं च अयुतं च लक्षं च कोटिं च अर्बुदं च..

यह केवल गणना का क्रम नहीं, अपितु एक गणितीय जप है जो ज्ञान के क्रमिक विस्तार का प्रतीक है।


10. आधुनिक प्रणाली बनाम भारतीय प्रणाली

भारतीय प्रणाली (संस्कृत) अंग्रेज़ी प्रणाली शून्य की संख्या नाम (Suffix)
10¹ Ten 1 Ten
10² Hundred 2 Hundred
10³ Thousand 3 Thousand
10⁶ Lakh 5 (Indian) Million (Western)
10⁹ अरब (Indian) 7 Billion (Western)
10¹² खरब 9 Trillion
10¹⁵ नील 11 Quadrillion
10¹⁸ पद्म 13 Quintillion
10²¹ शंख 15 Sextillion
10²⁴ महाशंख 17 Septillion
10²⁷ समुद्र 19 Octillion

📌 नोट: भारतीय प्रणाली में हर दो अंकों पर वर्ग (Group) बदलता है, जबकि पश्चिमी प्रणाली में हर तीन अंकों पर


11. Vedic Cosmology और गणित

भारतीय गणित केवल धरती की सीमाओं तक सीमित नहीं था। यह ब्रह्मांडीय गणना, समय चक्र, और युगों के निर्धारण में भी प्रयुक्त होता था:

  • कल्प = 4.32 अरब वर्ष

  • महायुग = 43,20,000 वर्ष

  • ब्राह्मा का एक दिन = 1000 महायुग

  • ऐसी गणनाओं के लिए जिस अंक-पद्धति की आवश्यकता थी, वह केवल भारतीय प्रणाली ही दे सकती थी।


12. भ्रम: "अरब अंक प्रणाली"

जब भारतीय गणित अरब जगत पहुँचा (8वीं-9वीं शताब्दी), तब वहाँ के विद्वानों ने इसे अपनाया और यूरोप तक पहुँचाया। परन्तु यूरोपीय लोग यह भूल गए कि यह प्रणाली भारत की देन थी और इसे "Arabic Numerals" कहने लगे।

👉 यह वैज्ञानिक उपनिवेशवाद (Scientific Colonialism) का एक उदाहरण है, जिसे अब सुधारे जाने की आवश्यकता है।


13. निष्कर्ष

भारतीय संख्या प्रणाली एक अद्भुत गणितीय, दार्शनिक और वैज्ञानिक उपलब्धि है। यह केवल संख्या की गणना नहीं, बल्कि ब्रह्मांड और आत्मा के योग की भी गणना है। इसकी गहराई, विशालता और तार्किक संरचना आज भी वैश्विक समुदाय को आश्चर्यचकित करती है।

भारत का यह योगदान मात्र गणित का आविष्कार नहीं था, यह मानवता को सोचने का नया ढांचा प्रदान करने वाला परिवर्तन था। लांसलॉट हॉगबेन जैसे विद्वान इस सत्य को स्वीकारते हैं कि —

शून्य के बिना विज्ञान, तकनीक, गणित और दर्शन की वर्तमान प्रगति की कल्पना भी असंभव होती।

✦ इसीलिए कहा गया:

"शून्य की खोज ने अनंत संभावनाओं को जन्म दिया।"  

 वर्तमान में जिस दशमलव आधारित संख्यात्मक प्रणाली (Decimal Number System) का प्रयोग विश्वभर में होता है, उसका मूल भारतीय गणित में निहित है। फिर भी आश्चर्यजनक रूप से इसे "Arabic Numerals" कहा जाता है, जबकि इसके बीज भारत में ही वैदिक काल से अंकुरित हुए थे।

✦ अतः यह कहना उचित होगा:

"यदि विश्व को गणना करनी है, तो भारत को श्रेय देना ही होगा!"


✦ संदर्भ (References)

  1. Brahmagupta. Brahmasphutasiddhanta, 7th century.

  2. Aryabhata. Aryabhatiya, 5th century.

  3. George Gheverghese Joseph, The Crest of the Peacock: Non-European Roots of Mathematics

  4. Lancelot Hogben, Mathematics for the Million

  5. Amir Aczel, Finding Zero: A Mathematician's Odyssey to Uncover the Origins of Numbers

Post a Comment

0Comments

thanks for a lovly feedback

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!